सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर में केसर व हींग की कृषि तकनीकों पर दक्षता विन्यास कार्यक्रम संपन्न

हिमाचल प्रदेश को केसर एवं हींग का प्रमुख उत्पादक राज्य बनाने के अपने संकल्प को भी दोहराया निदेशक डॉ संजय कुमार ने

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RAJESH SURYAVANSHI
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सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर में केसर व हींग की कृषि तकनीकों पर दक्षता विन्यास कार्यक्रम संपन्न

सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर में 06-10 सितंबर, 2022 को केसर व हींग की उत्पादन तकनीक पर कृषि विभाग, हिमाचल प्रदेश के कृषि अधिकारियों हेतु पांच दिवसीय दक्षता विन्यास कार्यक्रम संपन्न हुआ।

 

 

इस कार्यक्रम में हिमाचल के चंबा, कांगड़ा, किन्नौर कुल्लू, लाहौल स्पीति और मंडी जिला के तेरह कृषि विकास अधिकारी और कृषि विस्तार अधिकारी ने प्रतिभागिता की संस्थान के निदेशक डॉ संजय कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित परियोजनाओं को कृषि से संपदा योजना के अन्तर्गत राज्य कृषि विभाग के सहयोग से केसर और हींग की खेती का विस्तार कर रहा है।

इस गतिविधि को जारी रखते हुए हिमाचल प्रदेश के गैर पारंपरिक क्षेत्रों में केसर एवं हींग की सफल खेती हेतु समय-समय पर किसानों के प्रक्षेत्रों एवं सीएसआईआर-आईएचबीटी में प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जा रहा है।

उन्होंने हिमाचल प्रदेश को केसर एवं हींग का प्रमुख उत्पादक राज्य बनाने के अपने संकल्प को भी दोहराया।

उन्होंने कृषि अधिकारियों को केसर एवं हींग की खेती को प्रत्येक क्षेत्र में संस्थान की टीम के सहयोग का आश्वासन भी दिया।

डॉ. राकेश कुमार, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक एवं कार्यक्रम समन्वयक (दक्षता विन्यास कार्यक्रम) ने देश की अर्थव्यवस्था के लिए मसाला फसलों, केसर और हींग के उत्पादन के महत्व के बारे में चर्चा की।

उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम में संस्थान के संकाय सदस्यों द्वारा कृषि तकनीक, बुवाई, स्थल चयन, मिट्टी के नमूने, वृक्षारोपण, वृक्षारोपण तकनीक, पोषक तत् प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन, कीट प्रबंधन, कटाई, भंडारण, पैकेजिंग और केसर व हींग के उन तक संवर्धन तकनीकों पर जानकारी प्रदान की गई।

प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में कैंसर की वार्षिक मांग लगभग 100 टन है जबकि जम्मू और कश्मीर में केवल 9-13 टन का उत्पादन होता है जो देश की मांग आपूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं है, अतः ईरान व अफगानिस्तान जैसे देशों से इसका आयात किया जाता है।

इन फसलों के आयात को कम करने के लिए, इसकी खेती के लिए वैकल्पिक स्थलों का चयन और कृषि अधिकारियों व किसानों को प्रशिक्षित करने पर बल दिया गया है।

वर्तमान में केसर केवल जम्मू-कश्मीर के पंपोर और किवाड़ क्षेत्र में उगाया जा रहा है।

डॉ. अशोक कुमार, परियोजना अधिक (हींग परियोजना), ने बताया कि इसी प्रकार अफगानिस्तान, ईरान और उज्बेकिस्तान से 1540 टन हींग आयात करने के लिए देश प्रति वर्ष लगभग 942 करोड़ रुपये खर्च करता है।

भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए आवश्यक हैं कि इन मसाला फसलों के उत्पादन के लिए उपयुक्त क्षेत्रों में इनकी खेती की जाए।

पाँच दिवसीय कार्यक्रम में कृषि अधिकारियों को केसर व हींग की उन्नत कृषि तकनीक, गुणवत्ता विश्लेषण, जैविक तथा अजैविक स्ट्रेस प्रबंधन एवं फसलोपरांत परक्रामण एवं भंडारण के बारे में व्यावहारिक प्रदर्शन के माध्यम से जानकारी दी गई।

अधिकारियों को केसर एवं हींग की ऊतक संवर्धन तकनीकों से भी रूबरू कराया गया एवं उसका व्यावहारिक अनुभव भी दिया गया।

पांच दिवसीय क्षमता निर्माण कार्यक्रम का समापन 10/09/2022 को कृषि अधिकारियों को भागीदारी प्रमाण पत्र के वितरण और डॉ. संजय कुमार, निदेशक, सीएसआईआर-आईएचबीटी और कृषि अधिकारियों की एक संक्षिप्त बातचीत के साथ हुआ।

निदेशक महोदय ने समापन सत्र में कृषि अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि हिमाचल प्रदेश को केसर एवं हींग का अग्रणी निर्माता बनाना ही इस परियोजना का उद्देरा है।

केसर एवं हींग का अधिक से अधिक उत्पादन इस क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने हेतु अति आवश्यक है। उन्होंने आगे कहा की की इस परियोजना को सफल बनाने में कृषि अधिकारियों का अहम भूमिका रहेगी।

निदेशक महोदय ने प्रतिभागियों को पूरे सहयोग का आश्वासन दिया तथा आहवान किया कि कैंसर और हींग की अच्छी कृषि पद्धतियों का विस्तार अपने क्षेत्रों में करें ताकि किसानों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके।

डा सनतसुजात सिंह, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक एवं विभागाध्यक्ष कृषि प्रौद्योगिकी प्रभाग द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया एवं इस परियोजना की सफलता की कामना की।

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