कर्नल साहिब की *ज़िद्द* “बुजुर्ग” और “ज़िद्द”

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Col. Jaswant S. Chandel

 

बुजुर्ग
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गांव के बुजुर्ग कुछ हद तंदरुस्त देखे,
खाते- पीते चलते -फिरते दुरुस्त देखे,
हां हवेली की सीढ़ियां चढ़ते थके देखे,
शाम क्या पड़ी अंधेरा होते सुस्त देखे।

मगर कहीं गांव में घूमते सियार देखे,
कुछ हवेलियां खाली आंगन झाड़ देखे, किलकारियां सुननेंकोकान तरसते देखे, हवेलियों के व्यस्क कहीं दूर बाहर देखे।

बड़े बड़े शहर इधर उधर बनते देखे,
बजह इनकी गांव के गांव उजड़ते देखे,
हमारे गांव को ही क्यों नहीं शहर बना देते,
मगर हुक्मरानों के किए बादे बदलते देखे।
कर्नल जसवन्त सिंह चन्देल
कलोल बिलासपुर हिमाचल प्रदेश

ज़िद्द
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बचपन से जिद करनी आती है,
तभी तो हमारे हौसले जिद्दी हैं।
कोशिश तो बहुत की आज तक,
पता चला फासले बड़े जिद्दी हैं।

इन्ही फासलों से मंजिल आती है,
मंजिल दूर ही सही हम जिद्दी हैं।
खूब डराया है तूने हमें आज तक,
हम तो यार जन्मजात से जिद्दी हैं।

मंजिल पंहुचने पर सुकून आती है,
हम नहीं हमारी रुह भी जिद्दी हैं।
दोस्त चलते रहे हैं पतली गली से,
मंजिल पा लई क्योंकि हम जिद्दी हैं।

कर्नल जसवन्त सिंह चन्देल
कलोल बिलासपुर हिमाचल प्रदेश ।

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