सीएसआईआर-आईएचबीटी द्वारा नमहोल, बिलासपुर में सगंधित फसलों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन

किसानों ने आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम की सराहना की

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सीएसआईआर-आईएचबीटी द्वारा नमहोल, बिलासपुर में सगंधित फसलों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन

INDIA REPORTER TODAY
PALAMPUR : B.K. SOOD
SENIOR EXECUTIVE EDITOR

सीएसआईआर-आईएचबीटी, पालमपुर के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा 23 मार्च, 2021 को बिलासपुर जिले के तहसील नम्होल में औषधीय और सगंध पौधों की खेती एवं प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में 50  युवा किसानों ने प्रतिभागिता की। सगंध फसलों की खेती के लिए कृषि पद्धति, मिट्टी और जलवायु की आवश्यकता के बारे में किसानों को जागरूक किया गया। सीएसआईआर-आईएचबीटी द्वारा बंजर, परित्यक्त भूमि और जानवरों के खतरे से प्रभावित क्षेत्र में सुगंधित फसलों के संवर्धन और खेती के लिए अरोमा मिशन शुरुआत की है।

डॉ॰ राकेश कुमार, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक व अरोमा मिशन चरण -2 के सह-नोडल द्वारा किसानों को सगंधित तेलों के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में बड़ी मांग के बारे में अवगत करवाया, जो 2019 में 8.99 बिलियन अमरीकी डालर थी और 2025 तक इसके 9.3% सीएजीआर (चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर) से बढ़ने का अनुमान है।

बिलासपुर जिले के नम्होल तहसील का पहाड़ी क्षेत्र जंगली गेंदा, सगंधित जिरेनियम, रोज़मेरी और दमस्क गुलाब इत्यादि सुगंधित फसलों की खेती के लिए उपयुक्त है। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम सीएसआईआर-आईएचबीटी, पालमपुर और श्री धरन फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड सोसाइटी के मुखिया श्री बी. आर. ठाकुर की पहल से आयोजित किया गया था।

उन्होंने वैज्ञानिकों को बताया कि ज्यादातर ग्रामीणों ने जानवरों द्वारा किए जाने वाले फसल नुकसान के कारण इस क्षेत्र में पारंपरिक फसल की खेती छोड़ दी है और एक दशक से अधिक समय तक जमीन में किसी प्रकार की खेती नही की गई है। क्षेत्र के किसानों को वैज्ञानिकों की टीम द्वारा सलाह दी गई कि वे इस प्रकार की प्रभावित या परित्यक्त भूमि में सगंध फसलों की खेती कर सकते हैं।

किसानों को इस क्षेत्र के लिए उपयुक्त सगंधित फसलें जैसे सगंध जिरेनियम और रोज़मेरी उगाने का सुझाव दिया गया जो कि पारंपरिक फसलों के लिए एक विकल्प हैं, क्योंकि ये उच्च मूल्य फसलें हैं और जंगली व आवारा जानवरों से प्रभावित नहीं होती हैं; तथा जैविक व अजैविक तनावों को सहन करने की क्षमता रखती है।

क्षेत्र के किसानों को इन सुगंधित फसलों की खेती के बारे में कुछ अधिक जानकारी नही थी, लेकिन वे इन फसलों में रुचि रखते थे क्योंकि उनकी भूमि जानवरों के खतरे से प्रभावित है और वहाँ पर किसानों ने खेती करना लगभग छोड़ दिया है। किसानों को समूह में काम करने और बड़े क्षेत्र में इन सगंधित फसलों की खेती करने की सलाह दी गई, ताकि उनके क्षेत्र में सगंधित तेल प्रसंस्करण इकाई स्थापित की जा सके।

सुगंधित जरेनियम और जंगली गेंदा के प्रति किलो सगंधित तेल का भारतीय बाजार मूल्य क्रमशः 15,000 से 18,000 और 8,000 से 10,000 रुपए, जबकि उपज 25-30 किलोग्राम/हेक्टेयर है। रोज़मेरी के सगंधित तेल का बाजार मूल्य 4,000-5,000 रुपये है, जबकि सगंध तेल उपज 80-100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। इस क्षेत्र के लिए एक और उपयुक्त उच्च मूल्य वाली सुगंधित फसल दमस्क गुलाब है, जिसमें सगंध तेल उपज 600-700 ग्राम/हेक्टेयर और प्रति किलो तेल का बाजार मूल्य लगभग 7-8 लाख रुपये है।

डॉ॰ संजय कुमार, निदेशक सीएसआईआर – आईएचबीटी पालमपुर ने अपने संदेश में बताया कि कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों के लिए लेमनग्रास और पामारोसा उपयुक्त फसलें हैं जबकि जंगली गेंदा, दमस्क गुलाब, रोज़मेरी और सगंधित जिरेनियम हिमाचल प्रदेश के मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में उपयुक्त रूप से उगाई जा सकती हैं। वैज्ञानिकों की टीम द्वारा इन सगंध फसलों के मूल्य संवर्धन, विपणन व बाज़ारीकरण के बारे में भी चर्चा की गई।

इस क्षेत्र के किसानों ने आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम की सराहना की और वैज्ञानिकों से भविष्य में भी इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने का अनुरोध भी किया। श्री धरन फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड सोसाइटी के निदेशक के श्री बी. आर. ठाकुर ने बताया कि जानवरों के खतरे के कारण बेकार पड़ी भूमि में अब इन उच्च मूल्य वर्धक सगंधित फसलों की खेती कि जाएगी जिसके कारण किसानों को आजीविका में मदद मिलेगी। किसानों को जंगली गेंदा के बीज और रोज़मेरी व सगंधित जरेनियम के पौधे भी वितरित किए गए।

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