यह भारत देश है यहां पर इंसान की जान की कीमत कुछ भी नहीं
जानवरों की, वृक्षों की,जान इंसानी जीवन से अधिक महत्वपूर्ण।
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यह भारत देश है यहां पर इंसान की जान की कीमत कुछ भी नहीं
अक्सर सड़कों के आसपास कुछ ऐसे खतरनाक पेड़ होते हैं जो कभी भी किसी बड़े हादसे का कारण बन सकते हैं। कुछ पेड़ तो ऐसे होते हैं जो सड़कों पर 30 डिग्री तक चुके होते हैं और उनकी जड़ें एकदम निकल चुकी होती हैं जमीन छोड़ गईको होती हैं। ऐसे पेड़ों के नीचे से गुजरने वाले किसी भी कार सवार बाइक सवार या पैदल चलने वाले या बस में बैठे सवारिया कभी भी हादसे का शिकार हो सकती हैं तथा बेशकीमती जाने जा सकती हैं ।
परंतु प्रशासन को इस बात का इल्म होता है या नही या वह जानबूझकर ऐसे विषयों पर आंखें मूंदे रहता है कि जब कोई हादसा होगा तब देखा जाएगा ।यह तो एकदम वही हाल हुआ जिसमें हाल ही में कोरोना महामारी में सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी आयी थी कि हम शतर मुर्ग की तरह रेत में सिर गड़ाए बैठे नहीं रह सकते हमें संज्ञान लेना ही पड़ेगा।
इसी तरह से शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन झुकाए या सिर रेत में गड़ाए रहने से दुर्घटना से बचा नहीं जा सकता ।यह तो ठीक वैसे ही बात होगी कि कबूतर जब बिल्ली को सामने आते देखता है तो वह अपनी आंखें मूंद लेता है और निश्चिंत हो जाता है कि बिल्ली उसे नहीं देख रही, और बिल्ली है कि चुपचाप जाकर उसकी गर्दन मरोड़ देती है ,और वह अपनी जान से हाथ धो बैठता है।
यहां यह कहना भी असंगत नहीं होगा कि प्रशासन को इन सभी चीजों की जानकारी हो या उसके संज्ञान में यह सारी बातें हैं ऐसा जरूरी नहीं, परंतु यदि कोई नागरिक उनके संज्ञान में ऐसी बात लाए तो भी वह कुछ कार्रवाई करने में असमर्थ पाते हैं, क्योंकि ग्रीन ट्रिब्यूनल का उनके सिर पर खौफ बैठा रहता है कि कहीं एक पेड़ काट दिया तो ग्रीन ट्रिब्यूनल वाले उन्हें लटका ना दें। क्योंकि भारत में एक पेड़ काटना एक कत्ल करने के समान हो गया है ।
मैंने पहले भी कई बार इस विषय पर लिखा है उच्च अधिकारियों तथा मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव तक को मेल्स की हैं लेख लिखे तथा अन्य माध्यमों से संपर्क साधने की कोशिश की परंतु सब बेकार ।
इस आज की तस्वीर में आपको जो पेड़ की एक बहुत बड़ी टहनी लटकी हुई दिखाई दे रही है वह बिल्कुल हवा में लटकी हुई है तथा कभी भी किसी भी वक्त किसी हवा के झोंके से किसी बाइक सवार पर गिर जाए तो वह तो शायद ही बच पाएगा ।परंतु अगर यह कार पर भी गिरती है तो भी बहुत बड़े जान माल का नुकसान हो सकता है ।
हां किसी ट्रक पर गिरे तो शायद इतना फर्क ना पड़ेगा और अगर यह किसी पैदल चलने वाले राहगीर के सिर पर गिरती है तो शत प्रतिशत उसकी मृत्यु होना तय है।
अन्य तस्वीरों में जो आपको झुके हुए पेड़ दिखाई दे रहे हैं वह बिल्कुल वीआईपी ऑफिसर के आवास के आसपास का नजारा है तथा शायद यह उन लोगों के संज्ञान में भी है परंतु ना जाने कौन सा कानून कौन सी मजबूरी और कौन सा भय है जो उन्हें इन पेड़ों को काटने से रोक रहा है। और शायद वह डर ग्रीन ट्रिब्यूनल का ही होगा । फिर काट दिए तो शायद पर्यावरणविद आकर उनके लिए बहुत सी परेशानियां खड़ी कर देंगे कि आपने यह पेड़ कैसे काटा । अगर प्रशासन इस विषय में कोई कार्यवाही करना भी चाहे तो भी वह कार्यवाही फाइलों में दबकर अपना दम तोड़ देंगी क्योंकि ना जाने कितनी ही अनुमतिया लेनी पड़ेगी।
क्या भारत में इंसानों के जान की कीमत कुछ भी नहीं ?या शायद इंसानों की जान से ज्यादा महत्वपूर्ण पशुओं की जान है बंदरों की जान है पेड़ों की जान है.। इंसान की जान की कीमत कुछ भी नहीं ,और वह शायद इसलिए कि हमारे पास इंसानों की कोई कमी नहीं 135 करोड़ हैं अगर 10 -20 हजार रोज दुर्घटनाओं में मर भी जाएं तो कोई ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं। चलिए देखिए इंतजार करते हैं कि भारत में भी विदेशों की तरह इंसान की जान की कीमत सबसे बेशकीमती हो जाए ।
विदेशों में अगर एक इंसान की जान आफत में आ जाए तो पूरी सरकार पूरा प्रशासन पूरा अमला उसकी जान को बचाने में जुट जाता है चाहे उसके लिए उन्हें प्लेन ही क्यों ना भेजना पड़े सेना क्यों न लगानी पड़े, उन्हें लाखों रुपया ही क्यों ना खर्च करना पड़े परंतु वह मुसीबत में फंसे उस इंसान की जान बचा लेते हैं ।