समाज सेवा,दयालुता,समर्पण व सज्जनता का पर्याय हैं INTERNATIONAL FAME डॉ. शिवकुमार
बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय च
समाज सेवा,दयालुता,समर्पण व सज्जनता का पर्याय हैं INTERNATIONAL FAME डॉ. शिवकुमार
INDIA REPORTER TODAY
B.K. SOOD
‘‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय च’’ का पर्यायवाची नाम है डॉ. शिव कुमार! यह उपदेश गौतम बुद्ध ने ईसा पूर्व पांचवी शताब्दी में अपने शिष्यों को दिया था जिसका तात्पर्य है जनसामान्य के कल्याण एवं सुख के लिए कार्य करना। इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है अधिकाधिक लोगों के हित एवं सुख के लिए निरन्तर प्रयासरत् रहना।
जी हां, यह वही डॉ. शिवकुमार हैं जिन्होंने ‘‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय च’’ के सिद्धान्त पर अपना पूर्ण जीवन न्यौछावर कर दिया।
जी हां, यह दास्तान है एक अच्छे-खासे पढ़े-लिखे उस समय के नौजवान डॉक्टर की जिनकी पत्नी भी एक स्पेशलिस्ट डॉक्टर हंै। इनके पिताजी का अच्छा-खासा नाम था पालमपुर में, बहुत ही सम्मानित परिवार से सम्बंधित इंसान जिसके पास धन, दौलत, शोहरत, इज़्ज़त, डॉक्टरी जैसे पेशे में अच्छा खासा नाम और अपने क्षेत्र में सबसे अधिक प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर दंपति की। एक ऐसा डॉक्टर दंपति जो सब सुख-सुविधाओं से सम्पन्न अपने यौवन पर हो वह पालमपुर जैसे छोटे से शहर में रुके रहे, किसी बड़े शहर की ओर आकर्षित नहीं हुए। अपने लोगों के बीच में रहकर लोगों की सेवा करने का प्रण लिया। अगर यह चाहते तो किसी बड़े शहर या विदेश में जाकर बहुत अच्छा-खासा व्यवसाय चला सकते थे और दुनिया की चकाचैंध और आधुनिकता का आनंद उठा सकते थे परंतु नहीं …जिस इंसान को भगवान ने सिर्फ़ लोकहित के लिए, लोकसेवा के लिए, लोगों के दुख-दर्द दूर करने के लिए भेजा हो उसके दिमाग में ऐसी बात आती ही नहीं। और अगर कभी उसके दिमाग में ऐसा लालच आ भी जाए तो ईश्वर की कृपा से वे उसमें कभी फंसते नहीं। यह उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति होती है, मानवता के प्रति, लोक सेवा के प्रति और गरीबों के प्रति।
अपने यौवन से लेकर आज तक 55 साल के डॉक्टरी पेशे में दंपत्ति के रूप में कार्य करते रहना, राजनेता के रूप में एमएलए भी रहना और अंत में जीवन भर की सांसारिक पूंजी के रूप में केवल एक छोटा सा मकान, दो बच्चों की पढ़ाई और उनकी शादी करवा देना, बस यही अर्जित की डॉक्टर साहब ने अपने पूरे जीवन काल में ।
आज से 50-55 साल पहले की बात करें तो पालमपुर में चिकित्सीय सुविधा के रूप में केवल मात्र एक ही प्राइवेट हॉस्पिटल था और वह था, डॉक्टर शिवकुमार का हॉस्पिटल जहां मरीज़ों को दाखिल किया जाता था और उनकी बहुत अच्छी देखभाल की जाती थी साथ ही लोगों का बहुत विश्वास था इस हॉस्पिटल पर। इसके अतिरिक्त निजी अस्पताल की सुविधा फिर धर्मशाला या कांगड़ा में ही होती थी। आप बहुत आसानी से अनुमान लगा सकते हैं कि 50 साल पहले जिस डॉक्टर दंपति का अपना प्राइवेट हॉस्पिटल हो आज उनके पास एक बहुत बड़ी हॉस्पिटल्ज़ की चेन होनी चाहिए थी। परंतु जिन लोगों को उनके माता-पिता द्वारा केवल मात्र जनकल्याण ‘‘सर्वजन सुखाय सर्व जन हिताय‘‘ शिक्षा दी जाती है वे इन सांसारिक बन्धनों से दूर हो जाते हैं और जनकल्याण, जनसेवा, लोगों के दुःख-दर्द बांटने और उनको सुलझाने में अपना पूरा जीवन लगा देते हैं। वह कोई महात्मा नहीं होते जो धार्मिक प्रवचन करते हों और उन नियमों पर चलने को कहते हैं, परंतु वे धार्मिक महात्माओं से भी बढ़कर होते हैं जो मानव सेवा में अपना पूर्ण जीवन समर्पित कर देते हैं और जनकल्याण को अपना प्राथमिक कर्तव्य समझते हैं। वह अपनी सुख-सुविधाओं को त्याग कर लोगों को के दुखों को बांटकर खुद को बहुत सौभाग्यशाली समझते हैं।
डॉ. शिव कुमार का जन्म एक प्रसिद्ध समाज सेवी सुप्रसिद्ध शिक्षाविद और स्वतंत्रता सेनानी पंडित अमरनाथ शर्मा व श्रीमती इंदिरा शर्मा के घर हुआ। डॉ. शिव कुमार ने अपनी आरंभिक शिक्षा सनातन धर्म हाई स्कूल बैजनाथ व पालमपुर से की। तत्पश्चात एमबीबीएस की शिक्षा मेडिकल कॉलेज अमृतसर से प्राप्त की। अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूर्ण करने के बाद डॉ. शिव ने पालमपुर को अपनी कार्यस्थली बनाया। जब डॉक्टर शिव कुमार ने पालमपुर में अपनी निजी प्रैक्टिस शुरू की उस समय पालमपुर और उसके आसपास कोई विशेष चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध नहीं होती थी। डॉ. शिवकुमार ने अपनी प्रैक्टिस शुरू करने के बाद मरीजों को देखते-देखते उनके दुःख-दर्द समझने की कोशिश की। उनकी गरीबी को भीतर तक झांका। उनकी मज़बूरियों को समझा। उनकी लाचारी और बेबसी को अंतर्मन से महसूस किया क्योंकि पालमपुर में अधिकतर लोग जो इनके पास ईलाज के लिए आते थे वे बहुत गरीब परिवारों से आते थे और अपनी बीमारी बताने के साथ-साथ वे अपनी मजबूरियां भी डॉ साहिब को गिनवा देते थे।
ईलाज करते-करते वह कब समाज सेवा में डूब गए यह उन्हें खुद भी पता नहीं चला। लोगों के दुःख-दर्द को समझते हुए, उनके दुःख -दर्द को दूर करने में जुट गए और समाज सेवा क्षेत्र को अपना प्रमुख कार्य क्षेत्र बना लिया। वैसे तो डॉक्टरी पेशे में को लोग पैसा कमाने और तरक्की की राह पर दिन-दूनी और रात-चैगुनी उन्नति करने का जरिया मानते हैं ,परंतु डॉक्टर साहब ने इसे सामाजिक सेवा और लोगों के दुःख-दर्द को दूर करने का ज़रिया माना।
सन् 1977 से पहले पालमपुर में लाॅयंस क्लब एक सामाजिक संस्था हुआ करती थी। इसके पश्चात 1978 में रोटरी क्लब पालमपुर अस्तित्व में आया। 1978 में ही डॉ शिव कुमार चार्टर्ड अध्यक्ष के रूप में रोटरी क्लब पालमपुर से जुड़े। वह लगातार 3 बार तक रोटरी के अध्यक्ष बने रहे। रोटरी क्लब में रहते हुए इन्होंने इतना अधिक कार्य किया व इसका विस्तार किया कि रोटरी क्लब पालमपुर ने पूरे जिले में अपना नाम स्थापित कर लिया। डॉ शिव लगातार तीन बार के कार्यकाल तक रोटरी के अध्यक्ष रहे। इस अवधि के दौरान, पालमपुर रोटरी पूरे रोटरी जिले में अपना नाम स्थापित किया। अपने विशिष्ट करियर के दौरान रोटरी के प्रति समर्पित होने के कारण उन्होंने जिला स्तर पर अलग-अलग जिम्मेदारियां निभाईं और सराहना प्राप्त की और सभी जिला गवर्नरों की प्रशंसा हासिल की।
वह पालमपुर रोटरी आई फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष हैं। इनके कुशल नेतृत्व व अथक प्रयासों से मारण्डा में एक विशाल रोटरी आई हॉस्पिटल की स्थापना की गई जो न केवल पालमपुर बल्कि पूरे उत्तरी क्षेत्र में अपनी एक विशष्ट पहचान बनाए हुए है। यहां पूरे उत्तरी क्षेत्र से लोग अपनी आंखों का ईलाज करवाने आते हैं। इस हॉस्पिटल की पहचान एक भरोसेमंद तथा स्थापित हॉस्पिटल के रूप में बन चुकी है। इस हॉस्पिटल के अंतर्गत प्रागपुर में एक अन्य अस्पताल है तथा धुसाड़ा-ऊना में भी इसकी शाखा है। इन दोनों स्थानों पर भी बहुत से मरीज अपनी आंखों का इलाज करवाने के लिए आते हैं।
अपने सामाजिक यात्रा को रोटरी क्लब और रोटरी आई हॉस्पिटल से आगे बढ़ाते हुए डॉ शिव ने पालमपुर रोटरी हेल्पेज फाउंडेशन की स्थापना की जिसके वह चेयरमैन हैं जिस के अंतर्गत ‘अपना घर’, वृद्धाश्रम सलियना में बनवाया।
‘‘रामानंद गोपाल बाल आश्रम’’ सलियाना में गरीब, अनाथ और विकलांग बच्चों के लिए भी आश्रम बनवाया जिसमंे अनाथ व असहाय बच्चों के लिए रहने, खाने-पीने, ठहरने और पालन-पोषण का पूरा इंतज़ाम है। इन बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य का जिम्मा भी बाल आश्रम का ही है। जब बूढ़े और बच्चों के लिए रहने और खाने-पीने तथा अन्य सुख-सुविधाओं का इंतजाम हो गया तो डॉक्टर साहब के मन में आया कि युवाओं के लिए भी कुछ किया जाए। जो युवा हंै परंतु संसाधनों की कमी के कारण शिक्षा प्राप्त नही कर पा रहे हैं तथा स्वावलंबी नहीं बन पा रहे हैं। इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए डॉक्टर शिव ने रोटरी इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की स्थापना सुंगल गाँव में की।
अपंग तथा दिमागी रूप से कमजोर बच्चों के लिए भी एक केंद्र की स्थापना सलियाणा में की गई। इसके अतिरिक्त ठाकुरद्वारा और और सलियाणा में भौतिक चिकित्सा केंद्र की (च्ीलेपवजीमतंचल ब्मदजतम) की स्थापना भी की गई।
डॉक्टर साहिब ने अपने जीवन मे बहुत उतार-चढ़ाव देखे, बहुत कामयाबी हासिल की और बहुत सी निराशाओं का भी सामना किया। बहुत से लोगों ने उत्साह दिया और बहुत से लोगों ने हतोत्साहित भी किया। जहां पर डॉक्टर शिव को एक आशा की किरण दिखती थी, वहीं निराशाओं के घनघोर बादल भी उन्हें दिखाई देते थे, परंतु डॉ शिव ने कभी भी हिम्मत नहीं हारी और उनका ‘‘ ड्रीम प्रोजेक्ट’’ रोटरी आई हॉस्पिटल को बनाने में उन्हें बहुत सी कठिनाइयों, परेशानियों और कटु अनुभवों का सामना करना पड़ा परंतु वह अपने पथ से डिगे नहीं न ही हताश और निराश हुए।
पालमपुर रोटरी आई फाउंडेशन के चेयरमैन होने के नाते डॉ शिव ने 3 से 6 अक्टूबर 1991 को मारंडा में एक सेमिनार करवाने का श्रेय मिला जिसका शीर्षक था ‘‘ैमबवदक छमजूवतापदह ॅवतोीवच व िजीम ैवनजी ।ेपं च्ंतजदमते व िव्चमतंजपवद म्लमेपहीज न्दपअमतेंस ब्ंदंकं ’’
राष्ट्रीय अंध निवारण सोसाइटी के राज्य के अध्यक्ष (प्रेसिडेंट) के रूप में डॉक्टर शिव द्वारा अंधता निवारण हेतु कई कैंप ग्रामीण इलाकों में लगाए जा रहे हैं। डाॅ. शिव ने 27वें वार्षिक अंधता निवारण के राष्ट्रीय कार्यक्रम को 16 से 17 अप्रैल 1993 को पालमपुर में आयोजित करवाया। 15 से 16 सितम्बर 2001 को डॉ शिव ने उत्तर क्षेत्र नेत्र विज्ञान सोसायटी का 19वां वार्षिक सम्मेलन आयोजित करवाया। अक्टूबर 15-16, 2005 और नवंबर में विटेरियो रेटिनल सोसाइटी ऑफ इंडिया का 18वां वार्षिक सम्मेलन भी आयोजित करवाया जो बड़ी उपलब्धि है। 25 से 28 नवंबर 2009 को डॉ शिव के नेतृत्व मे पालमपुर में रोटरी आई फाउंडेशन द्वारा सम्मेलन आयोजित किया गया था जिसमंे महामहिम दलाई लामा जी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
अपने परम् पूजनीय सिद्धान्तवादी, धर्मपरायण समाज सेवक, शिक्षाविद, स्वतंत्रता सेनानी पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए, जीवन की नई चुनौतियों का सामना करते हुए सामाजिक सेवा करना डॉ शिव का एक शौक नहीं जुनून भी है। उनकी व्यक्तिगत रुचि और अथक प्रयासों से हिमाचल प्रदेश में न केवल बेहतर चिकित्सा सुविधा, शिक्षा के लिए आधारभूत संरचना और सुविधाओं का निर्माण हुआ बल्कि समाज मंे असहाय, पिछड़े, लाचार बच्चों तथा बुजर्गों और महिलाओं के उत्थान, उनकी सेवा और केअर के लिए अथक प्रयास किये हैं, जिनके उत्साहजनक परिणाम रहे हैं। वह सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा, पंजाब के अध्यक्ष हैं। वह सनातन धर्म हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में शैक्षिक संस्थान, दिल्ली, चंडीगढ़, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल और जम्मू-कश्मीर के भी प्रितिनिधि हैं।
उन्होंने भाजपा विधायक के रूप में पालमपुर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है और वह विधानसभा की कई महत्वपूर्ण समितियों के सदस्य रहे हैं। रोटरी इंटरनेशनल ने उनकी निस्वार्थ सेवा को मान्यता दी है और उन्हें 1993 में श्रुेमतअपबम रुंइवअम रुेमस ि के सर्वोच्च पुरस्कार से नवाज़ा है।
नेहरू सिद्धांत केंद्र ट्रस्ट द्वारा 1995 में डॉ शिव को मानवता की उत्कृष्ट सेवा हेतु ‘‘सतपाल मित्तल पुरस्कार‘‘ दिया गया।
पालमपुर रोटरी आई फाउंडेशन के अध्यक्ष के रूप में, डॉ शिव कुमार को 1997 में प्रतिष्ठित ळनससपेवद ।ूंतक द्विवार्षिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
दृष्टि यूनिवर्सल, कनाडा, एक अंतर्राष्ट्रीय धर्मार्थ संगठन के लिए दक्षिण एशिया में नेत्र देखभाल सुविधा विकसित करने में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। डॉ. शिव कुमार को विभिन्न रोटरी गवर्नर से कई पुरस्कार मिले हैं। समाज मे गरीबों, जरूरतमंदों, असहायों, लाचारों, बेबसों के लिए निःस्वार्थ सेवा के लिए डिस्ट्रिक्ट और रोटरी इंटरनेशनल पुरस्कार मिले हैं। डॉ. शिव कुमार को उनकी भागीदारी के लिए हिमोत्कर्ष पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें हिमाचल केसरी और जिला मंडी जनकल्याण सभा (रजि.) नई दिल्ली द्वारा ेमतअपबम ंइवअम ेमस िव समाज की सेवा के लिए सम्मानित और पुरस्कृत किया जा चुका है।
डॉ. शिव कुमार विवेकानंद मेडिकल रिसर्च ट्रस्ट में मेडिकल रिसर्च सेंटर की स्थापना के संस्थापक ट्रस्टी हैं। वह श्री सनातन धर्म लक्ष्मी नारायण मंदिर दिल्ली (बिड़ला-मंदिर) ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं।
डॉ. शिव की सभी उपलब्धियों के पीछे उनकी समर्पित और प्रेरक पत्नी च्च् प् ध् ॅ क्तण् श्रीमती विजय शर्मा जी जिनका जन्म 22 अक्टूबर को हुआ उनका बहुत बड़ा हाथ है। यह उनका सहयोग व समर्पण ही है जिन्होंने घर की पूरी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ओढ़ ली। उन्हें अपने व्यवसायिक कर्तव्यों के साथ-साथ घर की ज़िम्मदारियों का पूरा जिम्मा अपने कंधों पर ले लिया। डॉक्टर होने के नाते क्लीनिक और हॉस्पिटल में उनका बहुत व्यस्त कार्यक्रम रहता था फिर भी डॉक्टर शिव की समाज के प्रति सेवा की भावना और जुनून को देखते हुए उन्होंने डॉक्टर साहेब की परिवार के प्रति जो जिम्मेदारियां थीं वह स्वयं पर ओढ़ लीं और उन्हें बखूबी निभाया। डॉ. श्रीमती विजय शर्मा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली, धर्मशाला व जालंधर में प्राप्त की। उन्होंने मेडिकल कॉलेज, अमृतसर से एमबीबीएस किया।
विवाह के उपरांत डॉ. शिवकुमार और श्रीमती विजय शर्मा ने पालमपुर में प्रैक्टिस शुरू की और खूब नाम कमाया क्योंकि उन दिनों पालमपुर में कोई प्राइवेट हॉस्पिटल नहीं होते थे लेकिन इन दोनों दंपतियों ने कभी भी इस बात का फायदा नहीं उठाया कि लोगों के पास कोई और विकल्प नहीं है तो इसलिए मनमर्जी से पैसे ले लिए जाएं। इन्होंने मेडिकल प्रोफेशन को सेवा के रूप में देखा न कि पैसे कमाने का ज़रिया। यही कारण रहा कि जनसेवा की भावना के होते हुए आर्थिक रूप से यह पालमपुर का डॉक्टर दंपति आर्थिक रूप में इतनी तरक्की नहीं कर पाया जो एक डॉक्टर होने के रूप में इन्हें कर लेनी चाहिए थी। परंतु उन्होंने आर्थिक तरक्की के बनिस्बत सामाजिक तरक्की व जनसेवा को तरज़ीह दी। डॉ शिवकुमार तो हमेशा समाज सेवा में व्यस्त रहते थे। एक तो क्लीनिक और हॉस्पिटल का दबाव और ऊपर से समाज सेवा का जुनून, डॉ. शिव परिवार के लिए बहुत कम समय निकाल पाते थे परंतु डॉ विजय शर्मा जी ने कभी भी इस बात का गिला शिकवा नहीं किया कि आप परिवार की तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं बल्कि समाज सेवा में उनका हाथ बंटाते और साथ मंे घर की ज़िम्मेदारियां भी निभाते।
कहते हैं हर कामयाब पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है यहां पर डॉ शिवकुमार की सामाजिक सेवा और समर्पण के पीछे श्रीमती विजय शर्मा का बहुत बड़ा हाथ है। उन्होंने अपने प्रोफेशनल व्यवसाय के साथ-साथ घर की जिम्मेवारी भी बखूबी निभाई। उनके दो बच्चे वैशाली और राघव हैं जोकि अपने-अपने कार्य क्षेत्रों में बहुत सफलतापूर्वक कार्य निर्वहन कर रहे हैं। डॉ. शिव कुमार ने जितने कार्य किए हैं वह किसी अकेले व्यक्ति के लिए कर पाना न केवल मुश्किल है बल्कि असंभव भी है। इसीलिए कहते हैं कि डॉ शिवकुमार एक ‘वन मैन आर्मी’ हैं। पूरे का पूरा संस्थान भी इतना कार्य नहीं कर पाता जितना कार्य डॉ शिवकुमार ने अकेले कर दिखाया है।
शनि सेवा सदन पर डॉ. शिव कुमार का हमेशा वरद् हस्त रहा है और वह शनि सेवा सदन द्वारा किए जा रहे कार्यों की हमेशा प्रशंसा और मार्गदर्शन करते रहते हैं। डॉ. शिव कुमार जब कभी भी शनि सेवा सदन के आगे से निकलते हैं तो वह भाटिया जी को एक बात बोल कर जाते हैं कि भाटिया अपनी सेहत का भी ख्याल रखा कर, अगर सेहत होगी तो ही जनता की सेवा कर पाएगा। बिना सेहत के सेवा नहीं हो पाएगी। ये शब्द भाटिया जी के कानों में हमेशा गूंजते रहते हैं।
जब परविन्द्र भाटिया जी डॉक्टर साहब से आशीर्वाद लेने गए तो बहुत हिचकिचा रहे थे कि इतनी बड़ी हस्ती के आगे जाने की उनकी हैसियत नहीं है, मैं उनके समक्ष खुद को मामूली सा सेवक समझ रहा हूं। उन्होंने बहुत हिम्मत की व डाॅक्टर साहब से आशीर्वाद लेने गए।
जब उनसे मिले तो डॉक्टर साहब ने फिर से उन्हें वही सलाह दी कि तू अपनी सेहत का भी ख्याल रखा कर, सेहत होगी तभी तो सेवा भी होगी। सेहत के बिना समाज सेवा कर पाना मुश्किल है। शनि सेवा सदन के कार्यों को डॉक्टर साहब ने बहुत सराहा और प्रोत्साहित किया। हमेशा की तरह शनि सेवा सदन को अपना आशीर्वाद दिया और मार्गदर्शन किया। शनि सेवा सदन डॉक्टर साहब द्वारा दिए गए सुझावों पर अमल करने की कोशिश करेगा।
भाटिया जी ने बताया कि जब डॉक्टर साहब ने यह कहा कि शनि सेवा सदन अच्छा कार्य कर रहा है तो भाटिया जी का जवाब था कि हम तो केवल मात्र वर्तमान में ही सेवा कर रहे हैं परंतु डॉक्टर शिव आपने जो सेवा के पौधे जगह-जगह लगाए हैं उनके फलों का लाभ आने वाली पीढ़ियों को भी मिलता रहेगा क्योंकि डॉक्टर साहब की दूरदर्शिता के कारण उन्होंने ऐसे समाज सेवा के पौधे रोपित किए हैं जो सदियों तक लोगों को याद रहेंगे और उनके द्वारा किए गए कार्य का लाभ लोगों को हमेशा मिलता रहेगा।
हम शनि सेवा सदन के सभी सदस्य और पालमपुर के सम्पूर्ण निवासी डॉक्टर साहेब, डॉ श्रीमती विजय शर्मा तथा उनके परिवार के सभी सदस्यों की स्वस्थ दीर्घायु की कामना करते हैं ताकि उनकी छत्रच्छाया में समाज खुद को असहाय न समझे क्योंकि गरीब लोगों को डॉक्टर साहेब जैसे कृपालु शख़्सियत की बहुत आवश्यकता है। उनके मार्गदर्शन में समाज आगे बढ़ता रहेगा। ज़रूरतमन्द खुद को महफूज़ और सुरक्षित समझता रहेगा। गरीबों, बेसहारा और ज़रूरतमंदों को हमेशा यह एहसास होता रहेगा कि उनके सिर पर उनके सरपरस्त का हाथ है, आशीर्वाद है, दुआ है और दया है।