क्या राजनीतिक पार्टियों का हित देश हित से बड़ा

वाजपई जी ने कहा था कि अच्छे लोगों को काबिल लोगों को चुनकर भेजिए अच्छी पार्टियां स्वयं बन जाएंगी।

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Editorial

क्या राजनीतिक पार्टियों का हित देश हित से बड़ा?

bksood Chief Editor

हमारे देश में केवल सत्ता पक्ष के नेताओं या कार्यकर्ताओं को ही केवल अपने सारे उचित अनुचित कार्य करवाने का अधिकार है विपक्ष में बैठे नेताओं या कार्यकर्ताओं के कोई अधिकार नहीं होता?
क्या यह परिपाटी सही है ?
क्या जहां विपक्ष का एमएलए या सांसद हो वह क्षेत्र विकास की गति से वंचित रहना चाहिए?
क्या उस क्षेत्र के मतदाताओं का जहाँ विपक्ष का MP या MLA हो ,उनके  कोई निजि या लोकहित के कार्य नहीं होने चाहिए?
क्या वे इस देश के नागरिक नहीं है या विधानसभा क्षेत्र के वोटर नहीं है? हिमाचल प्रदेश  या देश के वोटर नहीं है?
यही हमारे देश की त्रासदी और विडम्बना है ,कि हम नागरिकों ने खुद को पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में बांट लिया है जबकि सर्वप्रथम हमें देश के कार्यकर्ता होना चाहिए ,देश के नागरिक होना चाहिए।
क्या देश प्रदेश में उन वोटों का कोई अधिकार नहीं रहता जिन्होंने विपक्ष की पार्टी को वोट किया हो?
क्या उनकी कोई समस्या नहीं होती ? और क्या उन्हें उनके समाधान के लिए उनके सभी अधिकार खत्म हो जाते हैं, जिन्होंने विपक्ष को वोट किया है? यह एक सोचनीय विषय है क्योंकि सरकार तो सभी नागरिकों की होती है ना की पार्टी कार्यकर्ताओं की। हमारे देश की विडंबना यही है कि जब भी सरकार बदलती है किसी पार्टी की सरकार आती है तो पार्टी कार्यकर्ता यह बोलना शुरू कर देते हैं कि अब हमारी सरकार आई है अब इन को देखते लेंगे। इसका मतलब हुआ कि जो विपक्षी कार्यकर्ता हैं वह उनकी सरकार नहीं हुई? यह परिपाटी आज से नहीं आजादी से ही शुरू हो गई जो कि एक गलत संदेश दे रही है ।
यदि किसी विधानसभा क्षेत्र में किसी विजेता उम्मीदवार को 22000 वोट मिले हैं तो विपक्ष को भी 20000 वोट मिलते हैं, जिसका सीधा सा मतलब यह हुआ कि 20000 लोगों के अधिकार बिल्कुल सस्पेंड हो गए हैं निलंबित हो गए हैं अगले 5 वर्षों के लिए ।
जबकि अमेरिका और इंग्लैंड जैसे देश जो दुनिया के सबसे सबसे पुराने लोकतंत्र देशों में से एक हैं में ऐसा नहीं होता ।
वहां पर केवल वोटरों को केवल नागरिक के रूप में देखा जाता है, पार्टी कार्यकर्ता या पार्टी वोटर के रूप में नहीं ।
हैरानी की बात तो यह है कि वहां पर नेताओं को यह पता तक नहीं चलता कि कौन सा वोटर या व्यक्ति उनका समर्थक है और कौन उनके विपक्ष में है । जबकि हमारे देश में लोकसभा या विधान सभा ,जिसमें की लाखों वोटर होते हैं तो उन लाखों वोटरों में भी सांसद या विधायक को एक-एक वोटर का पता होता है कि कौन कौन से व्यक्ति ने उन्हें वोट किया है और कौन से व्यक्ति ने नहीं! बताइए हमारे देश के नेता की स्मरण शक्ति पर आप हैरान नहीं होंगे कि वह 16 लाख वोटरों मे से 1-1 को पहचानते हैं और 1-1 को जानते हैं ,तथा उनके चरित्र से लेकर चेहरे तक सभी बातें पता होती है । यह तो गिनीज़ बुक ऑफ रिकॉर्ड में शामिल करने लायक बात है । किसी भी व्यक्ति की इमानदारी उसके चरित्र उसके चाल चलन की सभी गलत इंफॉर्मेशन यह तथाकथित चेले चपाटे अपने निजी स्वार्थों के लिए नेताओं के कान भर भर कर देते रहते हैं जिन्हें तथाकथित तौर पर उनका सबसे बड़ा शुभचिंतक और पार्टी वर्कर कहा जाता है। और हैरानी की बात यह कि है नेता लोग लगभग 80% तक इसी इंफॉर्मेशन पर कार्य करते हैं और इसी इंफॉर्मेशन पर बदला बदले की भावना पर चलते हैं। सोचिए बात अगर लोकसभा या विधानसभा क्षेत्रों में इतना बुरा हाल है तो पंचायत स्तर पर वार्ड में वह लोग अपने विरोधियों के साथ क्या-क्या नहीं करते होंगे? और अपने विरोधी मतदाताओं के प्रति कितनी दुर्भावना से कार्य करते होंगे कैसे उनके छोटे-छोटे काम करने के लिए कितने चक्कर लग जाते होंगे। किस तरह से उन लोगों का चरित्र हनन किया जाता होगा यह सचमुच बहुत ही गलत परिपाटी है।
बात चेले चपाटों के, या समर्थकों के सभी उचित या अनुचित काम करने तक सीमित होती तो भी ठीक था । परंतु हमारे देश में हालात यह हैं कि जहां विपक्ष का उम्मीदवार जीत जाता है या एमएलए बन जाता है उस विधानसभा क्षेत्र को भी पूरी तरह से उपेक्षित कर दिया जाता है। वहां पर विकास की गति को रोक दिया जाता है, और विकास केवल मात्र जीती हुई पार्टी के विधानसभा क्षेत्रों में ही गति पकड़ता है और विपक्ष के जीते हुए विधानसभा क्षेत्रों में स्पीड ब्रेकर लगा दिए जाते हैं।यह कितनी विडंबना है। क्या वे क्षेत्र जहां पर विपक्ष का एमएलए जीता हो वे विधानसभा क्षेत्र दूसरे देश के क्षेत्र हो जाते हैं ,?अगर उन्हें दूसरे देश के क्षेत्र मान भी लिया जाए तो भी ठीक था परंतु उस विपक्ष के क्षेत्र को या विपक्ष के एमएलए को हिंदुस्तान पाकिस्तान की बाउंड्री की मे बांट दिया जाता है ,जो कि बहुत ही दुख का विषय है ।
इससे सत्ता पक्ष उस जीते हुए उम्मीदवार के वोटरों से तो बदला ले सकती है परंतु अवश्य ही वह उन वोटरों के साथ अन्याय करती हैं जो उसी विधानसभा क्षेत्र में उनको वोट दिए हुए रहते हैं ।
मान लीजिए 1 विधानसभा क्षेत्र में 220000 वोट लेकर जीतने वाला एमएलए विपक्ष में बैठा है उसको तो सजा मिलनी ही चाहिए लेकिन परंतु सत्ता पक्ष को यह भी सोचना चाहिए कि उसी विधानसभा क्षेत्र में उन 20000 वोटरों का क्या कसूर है जिन्होंने उनके पक्ष में वोट किया था, उन्हें क्यों विकास की गति से वंचित किया जाता है।
और यह सब केवल उन चंद लोगों के कहने पर किया जाता है जो सत्ता के गलियारों में बिल्कुल चापलूसी करते हुए रहते हैं और सबसे बुरी हालत तो उन लोगों की होती हैं जो ना सत्तापक्ष से होते हैं और ना विपक्ष से।
ना किसी B पार्टी के कार्यकर्ता होते हैं ना C पार्टी के. जिन्होंने केवल उम्मीदवार की काबिलियत को देखकर वोट किया होता है ना की पार्टी को देख कर ।
परम आदरणीय अटल बिहारी वाजपेई भी इस परिपाटी से बहुत दुखी थे और उन्होंने संसद में कहा था कि भारत के वोटरों को सही आदमी चुनकर संसद में भेजने चाहिए उन्हें काबिल आदमी भेजने चाहिए ना कि पार्टी के कार्यकर्ता। अगर काबिल आदमी संसद में पहुंचेगा तो है अच्छी पार्टियां खुद बन जाएंगी। वे सभी अच्छे लोग एक बहुत अच्छी पार्टी बनाएंगे और देश को प्रगति की राह पर द्रुतगति से चलाएंगे ।परंतु वाजपेई जी के विचार शांता जी के विचार केवल सिद्धांतों तक ही सीमित रहते हैं। असलियत में तो वही विचार चलते हैं जिन पर वोट मिलते हैं, सत्ता मिलती है और वह भी साम दाम दंड भेद की नीति अपनाकर। काश हमारे देश में सभी लोग वाजपाई जी के कहने के अनुसार अच्छे लोगों को चुनकर आगे भेजेते ताकि वह देश हित की बात करें ,पार्टी हित की बात ना करें, क्योंकि देश हित सर्वोपरि होता है और पार्टी हित उसके बाद होना चाहिए। देश बचेगा तो पार्टियां बचेंगी लेकिन भारत में जो ट्रेंड चल रहा है उसके अनुसार शायद ऐसा नहीं होने वाला नही पश्चिम बंगाल केरल उत्तरप्रदेश आदि इसके ज्वंलत उदाहरण है। वैसे कई दशकों में भारत में ऐसा ही होता रहा है जहां पर केवल चित्र को देखकर मोहर लगाई जाती थी चरित्र को देखकर नहीं।
राष्ट्रीय मुद्दे या राष्ट्रीय चुनौतियां समस्याएं पार्टी के मुद्दों या हितों से बड़े हो जाते हैं

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