लोकसभा और राज्यसभा में हंगामे को कैसे सही ठहराया जा सकता है

1 हफ्ते से केवल साढ़े 4 घंटे काम हुआ

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Editorial bksood chief editor

लोकसभा का 1 दिन का खर्चा ₹9करोड़ तथा राज्यसभा का 1 दिन का खर्चा 5:50 करोड़ रूपये।
पिछले 7 दिनों में लोकसभा में सिर्फ 4.30 घंटे काम हुआ और दोनों सदनों की कार्यवाही पर 101.5 करोड रुपए खर्च हो गया. मैंने पहले भी एक एडिटोरियल लिखा था कि क्या यह सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की जिम्मेवारी नहीं कि सदन सुचारू रूप से चले और जनता से जुड़े हुए मुद्दों का समाधान सर्वोच्च संस्था में किया जाए ।परंतु ना तो विपक्ष जनता के मुद्दे को सही से उठा पाता है ,और ना ही सत्ता पक्ष जनता के मुद्दों की तरफ ध्यान देना चाहता है । सत्ता पक्ष जनता के ज्वलंत मुद्दों से भागना चाहता है क्योंकि जनता की समस्याएं इतनी जटिल और विकराल हैं कि उन्हें सुलझा पाना किसी भी सत्ता पक्ष के लिए लगभग असंभव सा लगता है, शिक्षा बेरोजगारी सड़क स्वास्थ्य महिला सुरक्षा महंगाई और महामारी इन सब मुद्दों पर सरकार के हाथ लगभग खड़े हैं, और विपक्ष केवल पेगासस तथा कृषि कानून का पेंच फंसा कर जनता को अपनी और आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है ।
विपक्ष यह नहीं समझ रहा कि संसद नहीं चल रही तो वह सरकार को कैसे घेरेंगे सरकार से सवाल कैसे पूछेंगे? तथा जनता के मुद्दों पर सरकार का ध्यान कैसे आकर्षित करेंगे ?
लगता है दोनों ही सदनों में मैच फिक्स होकर रह गया है क्योंकि विपक्ष जहां जनता के मुद्दों को उठा पाने में असफल रहता है वहीं पर सत्ता पक्ष विपक्ष पर दोष मढ़ कर खुद को बचाने में सफल हो जाता है ,कि विपक्ष हमें कार्य नहीं करने देता ।दूसरी ओर विपक्ष यह बोलता है कि सत्तापक्ष हमारी सुनता नहीं मतलब दोनों का मैच फिक्स है। आरोप-प्रत्यारोप करते रहो जनता इसी में उलझी रहेगी देश या जनता जाए भाड़ में ।
जब कोई इलेक्शन आएगा तो कुछ सौगातों की रेवड़ीयां बांट दी जाएंगी। या कुछ वादों के सपने दिखा दिए जाएंगे जिससे जनता फिर भ्रमित होगी कि वह नहीं यह वाला सही है और अंततः नतीजा वही होगा कि मैच फिक्स हो जाएगा ,और जनता दर्शक के रूप में सिर्फ तालियां बजाती रह जाएगी चीखती चिल्लाती रह जायेगी।
Bksood chief editor

राजेश सूर्यवंशी एडिटर इन चीफ

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