डॉ. राजेश शर्मा जी, टिकट की टेंशन छोड़ कर पार्टी हित में ईमानदारी से कार्य करने नें ही सर्वस्व का भला है…क्योंकि डॉक्टरों को बहुत कम वोट देते हैं लोग… देहरा की जनता का डॉक्टर साहब को प्रेमपूर्वक सुझाव वरन न खुदा मिलेगा और न ही बिसाले सनम
DENTAL RADIANCE HOSPITAL
डॉ. राजेश शर्मा को एक मैत्रीपूर्ण सुझाव
अब तो राजनीति की डगर छोड़ दीजिए डॉक्टर साहब, हर किछ हर किसी के भाग्य में नहीं होता। आपने अस्पताल बनाया तो आपके विरोधी पक्ष ने भी आपसी प्रतिस्पर्धा के चलते अपना भी एक बड़ा नामी-गिरामीअस्पताल बना दिया…अब किसने बनाया यह तो जनता जनार्दन जानती ही है तो मेरे मुंह से उगलवाने की क्या ज़रूरत है भाई…आखिर आप सब बड़े पेशेवर लोग हैं… आपके खिलाफ ज़हर उगलने से डर भी तो लगता है न… आपके पास साम, साम, दंड,भेद, सब कुछ तो है…और हमारे पल्ले….मात्र एक कलम को ताकत, जिसे जब चाहे तोड़ा जा सकता है, मरोड़ा जा सकता है।
आइए, अब फिर से मुद्दे की तरफ रुख करते हैं।
जबसे आपका विरोधी पक्ष सत्ता पर काबिज हुआ तो आपकी माथा भी ठनका। आपने भी अपनी प्रतिस्पर्धा के चलते राजनीति में अपनी भी ताल ठोंक दी। बहुत दाएं-बाएं किया लेकिन डाल किछ गली नहीं। डॉक्टरी पेशे को भी पीछे की ओर धकेल राजनीति से कुछ अधिक गहरा नाता जोड़ा और अस्पताल को दूसरों के आसरे छोड़ा। जबकि आपका विरोधी पक्ष दोनों ही मोर्चों पर डटा रहा और सफल भी रहा लेकिन राजनीति में आपकी अग्निपरीक्षा का दौर खत्म नहीं हो रहा है। इसलिए जनता ने आपको एक मैत्रीपूर्ण सुझाव दिया है कि कांग्रेस हाईकमान के आदेशों पर अमल करते हुए, उनका सम्मान करते हुए आप चुनावी मैदान से किनारा करके पार्टी हित में दिल से, पूरी ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और दृढ़ निश्चय करके तन-मन-धन से अपनी मां समान कांग्रेस पार्टी का साथ दें और कांग्रेस उम्मीदवार श्रीमती कमलेश ठाकुर का बाहरी मन से नहीं अपितु दिल की गहराईयों से बुराई पर अच्छाई की राजनीतिक जंग को भारी मतों से जीत कर पार्टी में फिर से अपना खोया हुआ सम्मान वापिस प्राप्त करके सरकार में किसी राजनीतिक पोस्ट पर विराजमान हो सकें क्योंकि हाल ही में पार्टी के प्रति वफादारी निभाने में आप पीछे रह गए हैं, गद्दारी की बू भी आपसे आ रही है। लेकिन अभी भी कुछ अंतिम क्षण बचे हैं जब आप अपने कारनामों को सुधार सकते हैं और पार्टी ने फिर से अपना भरोसा कायम कर सकते हैं वरन अगर आपके अड़ियलपन की वजह से कमलेश ठाकुर जी की जीत की मत प्रतिशतता में थोड़ी सी भी कमी आई तो इसके परिणाम का अंदाज़ा आप सहज ही लगा सकते हैं।
फिर तो वही बात होगी कि
*खुदा ही मिला न बिसाल-ए-सनम,*
*इधर के रहे, न उधर के रहे*
आज से पहले सभी पोलिटिकल पार्टियों के न जाने कितने ही असंतुष्ट बागी पार्टी के साथ समझौता न करके आज अपना सर्वस्व लुटा कर गुमनामी के अंधेरे में भटक रहे हैं। उनका मूल्य तब तक ही था जब तक वे अपनी पार्टी से जुड़े थे, अलग होते ही उनका वो हाल हो गया जो डाली से टूट कर एक फूल का होता है…हर कोई उसे पांव तले रौंदता हुआ गुज़र जाता है।
वैसे तो अभिमान की आग में स्वयं को पार्टी से ऊपर समझने की भयंकर गलती तो आपसे भी हो चुकी है लेकिन अभी भी माफ़ी की कुछ गुंजाइश बाकी है। वाद में बिना पछतावे के और कुछ हासिल नहीं होने वाला।
अगर स्वाभिमान को त्याग कर, ईगो छोड़ कर ध्यानपूर्वक सोचें तो आपको ज्ञात हो जाएगा कि पार्टी मां के समान होती है और एक मां ही जानती है कि अपनी औलाद को कब, क्या देना है। यह भी महान मां ही निर्धारित करती है कि उसकी औलाद किस काबिल है, भले ही बच्चा जितनी मर्ज़ी ज़िद्द करे। पार्टी को सबसे अधिक ज़रूरी है पार्टी की मजबूती को देखते हुए किसी उपयुक्त उम्मीदवार को पार्टी उम्मीदवार घोषित करना और एक मुख्यमंत्री की कार्यकुशल पत्नी से बढ़ कर जिनकी समाज में भी अच्छी-खासी पैठ है, से बेहतरीन कैंडिडेट और कौन हो सकता है जिसमें हाईकमान की पूरी मर्ज़ी है।
हां, डॉक्टर साहब, अन्त में जाते-जाते एक पते की बात आपको वताते चलते हैं कि जनता आज अधिकतर पेशेवर डॉक्टरों से दूरियां बनाने में ही अपनी भलाई समझती है क्योंकि है क्योंकि जब भी उनके रगड़े चढ़ गए तो वे ऐसी खाल उतारते हैं कि बंदा उफ्फ कर उठता है। बहुत कम डॉक्टर ऐसे हैं जो मरीज़ की आर्थिक स्थिति पर थोड़ा-बहुत तरस खाते हैं वरन उनके लिए गाजर-मूली सब एक समान हैं।
जब यह डॉक्टर लोग अथाह संपत्ति कूट कर पॉलिटिशियन बनकर पावर भी हासिल करना चाहते हैं तो वहां जनता उनके आगे फुल स्टॉप लगा देती है, और वह इसलिए क्योंकि जब जनता मजबूर होती है तो ये डॉक्टर लोग उनका जम कर शोषण करते हैं, अच्छी तरह जेब खाली करने के वाद ही उन्हें छोड़ते हैं। उसका बदला जनता वोट देते समय चुकता कर देती है और कैंडिडेट को बुरी तरह हरा कर ही छोड़ती है क्योंकि उनके साथ भी उन्होंने कभी ऐसी ही बेरहमी की थी।
डॉक्टर साब, आपके बालाजी में भी तो अनेकों बार ऐसे हादसे होते देखे गए हैं।
हां, एक और महान हड्डियों के डॉक्टर भी हैं नगरोटा से जिनके पास धन-संपत्ति इतनी अथाह है कि उन्हें खुद इसकी ख़बर नहीं लेकिन सिर पर बहुत सवार है पार्टी टिकट लेने का, और इसी चक्कर में वह *कदे इस फुल्ल ते, कदे उस फुल्ल ते* वाले काम में लगे रहते थे। एक समय नें तो उनका आत्मविश्वास इतना गहरा हो गया था जी कह स्वयं को जीएस बाली और अरुण कूका जैसे समकक्ष समाजसेवी व राजनेता समझने की भूल कर वैठे थे पैसे से सब कुछ नहीं मिलता, जनता के दिल में भी उतरना पड़ता है। लेकिन काफी साल तक जोड़-तोड़ करने के बाद जब उन्हें पता चला कि वह अब राजनीतिक रोटियां नहीं सेंक पाएंगे क्योंकि जब उनके करीबियों ने उन्हें खुले संकेत दे दिये कि जिस जनता से उन्होंने हड्डियां जोड़ने का करोड़ों रुपया ऐंठा है वह आपको बुरी तरह हराने के सपने देख रही है, यह भी कोई गारंटी नहीं है कि घर के वोट भी डॉक्टर साब को पड़ें या न पड़ें क्योंकि जिस व्यक्ति में एक सरपंच बनने की काबिलियत नहीं उसके हाथ में एमएलए का टिकट थमाने की मूर्खता भला कौन सी पार्टी करेगी? बस इतना एहसास होते ही डॉक्टर साब ने राजनीति से तौबा कर ली और अब आराम से हड्डियां जोड़ने-तोड़ने का और प्रॉपर्टी बेच कर चौखा मुनाफ़ा कूटने के धंधे में मशगूल हैं।
हां, पालमपुर से एक कुशल डॉक्टर और भाजपा के एक ईमानदार राजनीतिज्ञ, MLA थे डॉक्टर शिव कुमार जो अपनी जेब से पैसा खर्च करके रोगियों का इलाज करने के लिए पैदल 10-15 किलोमीटर तक इलाज करने लोगों के घर तक पहुंच जाते थे। उनकी बात कुछ और थी। उनका मुकाबला करना आज के स्वार्थी युग में संभव नहीं। ऐसे अंतरराष्ट्रीय समाजसेवी और राजनीतिज्ञ बनना टेढ़ी खीर के समान है।
राजनीति की डगर इतनी आसान नहीं कि कोई डाक्टरी की डिग्री कर ली, स्पेशलाइजेशन कर ली और डट गए अपने धंधे में। न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं, उसके बाद भी सफलता की कोई पक्की गारंटी नहीं। हर पांच साल बाद फिर से परीक्षा देनी पड़ती है।
आप भी अपनी हालत का अंदाज़ा लगा लीजिये की जनता आपके बारे में भी क्या सोचती है। असलियत का एहसास होते ही शायद आप की चुनाव लड़ने की सोच बदल जाए।
*यह तो जनाब, एक आग का दरिया है और डूब कर जाना है।
दोनों ही पार्टियों के गद्दारों की हालत तो सारी दुनिया देख रही है कि किस तरह वे अपने पंख कटवा कर सब कुछ लुटाए बैठे हैं।
अपने मुख्यमंत्री सुक्खू जी को ही देख लीजिए, 25-30 साल तक स्वयं को अग्निपरीक्षा की आग में निस्वार्थ भाव से झोंके रखा, न जाने कितने संघर्षों के डट कर सामना किया। कभी हालातों ने कदम पीछे खींचने को भी विवश किया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी क्योंकि सत्य और संघर्ष की ताकत सदा उनके साथ रही और अंत में गगनचुंबी सफलता ने उनके कदम चूमे। लोग अगले 15 साल तक उनके लगातार मुख्यमंत्री बनने की संभावनाएं जता रहे हैं।
डॉक्टरों के राजनीतिक नेता बनने के संभावित नुकसान भी बहुत हैं जनाब, ज़रा गौर फरमाइए…
1. राजनीतिक अनुभव की कमी:
मतदाताओं को यह चिंता रहती है कि डॉक्टरों के पास राजनीतिक प्रक्रियाओं और शासन की बारीकियों को समझने का अनुभव नहीं है, जो प्रभावी नेतृत्व के लिए आवश्यक है।
2. चिकित्सा पेशे पर अत्यधिक ध्यान:
यह धारणा होती है कि डॉक्टर स्वास्थ्य सेवा से जुड़े मुद्दों को अर्थव्यवस्था, शिक्षा और बुनियादी ढांचे जैसे अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर प्राथमिकता देंगे, जिसके परिणामस्वरूप शासन का असंतुलित दृष्टिकोण हो सकता है।
3. समय प्रतिबद्धता:
मतदाताओं को यह संदेह होता है कि डॉक्टर राजनीतिक नेता और चिकित्सा पेशेवर दोनों की मांगों को संतुलित नहीं कर पाएंगे, जिससे डर है कि विभाजित ध्यान के कारण एक क्षेत्र क्षतिग्रस्त हो सकता है।
4. हितों का टकराव:
उनकी पेशेवर पृष्ठभूमि के कारण निर्णयों से चिकित्सा समुदाय को अनुचित लाभ हो सकता है, जिससे मतदाता संभावित हितों के टकराव के बारे में चिंतित हो सकते हैं।
5. संचार कौशल:
डॉक्टर अपने क्षेत्र में कुशल होते हुए भी, मतदाताओं को यह विश्वास हो सकता है कि उनके पास अपनी नीतियों को प्रभावी ढंग से संप्रेषित करने और मतदाताओं से जुड़ने के लिए आवश्यक सार्वजनिक भाषण और संचार कौशल का अभाव है।
6. नीति ज्ञान:
मतदाताओं को यह चिंता होती है कि डॉक्टरों के पास स्वास्थ्य देखभाल से परे व्यापक नीतियों की पूरी समझ नहीं है, जो समग्र शासन के लिए आवश्यक हैं।
7. विश्वास के मुद्दे:
उन क्षेत्रों में जहां चिकित्सा क्षेत्र में भ्रष्टाचार मौजूद है, मतदाता डॉक्टरों पर संदेह कर सकते हैं, डर है कि वे राजनीति में समान समस्याएं ला सकते।
9. आर्थिक चिंताएं:
डॉक्टरों की आर्थिक नीतियों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की क्षमता पर संदेह हो सकता है, क्योंकि उनकी विशेषज्ञता आमतौर पर अर्थशास्त्र या वित्तीय प्रबंधन से संबंधित नहीं होती है।
10. प्रतिनिधित्व विविधता:
मतदाता विविध पेशेवर पृष्ठभूमि से उम्मीदवारों को पसंद कर सकते हैं, यह विश्वास करते हुए कि संतुलित और समावेशी शासन के लिए विभिन्न दृष्टिकोण महत्वपूर्ण हैं, बजाय इसके कि किसी एक पेशे का अत्यधिक प्रतिनिधित्व हो।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये संभावित नुकसान हैं, और सभी डॉक्टरों पर ये लागू नहीं होते हैं। कुछ डॉक्टरों के पास राजनीतिक अनुभव, विभिन्न मुद्दों पर व्यापक ज्ञान और प्रभावी ढंग से संवाद करने की क्षमता हो सकती है।
यह भी महत्वपूर्ण है कि मतदाता सभी उम्मीदवारों, उनकी पृष्ठभूमि और योग्यता की जांच करें, चाहे उनका पेशा कुछ भी हो, और यह निर्णय लें कि कौन सा उम्मीदवार उनके और उनके समुदाय के लिए सबसे अच्छा होगा।