भृष्टाचार में हिमाचल, जाँच व सुरक्षा एजेंसियों पर उठते सवाल, सुक्खू सरकार की हो रही किरकिरी, मुख्यमंत्री के कुछ गुमराह करने वाले सलाहदाताओं पर भी उठ रहे सवाल
जिन जाँच व सुरक्षा एजेंसियों को सरकार करोड़ों रुपये तंख्वाह देकर पाल रही है वे खुद भृष्टाचार में डूबी निरंकुश होकर कार्य कर रही हैं। सरकार बदनाम हो रही है।
- Dr S K Sharma



- BMH
हिमाचल में जाँच व सुरक्षा एजेंसियों पर लगे सवालिया निशान, भ्रष्टाचार चरम पर

Editor-in-chief, HR MEDIA NETWORK, Chairman; Mission Against Corruption Bureau, HP. Mobile : 9418130904
हिमाचल प्रदेश में प्रशासनिक और सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि खुद मुख्यमंत्री तक की निजी जानकारी सुरक्षित नहीं रह गई है। उनकी गतिविधियाँ, खान-पान, बातचीत जैसी गोपनीय जानकारियाँ सार्वजनिक हो रही हैं, जिससे राज्य की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खुलती है। यदि सरकार के शीर्ष पद पर बैठे व्यक्ति की गोपनीयता भंग हो सकती है, तो आम नागरिकों की सुरक्षा का क्या होगा? यह स्थिति बताती है कि प्रदेश में जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पूरी तरह विफल हो चुकी है।
हाल ही में मुख्यमंत्री की सरकार गंभीर संकट में आ गई थी। इसकी मुख्य वजह सुरक्षा एजेंसियों की लापरवाही और प्रशासनिक कमजोरी बताई जा रही है। कई बार मुख्यमंत्री को राष्ट्रीय स्तर पर अपमान का सामना करना पड़ा है, जिससे सरकार की साख पर बट्टा लगा है।
प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने भी माना कि सुरक्षा और जांच एजेंसियां निष्क्रिय हो चुकी हैं। उन्होंने वादा किया था कि इन एजेंसियों को सुधारने के लिए कठोर कदम उठाए जाएंगे, लेकिन आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
जमीनी स्तर से जुड़े कार्यकर्ताओं की अनदेखी पड़ सकती है भारी
जैसा कि हर जमीनी स्तर से जुड़ा कांग्रेसी आज आक्रोश में है। उसे इस बात का दुख है कि उन्होंने अपना सर्वस्व पार्टी के लिए आज तक न्यौछावर किया लेकिन पार्टी में उनकी सुनने वाला कोई भी नहीं है। कोई भी उनकी सुध नहीं ले रहा
बार-बार चक्कर काटने के बावजूद भी उनके छोटे-छोटे काम नहीं हो रहे जिस वजह से उनका मन व्यथित हैं ।
सुक्खू सरकार के पास अपने कार्यकर्ताओं का दिल जीतने के लिए और उनमें पनप रहे आक्रोश को समाप्त करने के लिए और कुछ कर दिखाने के लिए मात्र डेट वर्ष शेष बचा है अंतिम वर्ष तो काउंट डाउन में चुटकियों में ही निकल जाएगा, तब वह अगर कार्यकर्ताओं के लिए कुछ करना भी चाहेंगे तब भी संभव नहीं होगा । फिर पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।
वह अगर ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब एक-एक करके तमाम कर्मठ कांग्रेसी कार्यकर्ता पार्टी छोड़ने को मजबूर होंगे और भाजपा का दमन थामना ही उनके लिए एक विकल्प होगा।
भ्रष्टाचार का नया गढ़ बनता हिमाचल
प्रदेश में भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी होती जा रही हैं। धर्मशाला स्थित विजिलेंस विभाग में वर्षों से कई मामले लंबित हैं, लेकिन उन पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
जब भ्रष्टाचार की जांच के लिए परमिशन लेंेे हेतु शिमला मुख्यालय में फाइलें भेजी जाती हैं, तो उन्हें कथिति रूप से ले दे कर रोक दिया जाता है, ठंडे बस्ते मैं डाल दिया जाता। इससे स्पष्ट होता है कि कुछ भ्रष्ट अधिकारी, राजनेता और प्रभावशाली लोग मिलकर इस तंत्र को चला रहे हैं।
सरकारी दफ्तरों में अनियमितताओं की भरमार है। विजिलेंस और अन्य जांच एजेंसियां निष्क्रिय बनी हुई हैं, जिससे भ्रष्टाचारियों को खुली छूट मिल गई है। जब कोई व्यक्ति किसी घोटाले की शिकायत दर्ज कराता है, तो उसे डराया-धमकाया जाता है। कई मामलों में पुलिस अधिकारी तक भ्रष्टाचारियों की मदद करते हैं और रिश्वत लेकर केस को दबा देते हैं। आम जनता न्याय की उम्मीद में अधिकारियों के चक्कर लगाती रहती है, लेकिन भ्रष्ट तंत्र के सामने उनकी आवाज दबा दी जाती है। इसके पुख्ता सबूत मौज़ूद हैं।
सरकार की कमजोरी और जनता का गुस्सा
इस स्थिति ने प्रदेश की छवि को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। सरकार को चाहिए कि वह तुरंत भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए ठोस रणनीति बनाए। जांच एजेंसियों को स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से काम करने की छूट दी जाए। रिश्वतखोरी में शामिल अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई हो और भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने वालों पर भी कानूनी शिकंजा कसा जाए।
स्वयं भृष्टाचार की शिकार हुई सुक्खू सरकार ने अगर जल्द कदम नहीं उठाए, तो कानून-व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो सकती है। जनता में असंतोष बढ़ता जा रहा है और सरकार की विश्वसनीयता दांव पर लगी है। सुरक्षा और प्रशासनिक तंत्र को मजबूत किए बिना हिमाचल प्रदेश में सुशासन की उम्मीद करना व्यर्थ होगा।





