अविभावक भी बन सकते हैं अपने बच्चों के शिक्षक

2-6 वर्ष की आयु मानव जीवन का एक ऐसा चरण है जहाँ भविष्य की नींव रखी जाती है

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अविभावक भी बन सकते हैं अपने बच्चों के शिक्षक

INDIA RPORTER FEATURE
PALAMPUR

डा. मधुर कटोच, डा. राज पठानिया व गोल्डी चोपड़ा
मानव विकास एवं पारिवारिक अध्ययन विभाग
कॉलेज ऑफ़ कम्युनिटी साइंस, चौ॰ स॰ कु॰ कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर

प्रौद्योगिकी एवं उन्नत कंप्यूटर के इस युग में सभी अभिभावक अपने बच्चों के लिए जीवन के हर क्षेत्र में सर्वोतम सफलता चाहते हैं। परिवार बच्चे की पहली पाठशाला है और माता-पिता बच्चे के प्रथम शिक्षक। अपने सम्पूर्ण विकास के लिए बच्चा अपने माता.पिता के मार्गदर्शन पर निर्भर होता है। माता-पिता का सबसे अहम् योगदान देने की भूमिका का आरम्भ होता है फॉर्मल स्कूल शुरू होने से पहले। अगर 6 वर्ष से पहले माता.पिता बच्चे को मूल अवधारणाओं से परिचित करवाएं तो उसके सफल होने के अवसर बढ़ जाते हैं। एक स्पश्ट अंतर देखा जा सकता है उन बच्चों में जिनके माता-पिता उनके अधिगम में सक्रिय रूप से शामिल रहते हैं तथा उन बच्चों में जिनके अविभावक उनके अधिगम में रूचि नहीं लेते। यह अंतर बच्चे की क्षमता में, उसकी कार्य गुणवत्ता में, अभिवृति व उसकी आत्म छवि मे देखा जा सकता है।

पूर्व बाल्यावस्था (2-6 वर्ष) की आयु मानव जीवन का एक ऐसा चरण है जहाँ भविष्य की नींव रखी जाती है। बालक एक ऐसे स्पंज की तरह होता है जिसमें आप जो भी डालते जाएँ वह सब सोख लेता है। इस आयु मे बच्चे के मस्तिष्क का 85 प्रतिशत तक विकास हो जाता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी 2-6 वर्ष की आयु के बच्चों में उचित देखभाल व मस्तिष्क के उद्दीपन सम्बंधित गतिविधियां प्रदान करने पर बल दिया गया है। मानव विकास विशेषज्ञों के अनुसार यदि माता-पिता 2-6 वर्श से यदि उद्दीपन क्रियाएं उपलब्ध करें तो बच्चे में उन क्रियाओं व अवधारणाओं की नींव उनके सम्पूर्ण जीवन काल तक रहेगी ।

सुनने के कौशल का विकास

बच्चे बहुत से अवसरों से चूक जाते हैं सिर्फ इसलिए क्योंकि वे ध्यान से नहीं सुनते हैं। जब तक बच्चा हाई स्कूल या कॉलेज पहुँचता है, 75 प्रतिषत षैक्षिक अधिगम सुनने के माध्यम से व बाकी 25 प्रतिशत पढ़ने से होता है। इसलिए जितनी जल्द बच्चा अच्छे से सुनना सीखे उसके लिए उतना ही उत्तम होगा।
एक छोटे बालक के साथ अविभावकों को यह ध्यान में रखना होगा की बच्चे की ध्यान अवधि बहुत कम व उसका शब्द भंडार सीमित होता है। सर्वप्रथम बच्चे से यह उम्मीद न करें कि वह कुछ मिनटों से ज्यादा आपके द्वारा दी गयी व्याख्या या किसी चीज़ का विवरण सुनेगा। अगर बच्चे को रोचक जानकारी मिलती है तभी उसकी सुनने की अवधि में इज़ाफ़ा होगा।

निम्नलिखित क्रियाओं को करवाने से बालक की श्रवण कुशलता में वृद्धि होगीः

1. बच्चे को रोज कुछ न कुछ पढ़ कर सुनाएँ। कहानियां व कवितायेेँ बच्चे की भाषा विकास में तो सहायता करती ही हैं साथ ही इससे श्रवण कुशलता भी बढ़ती है। कहानी सुनाने के बाद बच्चे को उसी कहानी को दोहराने को कहें । इससे बच्चे का मानसिक विकास भी होता है।

2. लय पैटर्न में ताली बजाएं वह बच्चे को उस लय को दोहराने को कहें। आसान सी लय से शुरुआत करें तथा अलग-अलग लय जोड़ते जाएँ। बच्चा ध्यान से सुनने की कोशिश करेगा और समय के साथ उसका यह कौशल परिष्कृत होता जायेगा।

3. बच्चे को एक श्रृंख्ला में दिशा-निर्देश दीजिये – जैसे, दरवाजे तक जाओ, एक सर्किल में घूमो, चार बार कूदो इत्यादि। धीरे-धीरे इन क्रिया श्रृंखलाओं को बढ़ाते जाएँ, जहाँ तक बच्चा बिना हताष हुए इनका अनुसरण कर सके।

4. छोटे वाक्य बोलें व बच्चे को उन्हें दोहराने के लिए कहें। धीरे-धीरे इन वाक्यों में एक एक षब्द जोड़ते जाएँ और फिर उन्हें दोहराने को कहें- जैसे लड़की दौड़ रही है, छोटी लड़की दौड़ रही है, छोटी लड़की मैदान में दौड़ रही है।

किताबें हमारी सबसे अच्छी मित्र हैं – यह कहावत बहुत पुरानी है। बच्चों में किताबें पढ़ने की आदत होना आजकल के युग में बहुत अहम् है। आजकल बच्चे टी वी, मोबाइल, वीडियो गेम्स में अपना अधिक समय व्यतीत करते हैं। माता-पिता भी बच्चों से सहभागिता करने की बजाये उन्हें मोबाइल थमा देते हैं जिसके कारण बच्चों का सही विकास नहीं हो पाता है।

बच्चों में किताबें पढ़ने की आदत डालने की कुंजी इसमें नहीं है कि आप सिर्फ उन्हें किताबें प्रदान करें अपितु इसमें है कि उन्हें पढ़ने का शक किस तरह से उत्पन्न करें और यहीं पर माता-पिता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। निम्नलिखित दी गयी क्रियाएं जिनका अधिगम के अन्य क्षेत्रों में भी उपयोग होता है, जैसे (कला, मौखिक, भाषा एवं शारीरिक शिक्षा इत्यादि) बालक के पढ़ने की तत्परता का भी विकास करती हैं।

बच्चों में पढ़ने की तत्परता या तैयारी से संबंधित क्रियाएं करने पर बच्चे में और सीखने की इच्छुकता बढ़ेगी और वह शब्दों, अक्षरों को पहचानने की चाह करेगा। अगर बालक अक्षरों या शब्दों को सीखने में रूचि न दिखाए तो उसे रेडीनेस (तत्परता) से सम्बंधित गतिविधियां कराते रहें। बालक पर दवाब न बनायें। उसे अपनी गति से सीखने दंे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में मूलभूत साक्षरता व संख्यात्मक मिषन के अंतर्गत जिसमे प्राथमिक कक्षा तक के बच्चों को पढ़ने लिखने व अंकों की जानकारी होना अति आवश्यक माना गया हैै।

पढ़ने की तैयारी या तत्परता से संबंधित गतिविधियां/क्रियाएं:

1. क्रमबद्धता: अलग-अलग आकार के पांच बटन एकत्रित करें। बच्चे को सबसे छोटे बटन को ढूंढने के लिए कहंे। फिर आप छोटे से सबसे बड़े बटन को क्रम में लगाएं व बच्चे को इस बारे में समझाएं। अब बटनों को दुबारा एकत्रित करें और उसे सबसे बड़ा बटन ढूंढने को कहें। अब उसे सबसे बड़े से सबसे छोटे बटन को क्रम में लगाने को कहें।
2 स्मरणशक्तिः टेबल पर बहुत सारी अलग-अलग चीज़ें रखें। अब दो चीज़ों का नाम लें और उसे उसी क्रम में उन चीज़ों को उठाने के लिए कहें। फिर तीन और चार चीज़ों के नाम लें व धीरे धीरे क्रम बढ़ाते जाएँ। एक दूसरी क्रिया में टेबल पर कुछ चीज़ें रखें जैसे पेन्सिल, बोतल, किताब, खिलौना प्लेट इत्यादि। फिर बच्चे को उन सब चीज़ों को ध्यान से देखने को कहें। बच्चे को दूसरी तरफ धूमने को कहें। एक चीज़ हटा दें। बच्चे से दुबारा उन चीज़ों को देखने को कहें। आप चीज़ें बदल भी सकते हैं। ये क्रियाएं माताएं किचन में खाना बनाते हुए भी कर सकती हैं।
3 चाक्षुक भेदबोध: छः सिक्के ले कर उन्हें एक लाइन में हेड, टेल, टेल, टेल, हेड, टेल का पैटर्न बना कर रखें। पहला सिक्का बच्चे को दिखा कर उसे उसके जैसा सिक्का ढूंढने को कहें।
4 आँख हाथ समन्वय: बच्चे को कैंची से पुराने अख़बार या मैगज़ीन से चित्र काटने को प्रोत्साहित करें। किसी भी चित्र पे कलर करना या डॉटेड लाइन्स पर पेंसिल चलाने से आँख हाथ समन्वय बढ़ता है।
5 वर्गीकरणः टेबल पर कुछ चीज़ें रखें। जो एक दूसरे से किसी न किसी तरह से सम्बंधित हांे सिर्फ एक चीज़ को छोड़ कर। जैसे पेंसिल, कॉपी, रबर, षार्पनर व सेब। अब बच्चे को सबसे अलग चीज़ चुनने को कहें व उससे पूछें की उसने उस चीज़ को क्यों चुना।
6 अक्षर परिचय: आप जान जाओगे जब आपका बच्चा अक्षर सीखने को तैयार होगा क्योंकि व अक्षरों में वास्तविक रूचि लेना षुरू कर देगा और उन्हें पहचानने लगेगा। साढ़े तीन वर्ष की आयु के बच्चों में ये रूचि देखने को मिलती है पर ये पूरी तरह से 4.5 वर्ष की आयु तक विकसित होती हैं। कैपिटल अक्षर से षुरुआत करें। एक समय पर एक ही अक्षर पर ध्यान दें। आप अपने बच्चे के नाम वाले अक्षर से षुरुआत कर सकते हैं।

अक्षर परिचय से सम्बंधित क्रियाएं:

1. गूंधे हुए आटेे या क्ले से अक्षर बनायें व बच्चे को अक्षर बनाने को कहें इस क्रिया से बच्चे खेल खेल में अक्षर सीख जाते हैं। जब आपका बच्चा तीन या चार अक्षर पहचानने लगे तो 3ध्4 इंच के फ़्लैष कार्ड्स बनायें जिसमे तीन से चार फ़्लैश कार्ड्स में वो अक्षर लिखे हों जिन्हें बच्चा पहचानता हो और तीन चार कार्ड्स में वो अक्षर हों जिन्हे बच्चा पहचानता न हो। अब इन फ़्लैश कार्ड्स को एक-एक करके बच्चे को दिखाते जाएँ। जिन अक्षरों को बच्चा पहचान ले उन्हें बच्चे को दे दें।
याद रखें की बच्चा जब नये अक्षर सीखने के लिए तैयार हो तभी उसको नये अक्षरों से परिचित करवाएं। आप उसकी रीडिंग कौशल की नींव रखने पर काम कर रहें हैं। इस में दो से छः माह या पूरा साल भी लग सकता है। जब आपका बच्चा सभी कैपिटल लेटर्स को पहचान ले तो आप छोटे अक्षरों की पहचान करवा सकते हैं। उन अक्षरों से षुरुआत करें जो बड़े अक्षरों से मेल खाते हैं। अब बड़े व छोटे अक्षरों के कार्ड्स बनाएं व बच्चे को उन्हें मिलाने के लिए कहें। जो अक्षर वह सीख चुका है उन्हीं के साथ यह क्रिया करें।

निश्कर्ष:

सदा बच्चे को अच्छा करने के लिए प्रोत्साहित करें। अगर वह गलत करता है तो नकरात्मक टिप्पणियां न दें। बच्चे की दूसरे बच्चे के साथ तुलना न करें। आपके इस व्यव्हार से बच्चे में आत्म-सम्मान की कमी हो जाती है। इस बात का हमेषा ध्यान रखें की हर एक बालक अपने आप में अनोखा है व हर बालक की सीखने की गति भी अलग है। अपने बच्चे की गति को पहचानने व जिस क्षेत्र में वो कमजोर है उस पर जोर दंे। इस आयु के बालकों को प्ले-वे मेथड यानि खेल विधि के द्वारा शिक्षा दें।
यह वह विधि है जो बालक को उसी उत्साह से सीखने की क्षमता देती है जो उसके स्वाभाविक खेल में पाई जाती है। इस विधि से बालक वो चीज़ें सीखता है जो वह औपचारिक षिक्षा से नहीं सीख पाता। ऊपर दी गयी क्रियाओं को सरल वातावरण में बिना कठोरता के खेल विधि से बच्चों को करवाएं व आप देखेंगे कि आपका बच्चा इन क्रियाओं का आनंद लेते हुआ बहुत कुछ सीख जायेगा।

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