दुःखद : डॉ. शिव कुमार – अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त समाजसेवी का एक और हसीन सपना उजड़ गया…बेदर्दी से हुआ चकनाचूर, डॉ. शिव के शुभचिंतकों में शोक की लहर
न जाने किसकी बुरी नज़र लग गई है स्व. डॉ. शिव कुमार – अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त समाजसेवी की जनसेवी परियोजनाओं को, कि एक-एक करके उनके हसीन सपनों को दीमक लगती जा रही है।
अभी-अभी उनका एक और सपना टूट कर, चकनाचूर होकर ताश के पत्तों की भांति बिखर गया है, जिससे डॉ. शिव के शुभचिंतकों में, विशेषता उनके सुयोग्य परमाज्ञाकारी सुपुत्र राघव शर्मा में शोक की लहर है।
इन दुखदायी क्षणों से उनके मन में शोक का अगाध सागर उमड़ पड़ा है मगर वर्तमान विकट परिस्थितियों में उनके हाथ, बंधे हुए हैं, वह तमाम कोशिशों के बावजूद अपने स्वर्गीय पिता की विरासत को सहेजने, संवारने और उसे बरकरार नहीं रख पा रहे हैं। यही दुःख उन्हें अंदर ही अंदर खाए जा रहा है। हालाँकि सभी उन्हें ढांढस बंधाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं लेकिन सबके हाथ बंधे हुए हैं। जब किसी का कई सालों से चल रहा प्रोजेक्ट टूट जाए, हसीन सपना राख में मिल जाए तो दुख तो होता ही है। सभी जानते हैं कि डॉक्टर शिव कितने महान व्यक्ति थे। उनके मन में समाजसेवा की भावनाएं सदा हिलोरे लेती रहती थीं। लेकिन मृत्यु किसी को नहीं छोड़ती और सब कुछ एक निश्चित समय पर लील ही लेती है।
सारी दुनिया जानती है कि डॉक्टर शिव महिलाओं का कितना सम्मान करते थे जिसके चलते उन्होंने नारी उत्थान केंद्र तक खोल डाला भले ही निर्जन वन होने के कारण वहां महिलाएं अपना उत्थान करवाने नहीं आ पाईं। उन्होंने महिलाओं के लिये जो कुछ किया वह सभी महिलाएं जानती हैं……कितनों के घर बसाए… कितनों को घर में बिठाया….कितनों को आजीविका दी किसी से छिपा नहीं है।
सबसे बड़े दुख की बात तो यह है कि स्व. डॉ. शिव की कई परियोजनाओं को लगातार उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ रहा है। कई प्रोजेक्टस पर अनिश्चितता की लहर मंडरा रही है। उनकी विरासत जो उन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा के बूते पर खून-पसीने से सींच कर खड़ी की थी, आज धराशायी होने के कगार पर है। उनकी विरासत को मन से संभालने का बूता…दृढ़ निश्चय किसी में नज़र नहीं आता।
कई साल पहले डॉ शिव ने ठाकुरद्वारा में लोगों की सुविधार्थ एक रोटरी फिजियोथेरेपी केन्द्र की स्थापना की थी जिसका लोगों को कम दामों में बहुत लाभ पहुंच रहा था। लेकिन समय बीतने के साथ किसी गहरे कारण की वजह से इस सेन्टर को यहां से विस्थापित करके सुदूर जंगल में जोकि यहां से लगभग 22 किलोमीटर दूर आम जनता की पहुंच से दूर है वहां खोल दिया गया।
अब सवाल उठता है कि इस सुनसान निर्जन स्थान पर, मेन रोड व आबादी से दूर जहां पंछी भी पर नहीं मार सकता, वहां इस फलते-फूलते लाभ अर्जित करने वाले सेंटर को स्थानांतरित करने का क्या उद्देश्य रहा होगा? यह अपने आप में सोचनीय व गहन चिंतन का विषय है। इस सुनसान स्थान पर मारंडा से ही एक महिला को बहुत कम तनख्वाह पर इतनी दूर मजबूरन डयूटी देने जाना पड़ता था जोकि पहले अपने घर-द्वार पर ही ठाकुरद्वारा में तैनात थी।
लगभग तीन साल तक यह फिजियोथेरेपी सेन्टर इस जंगल में लाखों रुपए के करोड़ों की लागत से बनी बिल्डिंग में भारी नुकसान में चलता रहा।
हैरानी की बात है कि जब एग्जिस्टिंग स्टाफ़ के लायक ही काम नहीं था तो एक और डॉक्टर को रखने की, ओब्लाइज करने की क्या ज़रूरत आन पड़ी। 70-80 हज़ार का मासिक खर्च और आमदनी …..😊😊😊
एक वक्त ऐसा भी आ गया जब बिजली का बिल आया 950 रुपये, आमदनी 900 रुपये और अन्य खर्चा सोच से कोसों दूर। लोग स्तब्ध हैं कि इतनी उत्तम सोच का मालिक कौन हो सकता है। तीन साल से भी अधिक समय तक रोटरी आई फॉउंडेशन का करोड़ों रुपैया क्यो चंद स्वार्थी लोगों की स्वार्थपूर्ति हेतु व्यय किया जाता रहा…. दानी सज्जनों ने, जिन्होंने यह खबर आईआरटी तक पहुचाई, छानबीन के पश्चात सच्चाई जगजाहिर करने की चेष्टा की है।
और अधिक दुःखदायक बात यह है कि इसी सुनसान और घनघोर वन में जहां दिन ढलते ही डर और मनहूसियत का साम्राज्य डेरा डाल लेता है, जहां इन्सान तो दूर पशु भी नज़र नहीं आते… ऐसे वनीय और उजाड़ क्षेत्र में महिलाओं के उत्थान के लिए भी बरसों से एक महिला उत्थान केंद्र चलाया जा रहा था यानि महिलाओं के उत्थान के नाम पर बिना महिलाओं के ही परियोजना को सफलतापूर्वक चलाने का मात्र दिखावा किया जा रहा था, वहां बेचारी एक बेसहारा महिला निवास करती रही जिसकी हालत भी दयनीय सुनने में आ रही है। आखिर किसी मृत को कब तक जीवित रखने का दिखावा किया जा सकता है… असलियत तो सामने आ कर ही रहती है…स्थानीय लोगों द्वारा इस भूतहा सुनसान हवेली पर भी किसी भी किसी भी समय ताले लटक सकते हैं और दानी सज्जनों का करोड़ों रुपया आग की भेंट चढ़ सकता है।
जब मामले के सम्बन्ध में विचार जानने हेतु फॉउंडेशन के चेयरमैन से फोन पर तीन बार बात करनी चाही ताकि उन्हें भी अपनी भावनाएं व्यक्त करने का समुचित अवसर मिल सके तो आज प्रातः उन्होंने तीनों बार फोन उठाने की जहमत नहीं उठाई और न ही कॉल बैक की, सारा दिन गुज़र गया। अस्पताल के जीएम को भी 6 बार फोन किया गया लेकिन उन्होंने भी फोन नहीं उठाया, न ही बैक कॉल की ताकि इस फिजियोथेरपी सेन्टर के संबंध में उनकी आगामी कार्यवाही से जनता को व हज़ारों माननीय दानी सज्जनों को अवगत करवाया जा सके।
फिर भी अपनी ज़िम्मेदारी समझ कर फॉउंडेशन का अगर कोई भी योग्य पदाधिकारी यदि इस बारे में कोई सूचना जनहित में देना चाहेगा तो उसका हार्दिक स्वागत होगा। आखिर यह चैरिटेबल संस्थाएं जनता के उत्थान के लिए ही तो हैं उन्हें परेशान करने के लिए कदापि नहीं।
दानी लोगों ने आईआरटीसी के माध्यम से आशा प्रकट की है कि उनके दान को ऐसी जगह खर्च किया जाए जहां उसकी सार्थकता बनी रहे तथा उनके खून-पसीने से कमाए गए धन का सदुपयोग हो। दानी लोगों ने दुख ज़ाहिर करते हुए कहा कि उन्होंने कभी ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि डॉक्टर शिव के जाते ही उनकी परियोजनाओं का इतना बुरा हश्र होगा। फिलहाल ईश्वर से यही प्रार्थना है कि सब कुछ शुभ हो, आम जनता का भला हो तथा डॉ शिव की मान मर्यादा बनी रहे वरना कोई समाजसेवी बनने की हिम्मत नहीं करेगा।
इति शुभम!