शादी समारोह रैलियां चालू परंतु स्कूल बंद
Bksood chief editor
सरकार जब कभी भी कोविड के केस बढ़ते हैं तो सरकार सबसे पहले स्कूल और कॉलेज को बंद करने की अनुशंसा करती है ,और बाद में उसे बंद भी कर दिया जाता है ।
जबकि स्कूलों में कोरोना के सभी नियमों का पालन किया जाता है। बच्चों को अधिक से अधिक कोविड नियमों के तहत अध्ययन करवाया जाता है ।उनके आने-जाने में भी उचित सोशल डिस्टेंसिंग का प्रबंध किया जाता है ।
जो देश का भविष्य हैं उनके भविष्य के साथ ये कैसे खिलवाड़ हो रहा है ? यह इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्कूलों में अगर 300 बच्चे आजाए तो वहां पर कोरोना फैलने का बहुत डर हो जाता है, परंतु चुनावी रैली में अगर तीन लाख लोग भी आ जाएं तो भी वहां पर कोरोना फैलने का कोई डर नहीं रहता। यह है हमारे देश के भाग्य निर्माताओं की सोच। अभी हाल ही में इलेक्शन कमीशन ने चुनावी रैलियों पर प्रतिबंध लगाया था परंतु अभी कल ही उत्तर प्रदेश में इतनी बड़ी रैली हो गई की कोरोना भी शरमा गया होगा ।पहले चुनाव आयोग ने 15 जनवरी तक रैलियों पर रोक लगाई और अब उसे बढ़ाकर 22 जनवरी तक कर दिया गया है जबकि चुनाव का पहला चरण 10 फरवरी से शुरू होने वाला है इसका सीधा सा मतलब है कि चुनाव आयोग किस तरह से शासन की गुड़िया बनकर रह गया है ।क्या सरकार को स्वयं नहीं चाहिए कि वह अध्यादेश लाकर चुनावी रैलियों पर रोक लगाये। लाखों लोगों की भीड़ से तो करोना फेल नहीं सकता, लेकिन स्कूल में जहां पर कोविड के हर नियम का पालन किया जाता है वहां पर कोरोना फैल सकता है। स्कूली बच्चे जो पिछले 2 वर्षों से घर बैठे हैं उनके भविष्य के साथ किस तरह से खिलवाड़ हो रहा है यह हमारे देश के करण धारों को सोचने की फुर्सत नहीं ।उन्हें तो यह सोचने से ही फुर्सत नहीं कि इलेक्शन कैसे जीते जाएं।कैसे साम दाम दंड भेद की नीति अपना कर जिस तरह से भी हो, इलेक्शंस को जीता जाए ।
कोरोना को तो सरकार बाद में हरा सकती, पहले इलेक्शन तो जीत के लिए जाएं।
स्कूलों के बंद होने से स्कूल प्रबंधन पर जो अनावश्यक आर्थिक बोझ बढ़ जाता है तथा अनावश्यक रूप से उन्हें आर्थिक बोझ के तले दबना पड़ रहा है वह अवांछित है। बच्चों से फीस नहीं आती है परन्तु स्कूल के खर्चे जस के तस चलते रहते हैं।
कुछ स्कूलों के प्रबंधक जो सैद्धांतिक रूप में किसी तरह से समझौता नहीं करना चाहते वह भी इस अनावश्यक प्रतिबंध के कारण विवश हो जाते हैं । निजी स्कूल प्रबंधन का कहना है कि कम से कम 50% बच्चों के साथ स्कूल लगने की अनुमति होनी चाहिए । शादियों तथा अन्य समारोहों में तो 300 लोग इकट्ठा हो सकते हैं ,लेकिन एक स्कूल जहां पर देश के बच्चों का भविष्य बनेगा वहां पर 300 बच्चे नहीं आ सकते शिक्षा ग्रहण नही कर सकते।
स्कूल में ना तो कोई पार्टी होती है और ना ही कोई लंच डिनर या डांस व डी जे। वहां पर सिर्फ अनुशासन होता है, और कोरोना शायद अनुशासन पसंद है भीड़ में तथा शोर-शराबे में या पार्टियों में जाना पसंद नहीं करता जहां चुनावी रैली, शादी ब्याह व अन्य समारोह होते हैं वहां पर पार्टीयां होती है तथा खूब धूम धमाके से भीड़ इकट्ठा होती है डांस करते हैं वहां पर कोरोना कैसे घुसेगा। वहां कैसे कोरोना नियमों का पालन होगा यह कर्णधार ही जाने।
सरकार को चाहिए कि वह स्कूलों का सत्यानाश होने से बचाएं। क्योंकि यह प्राइवेट स्कूल के लोग शिक्षा देते हैं जो किसी भी सरकार की जिम्मेवारी है। सरकार की शिक्षा देने की जिम्मेवारी जो उसके कंधों पर है उसमें ये प्राइवेट स्कूल अपनी सहभागिता निभा रहे हैं तथा सरकार कि सामाजिक निर्वहन के दायित्व में अपनी हिस्सेदारी में अपनी आहुति डाल रहे हैं!
रैलियों पर प्रतिबंध होने के बावजूद भी रैलियां हो रही हैं नेताओं पर कोई केस दर्ज नहीं हो रहे हैं अगर होंगे भी तो भी वह केवल फाइलों में दबकर रह जाएंगे, लेकिन यदि किसी स्कूल में ऐसा कोई दुस्साहस किया तो उसका स्कूल ही बंद करवा दिया जाएगा ।
प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के प्रबंधकों ने सरकार से गुहार लगाई है कि स्कूलों को भी कुछ नियमों के तहत कुछ प्रतिबंधों के साथ खुलने की इजाजत मिलनी चाहिए ।
सरकार के तुगलकी फरमान के विरुद्ध विद्यार्थियों ने भी आवाज उठानी शुरू कर दी है जिसका वीडियो कैथल से सोशल मीडिया पर चल रहा है।