रामायण में कहा गया था प्राण जाए पर वचन ना जाए आजकल भारत में नियम है इंसान के प्राण जाए पर एक पेड़ ना कट पाए

विदेशों में एक इंसान की जान बचाने के लिए बहुत कुछ कुर्बान कर दिया जाता है परंतु भारत में आप एक पेड़ की टहनी नहीं कर सकते बेशक 10 15 इंसानों की जान चली जाए।

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बीके सूद मुख्य संपादक

Bksood chief editor

पेड़ों की कीमत ज्यादा या इंसान की जान की कीमत ज्यादा आप खुद अंदाजा लगाइए ।

मैं भी पिछले 3 सालों से इसी मुहिम पर लगा हुआ हूं इन खतरनाक पेड़ों को काट दिया जाना चाहिए लेकिन नक्कारखाने में तूती की कौन सुनता है । हमारे प्रशासन के तो हाथ बंधे हुए हैं ,लेकिन शासन भी मूकदर्शक बनकर क्यों बैठा रहता है क्या हमारा शासन ऐसे नियमों में बदलाव नहीं कर सकता कि जो खतरनाक पेड़ हैं उन्हें काट दिया जाना चाहिए और किसी भी परमिशन की जरूरत ना हो।

यह नजारा जो आप नीचे देख रहे हैं यह पालमपुर की पुरानी सब्जी मंडी के एकदम पास है। मजेदार बात यह कि यह स्थान डीएफओ ऑफिस के एकदम बैक साइड में, पिछवाड़े में है जहां पर लोगों की भीड़ और खरीदारों का तांता लगा रहता है ।

सोचिए अगर यह पुराना बूढ़ा सड़ा गला पेड़ किसी बाईकर पर किसी स्कूटी सवार पर किसी कार पर किसी ट्रक पर किसी बस पर गिर जाता तो कितने लोगों की जान जा सकती थी ।

क्या यह सड़ा गला हुआ पेड़ जिसे लोकल भाषा में बीयून्स कहते हैं इतना कीमती हो गया है कि इंसानों की जान की कीमत इसके आगे कुछ भी नहीं हैरानी होती है ऐसे कानूनों पर जो, हमारे गले की फांस बने हुए होते हैं, और प्रशासन के हाथ जिसमें बंधे होते हैं

अभी  3 वर्ष पहले 15अगस्त को मोदी जी ने कहा कि हमने 14 सौ के करीब बेकार कानूनों को खत्म कर दिया है  बहुत अच्छी बात परंतु क्या यह कानून बेकार नहीं है कि आप गला सड़ा पुराना बूढ़ा बेकार इंसानों के जीवन जीवन को खतरा बने पेड़ को नहीं काट सकते ।अगर किसीकी चलती है,या किसी की मोदी जी से डायरेक्ट बात होती है तो कृपया यह बात उन तक पहुंचेयाएँ कि इंसान की जान की कीमत पेड़ों की से ज्यादा है।

पेड़ नहीं काटने चाहिए लेकिन जहां कटने चाहिए वहां काट दिए जाने चाहिए अगर यह पेड़ किसी कार पर या किसी बाइक सवार पर गिरता तो यकीन मानिए उसका बचना मुश्किल ही नही नामुमकिन था था ।इस तरह के पेड़ों के प्रति हमें शायद जन आंदोलन ही करना पड़ेगा।
मैं तो पिछले 3 सालों से प्रशासन के विभिन्न अधिकारियों को लिख लिख कर थक चुका हूं आरटीआई भी डाली परंतु कोई नतीजा नहीं निकला आप लोग भी इस आंदोलन में शामिल होइए।

यहां  पालमपुर के पंजाब केसरी के वरिष्ठ पत्रकार गीतेश भृगु जी ने एक डिटेल रिपोर्ट डाली थी जिसमें की खतरनाक पेड़ों के बारे में विश्लेषण किया गया था कि कुछ पेड़ कितने खतरनाक है और कभी भी किसी भी इंसान की जीवन लीला को समाप्त कर सकते हैं।

परंतु उनकी विस्तृत रिपोर्ट के बाद भी कुछ नहीं हुआ। पता नहीं भारत में ऐसे कानून क्यों हैं जिसमें इंसान की जान की कीमत पेड़ों की कीमत से ज्यादा है चित्र में जो आपको पेड़ दिखाई दे रहे हैं वह केवल मात्र फ्यूलवुड ही है इनकी कोई अधिक महत्वता नहीं है और ना ही इनका मूल्य अधिक है परंतु ना जाने किन कानूनी दांवपेच की वजह से यह पेड़ कट नहीं पाते ऐसा नहीं है कि ऐसे पेड़ पालमपुर में ही हैं ऐसे पेड़ आपको हर जगह मिल जाएंगे परंतु शासन प्रशासन के हाथ बंधे होते हैं। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि कुछ निर्माण कार्य चंद पेड़ों की वजह से रुक जाते हैं एक और ज्वलंत उदाहरण यह था कि कालू दी हट्टी के पास एक पेड़ था जो सड़क के बीचो-बीच था और वह सूख चुका था परंतु कई वर्ष तक वह पेड़ सड़क के बीचो बीच खड़ा रहा और ट्रैफिक के लिए बाधा बना रहा परंतु उस पेड़ को काटा नहीं जा सका और जहां तक मुझे याद ह उस पेड़ की वजह से वहां पर एक आधी दुर्घटना भी हुई थी।

सरकार को चाहिए कि वह इस तरह से खतरनाक पेड़ों को कानूनी पचड़े में ना डालें और जरूरी हो तो इस विषय में कानून में बदलाव कर  अधिकारियों को पूर्ण रूप से छूट दें कि  वह उन पेड़ों को जो जो खतरनाक  हैं उन्हें कम से कम समय में काटकर इंसानी जीवन की रक्षा करें।

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