BK Sood chief editor
सरकारी संपत्तियों का युक्तिकरण आवश्यक
वैसे तो सरकार पैसों का रोना रोती रहती है कि उसके पास पैसे नहीं है ,संसाधनों की कमी है, परंतु दूसरी तरफ सरकार में कुछ फिजूल खर्ची और कुछ लापरवाहियाँ इतनी अधिक है इस पर ध्यान देने वाला कोई नहीं। यदि सरकार की लापरवाहियां कम हो जाएं तो सरकार का लाखों नहीं करोड़ों बच सकते है। यदि सरकार सतर्क और संवेदनशील हो जाए और सरकार के अधिकारी सरकारी काम को अपने निजि नफे नुकसान की तरह देखें न केवल करोडों अरबों बच सकते हैं बल्कि करोड़ों की आय भी हो सकती है, और आय के यह संसाधन बिना किसी प्रयास के रेगुलर बने रह सकते हैं ।
मैंने पहले भी कई बार लिखा है कि सरकार की कुछ ऐसी संपत्तियां हैं जो प्राइम लोकेशन पर हैं और उन्हें अगर बिजनेस पॉइंट ऑफ यू से इस्तेमाल किया जाए तो ना केवल सरकार को लाखों की बल्कि हर महीने करोड़ों की इनकम हो सकती है। और वह भी बिना किसी प्रयास के, तथा कुछ खर्च किए बिना ही करोड़ों की इनकम सरकार को हो सकती है। केवल मात्र जरूरत है तो एक व्यापारिक सोच बनाने की तथा सर सरकार के आय के संसाधन बढ़ाने की सोच होनी चाहिए। जब सरकारी अधिकारी और प्लानर तथा नेता यह निर्णय लेंगे कि यह काम या योजना सरकारी काम या योजना नहीं है,यह हमारा अपने घर का काम है इसका नफा नुकसान हमारा निजी नफा नुकसान है तो वे स्वयंमेव ही निर्णय सही लेंगे। यदि कोई नेता अधिकारी या सरकारी कर्मचारी अपना घर बनाता है तो वह पहले यह भी सोचता है कि इससे मुझे कितनी आय होगी तथा में इस में कितनी बचत कर सकता हूं ।यदि यही सोच सरकारी कार्य व योजनाओं में भी आ जाए और योजनाकार तथा सरकारी अधिकारी इस तरह की सोच अपनाएं तो कोई कारण नहीं की सरकारों को अरबों रुपए की आय के संसाधन ना जुटाए जा सके।
अब कुछ लोग इसमें यह तर्क देंगे कि सरकार का काम व्यापार करना नहीं है तो क्या सरकार के जितने भी कॉरपोरेशन बोर्ड जो व्यापार कर रहे हैं क्या वह फायदे में चल रहे हैं जैसे कि एचआरटीसी या खादी बोर्ड या कोई अन्य बोर्ड या कॉरपोरेशन।
इस बारे में पहले भी विस्तार से बात की जा चुकी है परंतु आज जो बात की जा रही है वह यह है कि सरकार अपने अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए आवासों का निर्माण करती है और कुछ निर्माण ऐसे होते हैं जिनकी कोई आवश्यकता ही नहीं होती, या जिन आवासों में कोई रहना ही नहीं चाहता ।अभी आपको नीचे के चित्र में जो आवास दिखाई दे रहा है वह हिमाचल प्रदेश विद्युत विभाग पालमपुर का सुपरिंटेंडेंट इंजीनियर का आवास है जो पिछले कुछ वर्षों से खाली पड़ा हुआ है तथा यह आवास पालमपुर शहर की प्राइम लोकेशन पर है और होटल टी बड के एकदम साथ है। अगर यहां पर अधिकारी रहना ही नहीं चाहते तो यह आवास बनाया किस लिए गया है? हैरानी की बात यह है कि 3 साल से यहां पर घास और झाड़ियों के सिवा कुछ नहीं दिखाई दे रहा है । अगर हालात ऐसे ही रहे तो यह आवास अगले कुछ ही वर्षों में गिर कर धराशाई हो जाएगा, क्योंकि जिस घर में कोई रहता नहीं है वह घर जल्दी खराब हो जाते हैं खंडहर में तबदील हो जाते हैं। ऊपर से विभाग इसके रखरखाव पर भी कुछ खर्चा कर ही रहा होगा लेकिन रहने वाला कोई नहीं।
मान लिया जाए कि इस आवास में कोई रहने आ भी जाए तो इस आवास का सरकारी किराया जो उस अधिकारी से वसूल किया जाएगा तो वह शायद ₹2000 ₹3000 प्रति माह के हिसाब से होगा। परंतु यदि इसी आवास का कमर्शियल इस्तेमाल किया जाए तो यह 20 -30 हजार प्रतिमाह सरकार को कमा कर दे सकता है। क्योंकि यह आवास एकदम होटल टी बड के साथ है ,इसलिए इसे अगर टूरिज्म कॉरपोरेशन को ही लीज पर दे दिया जाए तो टूरिज्म कॉरपोरेशन हंसकर इसका शायद 20000 प्रति माह के हिसाब से विद्युत बोर्ड को किराया दे देगा ।यदि यही प्रॉपर्टी किसी प्राइवेट पार्टी को भी दे दिया जाए और वह वहां पर अपना कैफ़े या कुछ अन्य व्यापारिक गतिविधि शुरू कर दे तो वे भी इस का अच्छा खासा किराया सरकार को दे देगा।
यह तो मात्र एक उदाहरण है दूसरे चित्र में आप देख रहे हैं कि यह किसी के लिए क्वार्टर बनाया गया होगा जिसका इस्तेमाल शायद कभी किया ही नहीं गया होगा । अब इसकी हालत से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इसमें कितनी घास और और झाड़ियां उग गई हैं और यह और कितने दिन टिक पाएगा पता नही। अगर यही आलम रहा तो आने वाली 1-2 बरसात के बाद यह गिर कर धराशाई हो जाएगा ,और सरकारी फाइलों में इसे दफना दिया जाएगा ।सरकार ने इस आवास पर भी 10-20 लाख रुपया खर्च किया होगा ।परंतु इसका रखरखाव या इसको किसे रहने के लिए देना है इसकी जरूरत किसी ने नही समझी। अगर यही आलम रहा तो यह गिर जाएगा और फिर फाइलों में खानापूर्ति कर दी जाएगी ।अगर इस आवास में कोई रहना ही नहीं चाहता तो यह बनाया किस लिए गया था? और अगर यह बनाया गया तो इसे किसी कर्मचारी को आबंटित क्यों नहीं किया जा रहा। यह आवास भी शहर की प्राइम लोकेशन पर स्थित है तथा इस कि अगर हम कमर्शियल कीमत लगाएं तो यह बहुत कीमती जगह पर है और अगर इस पर कोई इमारत बनी है या भवन बना है तो इसकी कीमत और भी बढ़ जाती है ।परंतु इसकी परवाह किसी को नहीं ।
इसी तरह से पालमपुर शहर की प्राइम लोकेशन पुलिस स्टेशन के साथ में एक पशु चिकित्सालय बना रहा है इस चिकित्सालय की लोकेशन को कोई आम आदमी भी देखेगा तो यही कहेगा कि इस चिकित्सालय के बीच शहर में क्या आवश्यकता है। क्योंकि यहां पर पशुओं का लाना ले जाना और उन्हें दिखाना बहुत मुश्किल है ।शहर में ट्रैफिक और इंसानों की भीड़ इतनी अधिक है कि यहां पर किसी को भी पशु लाना असंभव सा है ।परंतु नहीं सरकार अपनी जिद पर अड़ी हुई है कि शहर के बीचो-बीच पशु चिकित्सालय बनना ही चाहिए। इस पशु चिकित्सालय की जगह अगर यहां पर कोई कमर्शियल एक्टिविटी शुरू कर दी जाए सरकार पार्किंग बनाकर ऊपर शॉपिंग कंपलेक्स बनाए तो करोड़ों की आय म्युनिसिपल कॉरपोरेशन को हो सकती है, परंतु नहीं सरकार का काम केवल मात्र फाइलों को आगे खिसकाना है इसमें सरकार का नुकसान है या जो इमारत बन रही उससे जानवरों को कुछ फायदा होने वाला है इससे किसी का कोई सरोकार नहीं है ,केवल लकीर के फकीर बंद कर इतनी प्राइम लोकेशन पर पशु चिकित्सालय बनाना ही है।
यह कहां की बुद्धिमता है? फिर सरकार को यह नहीं कहना चाहिए कि हमारे पास संसाधनों की कमी है संसाधन आसमान से उतर कर नहीं आएंगे उन्हें इसी धरती पर क्रिएट किया जाता है क्योंकि सरकार में बहुत ही एक्सपर्ट लोग होते हैं जो इन सभी चीजों का ध्यान रखते हैं कि यहां पर इस चीज की कोई उपयोगिता है या नहीं ।परंतु यह सोचने का वक्त किसी को नहीं होता, जो किसी भी छोटे से कर्मचारी ने एक प्रपोजल बना दी उसी पर मुहर लगती जाती है और मोहरे लग लग कर वह प्रोजेक्ट अप्रूव हो जाता है ।
इसी तरह से पालमपुर शहर में सिविल हॉस्पिटल की बैक साइड पर मार्केट की ओर काफी स्थान खाली पड़ा है जो प्राइम लोकेशन पर है, जिसका अगर व्यापारिक दृष्टि से सदुपयोग करें तो सरकार को करोड़ों का राजस्व अर्जित हो सकता है ।परंतु ऐसी सोच कहां से आएगी? अभी कुछ ही वर्ष पहले सुना है 40लाख में कंडी ब्रिज के पास सौरभ वन विहार के पास एक पार्किंग बनाई गई जिसमें पूरे दिन में 4 गाड़ियां भी खड़ी नहीं होती वहां पर 40लाख रूपया खर्च कर दिया गया था। परंतु शहर में ट्रैफिक कंजेशन इतनी अधिक है वहां पर पार्किंग की कोई व्यवस्था अभी तक नहीं हुई, यह कहां की बुद्धिमता हुई?
पालमपुर सिविल हॉस्पिटल मे मेन मार्केट की तरफ को इतनी अधिक जगह खाली छोड़ी गई है जिसका अगर व्यापारिक दृष्टि से इस्तेमाल किया जाए वहां पर छोटे-छोटे बूथ बना दिए जाएं या शॉप्स बना दी जाए तो हॉस्पिटल का आधा खर्चा आराम से निकल सकता है बिजली पानी सफाई आदि का बिल उन बूथ के किरायों से ही निकल सकता है। परंतु ऐसी सोच कहां से आएगी। यह तो केवल मात्र पालमपुर का उदाहरण है ।
आप किसी भी शहर में चले जाइए ऐसा ही नजारा आपको हर जगह देखने को मिल जाएगा बहुत प्राइम लोकेशन पर जिसके लिए निजी कंपनियां या निजी व्यापारी संस्थान करोड़ों रुपया लीज मनी या किराए का देने को तैयार हो सकती हैं वहां पर सरकार ने अपना कब्जा जमाया हुआ है जबकि अगर किसी को सरकारी दफ्तर में कोई कार्य है तो वह प्राइम लोकेशन से 500 मीटर पीछे हट कर या 1 किलोमीटर आगे पीछे जाकर भी अपना कार्य करवा सकता है और सरकार वहां से भी चल सकती है। परंतु से सरकारी महकमों को और सरकारी दफ्तरों को केवल मात्र प्राइम लोकेशन ही चाहिए। जहां पर व्यापारिक गतिविधियां होनी चाहिए वहां पर सरकारी कार्य होते हैं पालमपुर की बात करें तो पालमपुर में आज कुछ निजी व्यापारिक संस्थान लाखों रुपए प्रतिमाह के हिसाब से प्राइवेट बिल्डिंग लेकर किराया दे रही हैं और सरकार वहाँ आसपास ही अपने दफ्तर खोल कर बैठी है ।
सरकार को जब तक अपनी व्यापारिक सोच नहीं बनाई तब तक राजस्व नहीं कमाया जा सकता ।अगर सरकार चाहे तो वह करोड़ों रुपये का राजस्व बिना कोई खर्च किए बिना किसी कोशिश या प्रयास के कमा सकती है। बस केवल मात्र सरकारी अधिकारियों और योजनाकारों को सरकारी संपत्ति की लोकेशन डिसाइड करते हुए वहां की सरकारी जमीन का मूल्यांकन अवश्य करना चाहिए कि यहां पर सरकारी दफ्तर ना खोल कर उस जमीन को लीज पर देकर सरकार को कितनी आय अर्जित की जा सकती है, और जो सरकारी दफ्तर बनना है उसे उसी बिल्डिंग में उसी लोकेशन में या उसके आगे पीछे खोला जा सकता है।
जरूरत सिर्फ सोच बदलने की है।
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