पत्रकारिता का गिरता स्तर लोकतंत्र के लिए घातक. चाटूकारिता छोड़ एकजुट होकर जनहित में कार्य करें पत्रकार : देसराज बंटा, वरिष्ठ पत्रकार
हिंदी पत्रकारिता दिवस के उपलक्ष्य में हिमाचल प्रदेश की पत्रकारिता के चमकते सितारे, वरिष्ठ पत्रकार व पालमपुर के पत्रकारों और पत्रकारिता के मसीहा माननीय देस राज बंटा को HR MEDIA GROUP के एडिटर-इन-चीफ़ व मिशन अगेंस्ट करप्शन के संस्थापक चेयरमैन श्री राजेश सूर्यवंशी व भूतपूर्व चेयरमैन, पंचायत समिति पंचरुखी व हिमाचल प्रदेश पंचायती राज संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष, वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी श्री रमेश भाऊ ने पूरी टीम की ओर से बुके भेंट कर सम्मानित किया तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके 65 वर्ष की पत्रकारिता के लंबे योगदान की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
उल्लेखनीय है कि श्री देसराज बंटा के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए न जाने कितने ही लोगों ने पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रख कर अपना भाग्य आजमाया और सर्वस्व प्राप्त किया। लेकिन पत्रकारिता के क्षेत्र में जो मां-सम्मान व प्रतिष्ठा बंटा जी को मिली वह किसी अन्य कक नसीब न हो सकी।
ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि देसराज बंटा जी ने अपना सर्वस्व पत्रकारिता को समर्पित कर दिया। उन्होंने पत्रकारों की दयनीय दशा को सुधारने हेतु कई महत्वपूर्ण कदम उठाए और सरकार को मांगें मानने के लिए मजबूर कर दिया। आज पत्रकार जो मान-प्रतिष्ठा का आनंद उठा रहे हैं उसके सूत्रधार श्री देसराज बंटा जी ही हैं। इसीलिए उनके योगदान को भुलाना नामुमकिन है।
इसीलिए उन्हें इस सम्मान से नवाजा गया। हम उनके बेहतर स्वास्थ्य व लंबी उम्र की दुआएं मांगते हैं।
इस अवसर पर बंटा जी ने समस्त पत्रकार वर्ग को हिंदी पत्रकारिता दिवस पर शुभकामनाएं देते हुए कहा कि पत्रकारों को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को मजबूत करने का कार्य करना चाहिए।
उन्होंने पहले की और आज की पत्रकारिता व पत्रकारों की तुलना करते हुए जो चंद शब्द कहे वे पत्रकार जगत को झिंझोड़ कर रख देने वाले थे। उन्होंने कहा कि आज पत्रकारिता का स्तर जिस तेजी से नीचे गिरता जा रहा है वह घोर चिंता का विषय है। आज अनेक पत्रकार और पत्रकारिता अवसरवादिता, मौकापरस्ती, राजनीतिज्ञों व चंद पूंजीपतियों की रखैल बन कर रह गए हैं। जनहित से उन्हें कोई सरोकार नहीं रहा है। मात्रा स्वार्थपुर्ति ही पत्रकारिता का मुख्य ध्येय बन कर रह गई है।
कुछ अखबारों के मालिक और पत्रकार अपने उद्देश्य से भटक कर अपनी वास्तविक पहचान भूल बैठे हैं। कौन किस राजनीतिज्ञ का पिछलग्गु है बस यही अधिकतर पत्रकारों की पहचान बन चुकी है जोकि लोकतंत्र के शक्तिशाली चौथे स्तंभ व लोकतंत के लिए घातक सिद्ध हो रही है। इससे बचना होगा।
रमेश भाऊ जी ने इस दिवस की महिमा का गुणगान करते हुए बंटा जी के पत्रकारिता में किये गए योगदान को सराहा व बंटा जी की लंबी उम्र के लिए ईश्वर से दुआ मांगी।
इस यादगार दिवस का वीडियो भी यूट्यूब पर newstime reporter tv पर आज रात्रि पाठकों के सेवा में उपलब्ध रहेगा।
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प्रबुद्ध पाठकगणों को आज मैं हिंदी दिवस से जुड़े कुछ विशेष केंद्र बिंदुओं से परिचित करवाना चाहूंगा।
भाषा में ‘उदन्त मार्तण्ड’ के नाम से पहला समाचार पत्र 30 मई, 1826 में निकाला गया था। इसलिए इस दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने इसे कलकत्ता से एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर शुरू किया था। इसके प्रकाशक और संपादक भी वे खुद थे। इस तरह हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले पंडित जुगल किशोर शुक्ल का हिंदी पत्रकारिता जगत में विशेष सम्मान है।
- यह साप्ताहिक पत्र पुस्तकाकार (12×8) छपता था और हर मंगलवार को निकलता था।
- इसके कुल 79 अंक ही प्रकाशित हो पाए थे कि डेढ़ साल बाद दिसंबर, 1827 ई. को इसका प्रकाशन बंद करना पड़ा।
- कंपनी सरकार ने मिशनरियों के पत्र को तो डाक आदि की सुविधा दे रखी थी, परंतु चेष्टा करने पर भी “उदंत मार्तंड” को यह सुविधा प्राप्त नहीं हो सकी।
- इस पत्र में ब्रज और खड़ी बोली दोनों के मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता था जिसे इस पत्र के संचालक “मध्यदेशीय भाषा” कहते थे।
- पंडित जुगल किशोर ने सरकार ने बहुत अनुरोध किया कि वे डाक दरों में कुछ रियायत दें जिससे हिंदी भाषी प्रदेशों में पाठकों तक समाचार पत्र भेजा जा सके, लेकिन ब्रिटिश सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई। अलबत्ता, किसी भी सरकारी विभाग ने ‘उदन्त मार्तण्ड’ की एक भी प्रति खरीदने पर भी रजामंदी नहीं दी।
उदन्त मार्तण्ड का शाब्दिक अर्थ है ‘समाचार-सूर्य‘। अपने नाम के अनुरूप ही उदन्त मार्तण्ड हिंदी की समाचार दुनिया के सूर्य के समान ही था। उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन मूलतः कानपुर निवासी पं. जुगल किशोर शुक्ल ने किया था। यह पत्र ऐसे समय में प्रकाशित हुआ था जब हिंदी भाषियों को अपनी भाषा के पत्र की आवश्यकता महसूस हो रही थी। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर ‘उदन्त मार्तण्ड‘ का प्रकाशन किया गया था।
परतंत्र भारत की राजधानी कलकत्ता में अंग्रजी शासकों की भाषा अंग्रेजी के बाद बांग्ला और उर्दू का प्रभाव था। इसलिए उस समय अंग्रेजी, बांग्ला और फारसी में कई समाचार पत्र निकलते थे। हिंदी भाषा का एक भी समाचार पत्र मौजूद नहीं था। 1818-19 में कलकत्ता स्कूल बुक के बांग्ला समाचार पत्र ‘समाचार दर्पण’ में कुछ हिस्से हिंदी में भी होते थे।