दया करो मगर सोच समझ कर, लेने के देने पड़ गए भाई

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Palampur

Dr. Anil Sood

मैं टाण्डा अस्पताल में अपने टेस्ट करवाने गया। फुरसत मिलने पर उधर मौजूद कैंन्टीन से ब्रेड पकोड़ा और जूस खरीदा और मज़े से वहीं खड़े खड़े खाना पीना शुरू कर दिया। उसी वक़्त मेरी नज़र कुर्सी पर बैठे एक छोटे बच्चे पर पड़ी जो बड़ी हसरत से मुझे ही देख रहा था। मैंने इंसानी हमदर्दी में जल्दी से उस बच्चे के लिए भी चिप्स और जूस खरीदे जो बच्चे ने बिना ना किये ले लिए और जल्दी जल्दी खाने लगा।
बेचारा पता नहीं कब से भूखा होगा। ये सोचकर मैंने ऊपर वाले का शुक्र अदा किया जिसने मुझे एक भूखे को खाना खिलाने का मौका दिया। इतनी देर में उस बच्चे की मां जो उसकी पर्ची बनवाने के लिए खिड़की पर खड़ी थी। वापस आई और बच्चे को चिप्स का आखिरी टुकड़ा खाते देखा!!!
फिर अचानक पता नहीं उसे क्या हुआ कि वो दोनों हाथ उठा कर जोर जोर से चिल्लाने लगी जिसने उसके बच्चे को ये चीज़ें दी उसे गालियां देने लगी। कह तो वो बहुत कुछ रही थी, मगर मैंने वहां से खिसकते होते हुए जो चंद बातें सुनीं वो ये थी:-
” है कूण ओह माऊ दा खसम जेड़ा मेरे मुंडूये जो चिप्स कनै जूस लेई नै देई गेया। औऐ तां सेई मेरे सामनै। कमीना कुसी पासै रा। अपणे टब्बर पाली नी होंदे दुज्यां दे न्याणे लेयो रजाणा। मैं बैजनाथे ते पियागा दी चलियो किराया पाड़ा फूंकी के इत्थु पुज्जी मुंडूये रा खाली पेट टैस्ट कराणा😠”।
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इसलिए दया करो मगर सोच समझकर। एक बात तो है बच्चा पूरा ईमानदार था। चण्ड खा ली पर मेरी तरफ इशारा नी किया लौंडे ने😀

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