रेत की तरह मुट्ठी से फिसलती ज़िन्दगी : डॉ. सत्येन्द्र शर्मा

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फिसलती जिन्दगी

फिसल रही है जिन्दगी ,
ज्यों मुट्ठी से रेत ।

पकड़ न पाओगे कभी ,
अब तो मूरख चेत ।।
अब तो मूरख चेत ,
ईश सुमिरन कर बाबू ।
होती हर दिन दूर ,
जिन्दगी अब बेकाबू ।।
गिनती के दिन शेष ,
देख यह खिसक रही है ।
राम नाम जप रोज़ ,
जिन्दगी फिसल रही है ।।

स्वरचित, मौलिक।
डा.सत्येन्द्र शर्मा, पालमपुर , हिमाचल ।

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🙏 मेरे गुरुवर रोला छंद

गुरु का लो आशीष ,
संभालेगे वो नैया ।
खुद ही वो पतवार ,
बनेंगे स्वयं खिवैया ।।

मै था अति मतिमूढ़ ,
मुझे चेला स्वीकारा ।
आज बनाया सफल ,
अभी तक था मै हारा ।।

मेरे गुरु भगवान ,
मिली बरगद की छाया ।
सूखे में भी आज ,
लग रहा सावन आया ।।

धन वैभव सम्मान ,
चरण रज ने दिलवाया ।
मै मूरख मतिहीन ,
दंभ मेें समझ न पाया ।।

देवालय सी ज्योति ,
गुरू सर्वाधिक प्यारे ।
गुरु के सदके जाउं ,
कर दिये वारे-न्यारे ।।

ये हैँ देव समान ,
कौन टिक सकता आगे ।
देखा वाद-विवाद ,
सभी बस पीछे भागे ।।

महिमा अपरम्पार ,
गुरू ही बने सहारा ।
मै अनपढ़ मतिमूढ़ ,
फिरा था मारा- मारा ।।

सत्य वचन सत्येन ,
मनुज को कौन बढ़ाता ।
किन चरणों की धूल ,
मनुज को जीना आता ।।

पद-रज गुरू विशेष ,
गुरू को शीश नवाना ,
इसको लेकर माथ ,
नित्य ही तिलक लगाना ।।

दें गीता का ज्ञान ,
सदा हमको समझाते ।
रामायण का पाठ ,
गहन वो अर्थ बताते ।।

दिव्यदृष्टि श्रीमान ,
राह प्रभु की दिखलाते ।
भगवन का हो बोध ,
ज्ञान हमको सिखलाते ।।

लख चौरासी योनि ,
मिले कैसे छुटकारा।
गुरु यह देते भान ,
कहां है कुछ भी चारा ।।

नया प्राण संचार ,
गुरू करते हैँ भाई ।
शिष्य ज्ञान भंडार ,
गुरू की यही कमाई ।।

गुरु ने रखा हाथ ,
ज्ञान विज्ञान बताया ।
असमंजस की राह ,
मुझे बढ़ना सिखलाया ।।

ले लें हम कुछ ज्ञान,
देव अवतरित हुए हैँ ।
तारेंगे वो आज ,
सभी जो पतित हुए हैँ ।।

स्वरचित, मौलिक ।
डा.सत्येन्द्र शर्मा, पालमपुर , हिमाचल ।

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वर्षा रानी

वर्षा रानी वर्षा रानी ,
आखिर रानी आई हैँ ।
मन हिलोर लेता है सबका ,
खूब तरंगें छाईं हैँ ।।

सावन ऋतु है बहुत सुहानी ,
प्यास धरा की बुझती है ।
गर्मी लू से तड़फ रहे थे ,
सांसें अब ना घुटती हैँ ।।

रिमझिम रिमझिम वर्षा आई ,
घोर घटाऐं अब छाईं ।
पादप झूम रहे मुस्काते ,
बस हरियाली ही लाईं ।।

गले मिलीं डाली से डाली ,
झूम झूमकर गाती हैँ ।
भंवरे चूम रहे कलियों को ,
कलियां भी मुस्काती हैँ ।।

कोयल मोर पपीहा गाते ,
मैढ़क भी टर्राते हैँ ।
बाग-बगीचे लदे हुए फल ,
कृषक झूमकर गाते हैँ ।।

कुसुम खिल उठे हैँ मस्ती में ,
नवजीवन सा छाया है ।
खेतों में फसलें लहरातीं ,
कृषकों के मन भाया है ।।

झूमें नाचें गाऐं हम भी ,
आओ हम मस्ती कर लें।
चलो नहा लें हम वर्षा में,
अमृत से हम तर कर लें ।।

स्वरचित ,मौलिक ।
डा.सत्येन्द्र शर्मा ,पालमपुर, हिमाचल ।

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