आपदा प्रबंधन से जुड़ी गतिविधियों के प्रति रहें संवेदनशील: रोहित राठौर एडीएम ने कांगड़ा भूकम्प स्मारक पर 1905 के भूकंप की 117 वीं वर्षगांठ पर पीड़ितों को किया याद
आपदा प्रबंधन से जुड़ी गतिविधियों के प्रति रहें संवेदनशील: रोहित राठौर
एडीएम ने कांगड़ा भूकम्प स्मारक पर 1905 के भूकंप की 117 वीं वर्षगांठ पर पीड़ितों को किया याद
धर्मशाला, 04 अप्रैल: एडीएम रोहित राठौर ने आज कांगड़ा घाटी के इतिहास में सबसे विनाशकारी और भयानक भूकंप में 20,000 से अधिक लोगों की जान जाने के 117 साल के बाद भूकंप स्मृति दिवस पर पुराना कांगड़ा रोड़ स्थित भूकंप स्मारक पर स्मरणोत्सव में भाग लेते हुए माल्यार्पण किया।
स्मारक कार्यक्रम में एसडीएम कांगड़ा अरूण शर्मा, तहसीलदार परवीन कुमार, ईओ, पार्षद प्रेम सागर, जिला रेडक्रॉस सोसायटी के सचिव ओपी शर्मा, अध्यक्ष और कांगड़ा नगर परिषद् के पार्षद, डीडीएमए समन्वयक भानू शर्मा, रोबिन्न, हरजीत भुल्लर, प्रतिष्ठित नागरिक, गैर सरकारी संगठन के सदस्य और स्वयंसेवक भी शामिल थे। स्मरणोत्सव के दौरान पीड़ितों की स्मृति में एक मिनट का मौन भी रखा गया।
भूकंप स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद, रोहित राठौर ने कहा कि ‘‘एतिहासिक घटनाओं को याद रखना महत्वपूर्ण है क्योंकि एक स्मृति आपदा प्रबंधन का मित्र है’’। उन्होंने स्थानीय नगर पालिका, गैर सरकारी संगठनों, स्वयंसेवकों और रेडक्रॉस टीम को उन लोगों को लगातार याद करने के लिए बधाई दी जो भूकंप के दौरान मारे गये थे।
उन्होंने बताया कि भूकंप 04 अप्रैल, 1905 को भारत में तत्कालीन पंजाब प्रांत (आधुनिक हिमाचल प्रदेश) के कांगड़ा घाटी और कांगड़ा क्षेत्र में स्थानीय समयानुसार लगभग 01 बजे सुबह के आसपास आया था। भूकंप की तीव्रता 7.8 मापी गई थी। भूकंप की तीव्रता के कारण भूकंप से एक लाख से अधिक इमारतें ध्वस्त हो गई थीं। कम से कम 20 हजार लोगों के मारे जाने का अनुमान था और 53 हजार घरेलू जानवर भी खो गये थे। इसके अलावा, कांगड़ा, मैकलोडगंज और धर्मशाला शहरों में अधिकांश इमारतें नष्ट हो गई थीं।
उन्होंने बताया कि 117 वर्षों में, भूकंप ने किसी भी अन्य प्राकृतिक खतरे की तुलना में अधिक लोगों की जान ली है। भूकंप में होने वाली प्रमुख आपदाओं से लगभग 18 लाख मौतें हुई हैं। पिछले 100 वर्षों के कुछ सबसे घातक भूकंप तुर्की, ताइवान, इंडोनेशिया, भारत, ईरान, चीन, हैती और नेपाल में पिछले बीस वर्षों में आए हैं, जिनमें कुल मिलाकर पांच लाख लोगों की मौत, कई घायल और लाखों का जीवन बाधित हुआ है।
उन्होंने बताया कि कम समय में ये विनाशकारी घटनाएं जनसंख्या वृ़िद्ध और शहरीकरण से प्रेरित 21वीं सदी में जोखिम और जोखिम के बारे में एक मजबूत संदेश देती हैं। जोखिम को कम करने के लिए उचित भूमि उपयोग और भवन कोड महत्वपूर्ण हैं।
एडीएम ने टीम के सदस्यों और डीडीएमए, रेडक्रॉस, कांगड़ा नगर समिति के स्वयंसेवकों और एजुकेयर के एनजीओ स्वयंसेवकों से भी मुलाकात की। उन्होंने भूकंप प्रतिरोधी भवन संरचनाओं के निर्माण के लिए राजमिस्त्री के प्रशिक्षण के लिए डीडीएम टीम की सराहना की। उन्होंने आपदा प्रतिक्रिया तैयारियों के लिए युवा स्वयंसेवकों के एक कार्यबल को जुटाने और प्रशिक्षित करने के लिए रेडक्रॉस स्वयंसेवी टीम को संबोधित किया और उसकी सराहना की। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि हिमाचल प्रदेश के हिमालयी क्षेत्र में निकट भविष्य मेें बड़े भूकंप आने की संभावना है, जो कि बड़े विनाश का कारण बन सकता है और दो लाख से अधिक लोगों की मौत हो सकती है यदि हम जोखिम में कमी और आपातकालीन प्रतिक्रिया पर कड़ी मेहनत नहीं करते हैं।
इस दौरान एडीएम ने दो प्रशिक्षित रेडक्रॉस स्वयंसेवकों की सहायता की। ढलियारा की स्वर्णा देवी, सीपीआर देकर एक बच्चे की जान बचाने के लिए और सुनील कुमार को एक परिवार को बचाने के लिए जो बोह घाटी में अचानक आई बाढ़ के दौरान इमारत के भारी मलबे मे दब गये थे। उन्होंने आपदा प्रबंधन के समर्थन में रेडक्रॉस के जनादेश और भूमिका पर प्रकाश डाला।
उन्होंने एडुकेयर सेंटर फॅॉर एनवायरनमंेट में रेडक्रॉस के तत्वाधान में आपात स्थिति और आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण इकाई में आपदा जोखिम न्यूनीकरण और प्रतिक्रिया तैयारी के लिए डीडीएमए वेबसाइट और पीरआरआई और आशा कायकर्ताओं के प्रशिक्षण का उद्घाटन किया। उन्होंने ग्राम आपदा प्रबंधन योजनाओं को विकसित करने में मदद करने के लिए पंचायती राज संस्थाओं, आशा कार्यकर्ताओं, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, महिला मंडलों, युवा मंडलों की भूमिका पर जोर दिया।
उन्होंने कहा कि आने वाले दो वर्षों में 300 आपदा मित्रों को प्रशिक्षित किया जाएगा। उन्होंने स्वयंसेवकों से किसी भी आपदा के लिए तैयार रहने को आह्वान किया, जिसमें संभावित उच्च तीव्रता वाले भूकंप भी शामिल हैं, जिनके बारे में कई विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है।
इस दौरान अधिकारियों ने एक प्रतिज्ञा ली और स्थानीय आबादी के बीच जोखिम में कमी और प्रतिक्रिया तैयारियों की क्षमता के लिए कड़ी मेहनत करने की कसम खाई।