एक आह भरी होगी हमने ना सुनी होगी जाते-जाते तुमने आवाज तो दी होगी
हर वक्त यही है ग़म उस वक्त कहाँ थे हम कहाँ तुम चले गए…
कभी आँसू के काँटे
इस दिल में चुभते हैं
ना दर्द ठहरता है
ना आँसू रूकते हैं
तुम्हें ढूंढ़ रहा है प्यार
कहां तुम चले गए…
Rajesh Suryavanshi, Editor-In-Chief, 9418130904
अरबों लोगों की दुनियां में कुछ विरले शख़्स ही होते हैं जो अपने पीछे एक अविस्मरणीय सुनहरी इतिहास छोड़ जाते हैं जो हज़ारों वर्ष तक लोगों के जीवन को रोशन करता रहता है, महकाता रहता है।
ऐसे ही एक महान् युगपुरुष, युग प्रवर्तक, समाजसेवा के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि पाकर कनाडा से भी दान लेकर अपने कंधों पर समाजसेवा का बीड़ा उठाने वाले महापुरूष थे डॉक्टर शिव कुमार।
माताश्री श्रीमती इन्दिरा कुमारी व पिताश्री महान् शिक्षाविद, समाजसेवी एवं प्रख्यात राजनीतिज्ञ पंडित अमरनाथ जी के घर आंगन में 4 जून 1939 रविवार के दिन एक ऐसे चिराग ने जन्म लिया जिसने पूरी दुनिया को अपनी लौ से जगमगा दिया।
डॉ शिव के रूप में इस नन्हे फ़रिश्ते के घर में कदम रखते ही चारों ओर खुशहाली छा गई। उस समय शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यह नन्हा बालक एक दिन मानवता की ऐसी मिसाल कायम कर जाएगा कि लोग दांतों तले उंगलियां दबाने को मज्बूर हो जायेंगे।
एक ऐसा इतिहास रचेगा यह बालक जिसे दोहराना कठिन ही नहीं असम्भव होगा। हुआ भी कुछ ऐसा ही।
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सनातन धर्म हाई स्कूल बैजनाथ और पालमपुर से प्राप्त की। एमबीबीएस की शिक्षा उन्होंने मेडिकल कॉलेज अमृतसर से प्राप्त की।
डॉ. शिव कुमार ने अपनी निजी प्रेक्टिस पालमपुर में शुरू की। वह एक कुशल चिकित्सक होने के साथ-साथ एक महान समाजसेवी भी थे। उन्होंने कई संस्थाओं की स्थापना की और मानव कल्याण के लिए कार्य किया।
डॉ. शिव कुमार ने रोटरी क्लब पालमपुर के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उन्होंने मारंडा रोटरी आई अस्पताल की स्थापना की। यह अस्पताल पूरे उत्तरी भारत में आंखों के इलाज के लिए प्रसिद्ध है।
डॉ. शिव कुमार ने पालमपुर रोटरी हेल्पेज फाउंडेशन की स्थापना की। इस फाउंडेशन के अंतर्गत उन्होंने पालमपुर में एक वृद्धाश्रम, एक बाल आश्रम, एक इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट और एक दिमागी रूप से कमजोर बच्चों के लिए केंद्र की स्थापना की।
हम उनकी नेक नीयति का अन्दाज़ा इसी बात से लगा सकते हैं कि ऐसा कोई विरला ही होगा जो अपने नाम के साथ ‘शर्मा’ जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल नहीं करता होगा। लेकिन हैरानी की बात है कि उन्होंने अपने नाम के साथ कभी शर्मा शब्द नहीं जोड़ा क्योंकि वह किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं करते थे। सम्पूर्ण मानव जाति को वह एक नज़र से देखते थे।
जबकि लोग अपने नाम के साथ *शर्मा* शब्द जोड़ना सम्मान सूचक समझते हैं। बाद में लोग उन्हें स्नेहपूर्वक डॉ. शिव कह कर पुकारने लगे।
शायर ने क्या खूब लिखा है…
“यूँ ही नहीं मिलती
राही को मंजिल,
एक जुनून सा दिल में
जगाना पड़ता हैं,
पूछा चिड़िया से
कैसे बनता है आशियाना,
तो बोली तिनका-तिनका उठाना पड़ता हैं।”
जनसेवा के क्षेत्र में उन्हें यूं ही अंतरराष्ट्रीय स्तर की ख्याति नहीं मिली। सच्ची समाजसेवा के क्षेत्र में उन्हें कई अग्नि परीक्षाओं से गुज़रना पड़ा। कई उतार-चढ़ाव सहने पड़े। कई अपनों को दिल तोड़ते देखा। गहरी दोस्ती का खंजर सीने में चुभते देखा।
अपने परिवार को, अपने कैरियर को, अपने टॉप क्लास क्लिनिक को कुर्बान करना पड़ा।
डॉ. शिव अरबों रूपया कमा सकते थे। बड़ी-बड़ी हवेलियां खड़ी कर सकते थे, करोड़़ों रुपए की लग्जरी गाड़ियों का आनंद उठा सकते थे, बैंक बैलैन्स इकट्ठा कर सकते थे लेकिन उन्होंने एक छोटे से घर में ही गुज़ारा किया। वास्तव में एक सच्चा चेयरपर्सन वही होता है जो अपने स्वार्थ को सर्वोवरि न समझ कर संस्थान को अधिक महत्व दे। संस्थान पर किसी किस्म की कोई आंच आने दे। जिसमें बड़ी से बडी समस्या को चुटकियों में हल करने की योग्यता हो। जब तक डॉ शिव ने कमान सम्भाली रोटरी आई फाउंडेशन पर कभी कोई उंगली नहीं उठी। सब कुछ सहजता से चलता रहा। इतने महान थे हमारे डॉक्टर शिव!
क्लिनिक को भी विशाल रूप नहीं दिया। जनसेवा को तरजीह देते हुए उन्होंने राजनीति को भी अपनाया, विधायक बनकर भी जनता की सेवा ही की। कहां मिलती है जनसेवा की ऐसी अनूठी मिसाल दुनियां में। उनके राजनीतिक विरोधी भी उन्हें अत्यधिक सम्मान देते थे। हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि जब डॉक्टर शिव ने एमबीबीएस की डिग्री हासिल की थी उन दिनों विरले लोग ही डॉक्टर हुआ करते थे। सभी ने इस पेशे का बखूबी लाभ उठाया लेकिन डॉ. षिव जनता की सेवा में ही लगे रहे। 10-15 किलोमीटर तक वह पैदल ही दवाईयां अटैची में डाल कर अकेले ही मरीज़ों के घर उनका ईलाज करने निकल जाते थे।
ग़रीबों के तो वह मसीहा थे और उसी नक़्शे-क़दम पर आज उनके सुपुत्र श्री राघव शर्मा भी चल रहे हैं। उनसे भी किसी का दुःख देखा नहीं जाता। हर किसी की मदद के लिए वह स्वयं को सदा तैयार रखते हैं, भले ही वह सेवा तन की हो, मन की हो अथवा धन की। ईश्वर उन्हें दीर्घायु दें ताकि वह डॉ. शिव के सभी सपनों को साकार कर सकें। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि जो दर्द श्री राघव के मन में डॉक्टर शिव और उनके सभी प्रोजैक्ट्स को लेकर है वह प्रेम, वह दर्द किसी और के दिल में कदापि नहीं हो सकता।
श्री राघव शर्मा के हाथों में ही अपने पिता के कार्यों को आगे बढ़ाने की पूरी ज़िम्मेदारी है जिसे वह हर हालत में निभाने का प्रयास कर रहे हैं भले ही इसके लिए उन्हें कुछ लोगों की कुछ बातें भी सहन करनी पड़ रही है। लेकिन वह दिन दूर नहीं जब फिर से डॉ. शिव का परचम और अधिक वेग से लहरायेगा, ऐसा उनके शुभचिंतकों का मानना है।
लोगों ने आशा जताई है कि बहुत जल्द डॉक्टर शिव द्वारा संचालित हर संस्थान के प्रांगण में डॉ. शिव कुमार जी की आदमकद प्रतिमाएं लगा कर उन्हें उनका सच्चा सम्मान दिया जायेगा जिसके वे हक़दार हैं।
एक परिवार का भरण-पोषण करना कितना कठिन कार्य होता है जबकि डॉक्टर शिव ने तो लाखों लोगों का जिम्मा उठा लिया।
उन्होंने किसी से कुछ छीना नहीं बल्कि हज़ारों लोगों को रोज़गार देकर एक इतिहास रच दिया।
डॉक्टर शिव की यह खा़सियत थी कि वह अपने शत्रुओं के साथ भी ऐसा स्नेहपूर्ण व मित्रता का व्यवहार करते थे कि वे उनके परम् मित्र बन जाते थे और सदा उनके अंग-संग रहते थे। यही वजह रही कि वह एक के बाद एक उन्नति की मंज़िलों को वह चूमते रहे।
बड़ी हैरानी की बात है कि जिस विरासत को बनाने में डॉक्टर शिव को सालों लग गए उसे सच्चे हृदय से आगे बढ़ाने के लिए डॉक्टर शिव जैसे ही निःस्वार्थ सेवक की ज़रूरत है, जो बुराई में से अच्छाई को ढूंढने की काबिलियत रखता हो। आपसी वैमनस्यता, शत्रुता, निजी रंजिश, निजी स्वार्थ, क्रोध और अहंकार की भावना से कोसों दूर हो। जो किसी से कुछ छीनने की नहीं बल्कि कुछ देने की क्षमता रखता हो, हॉस्पिटल को और ऊंचा उठाने की योग्यता रखता हो, ऐसा ही कोई फ़रिश्ता डॉ. शिव की विशाल विरासत को लम्बे समय तक सम्भाल सकता है।
29 नवम्बर को डॉक्टर शिव जी को हमसे ज़ुदा हुए दो वर्ष बीत जाएंगे। वह शारीरिक रूप से तो हम से अलग हो गए लेकिन हमारे मन में, दिल के एक खास कोने में वह आज भी उसी तरह साक्षात् विराजमान हैं।
हमें आज भी यूं लगता है मानो डॉ. शिव थोड़ी देर लिए कहीं गए हैं और जल्द ही हमारे सामने प्रकट हो जाएंगे और अपनी चेयरमैन की कुर्सी को शोभायमान करेंगे। उनका हंसता-मुस्कराता हुआ चेहरा आज भी हमारे ज़हन में उभरने लगता है।
न जाने क्यों ऐसा लगता है मानो हमेशा की तरह डॉ. शिव अभी-अभी सुन्दर सूट-बुट और टाई में, कैप और चश्मा लगाए, मुस्कुराते हुए हमारे आंखों के सामने आ जाएंगे और हमारा और हमारे परिवार का कुशल क्षेम पूछेंगे। लेकिन दुनिया से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहां। उनकी कमी को कभी पूरा नहीं किया जा सकेगा।
‘‘बिछड़ा कुछ इस तरह से कि रूत ही बदल गई, इक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया।’
भावभीनी श्रद्धांजलि
आज 29 नवंबर को डॉ. शिव कुमार की दूसरी पुण्यतिथि पर हम उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं आंसुओं से नम भीगी आंखों से ।
डॉ. शिव कुमार एक महान समाजसेवी थे जिन्होंने मानव सेवा हेतु सुख-चैन, धन-ऐश्वर्य को त्याग कर अपने जीवन को मानव कल्याण के लिए समर्पित कर दिया।
डॉ. शिव कुमार एक महान समाजसेवी थे। उन्होंने अपने जीवन को मानव कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उनकी मृत्यु से मानवता को अपूरणीय क्षति हुई है। 29 नवम्बर का ह्रदय विदारक काला दिन कभी भुलाया नहीं जा सकता।
हम उनकी स्मृति को हमेशा अपने दिल में संजोकर रखेंगे।
“इन आँसुओं को
बह लेने दीजिये,
दर्द में ये दवा का
काम करते हैं,
सीने में सुलग रहे हैं
अँगारे जो,
ये उन्हें बुझाने का
काम करते हैं।”
ॐ शांति!
शनि सेवा सदन पालमपुर
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