राजभवन पर आदर्श चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप पर चुप्पी साधने हेतु चुनाव आयोग की निष्क्रियता और पारदर्शिता पर उठे सवाल, कार्यप्रणाली भी संदेह के घेरे में*

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ROTARY EYE HOSPITAL MARANDA
Dr Shiv Kumar, Father of Rotary Eye Hospiral, Internationally acclaimed Social Worker & Founder CHAIRMAN, Rotary Eye Foundation
ROTARY EYE HOSPITAL MARANDA
Dr. Sudhir Salhotra, TOP TEN Retina Surgeon of India, Director, Rotary Eye Hospital, Maranda
ROTARY EYE HOSPITAL : THE VEST EYE HOSPITAL IN HIMACHAL PRADESH
Rotary Eye Hospital Maranda Palampur
Raghav Sharma, GM
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Dr. Sushma Sood, Lead Gynaecologist
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Sukhu sarkar
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Dr Shiv Kumar, Father of Rotary Eye Hospital, Internationally acclaimed Social Worker & Founder CHAIRMAN, Rotary Eye Foundation

*👉हिमाचल प्रदेश में गवर्नर हाउस पर चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप पर चुप्पी साधने हेतु चुनाव आयोग की निष्क्रियता पर सवाल, कार्यप्रणाली भी संदेह के घेरे में*

हिमाचल प्रदेश में एक बड़ा राजनीतिक विवाद कई गंभीर सवालों को जन्म दे रहा है जोकि सशक्त लोकतंत्र के मुंह पर जोरदार तमाचा हैं।

गवर्नर हाउस पर चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का गंभीर आरोप आज भी अनुत्तरित है और चीख-चीख कर कह रहा है कि जब सत्ता पर काबिज सरकार और माननीयों की बात आती है तो चुनाव आयोग के मुंह पर ताला क्यों लग जाता है, हाथ क्यों बंध जाते हैं।

मिशन अगेंस्ट करप्शन के चेयरमैन राजेश सूर्यवंशी ने चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी कि राजभवन ने लोकसभा चुनाव और विधानसभा उपचुनाव के दौरान आचार संहिता का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन किया था। शिकायत के बावजूद चुनाव आयोग ने बिना किसी रोक-टोक के सब कुछ  गवर्नर हाउस की मन मर्ज़ी अनुसार होने दिया। मानो कानून नाम की चीज़ को उस समय सांप सूंघ गया हो।

शिकायत में आरोप लगाया गया था कि गवर्नर हाउस ने अपनी गरिमा का दुरुपयोग कर, एक अनधिकृत चयन समिति का गठन किया और इसकी बैठक भी आयोजित कराई, जिससे विश्वविद्यालय के कुलपति पद की चयन प्रक्रिया में अनियमितता हुई।
इतना ही नहीं, विधानसभा द्वारा यूनिवर्सिटी संशोधन बिल सर्वसम्मति से पारित करने के वावजूद राज्यपाल भवन द्वारा उस बिल को नाहक ही बार-बाए लंबित रखते हुए और सभी नियमों को ताक पर रख कर आदर्श चुनाव संहिता का उल्लंघन करते हुए अपने चहेते व्यक्ति को कुलपति बनाने हेतु सरकारी वेवसाइट और अखबारों में विज्ञापन भी विज्ञापित कर दिया, आवेदन भी मंगवा लिए और 21 दिन का पूरा समय देने के बाद इंटरव्यू की तारीख भी घोषित कर दी। चुनाव आयोग ने सब कुछ करने की छूट कैसे दे दी यह सवाल आज भी जनमानस को झकझोर रहा है और चिल्ला-चिल्ला कर पूछ रहा है कि जब चुनाव आयोग पर अरबों रुपए खर्चे जाते हैं तो इसकी पारदर्शिता पे सवाल क्यों उठते हैं। क्यों चुनाव अधिकारी जोकि लाखों रुपए तनख्वाह लेते हैं, अपने कर्तव्य का निर्वहन ईमानदारी और पारदर्शिता से क्यों नहीं करते।
हां, लोग पूछ रहे हैं कि इस एक महीने की कुलपति नियुक्ति की प्रक्रिया में सरकार ने दखल क्यों नहीं दिया, तो इसका उत्तर यह आया कि महामहिम ने उस समय का फायदा उठाना चाहा जब पूरी सरकार का ध्यान चुनावों पर केंद्रित था। सरकार के रामाम अधिकारी चुनावी प्रक्रिया में व्यस्त थे। इसीलिए यह षडयंत्र रचा गया। इतना ही नहीं, सरकार में विपक्षी विचारधारा से जुड़े अधिकारियों ने भी सरकार की जड़ों में तेल देने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दिया और सब कुछ उनकी रची योजना के हिसाब से चलता रहा। अगर न्यायिक प्रक्रिया द्वारा उस घटनाक्रम पर अंकुश न लगाया गया होता तो कोई भी कम योग्य व्यक्ति वाईस चांसलर बनाया जा सकता था।

सूर्यवंशी का कहना है कि यह कार्यवाही स्थापित शासन मानदंडों और निष्पक्षता के घोर उल्लंघन का जीवंत उदाहरण है।

चुनाव आयोग ने इस शिकायत को स्वीकार करते हुए जांच की प्रक्रिया तत्काल शुरू कर दी थी। सूर्यवंशी को आयोग की ओर से बारम्बार यह आश्वासन मिला था कि उनकी शिकायत को संबंधित विभाग को भेजा गया है, और मामले की निष्पक्षता से जांच की जाएगी लेकिन आज तक मामला दबा हुआ है। तमाम सवाल अपने जवाबों की राह कई महीनों से ताक रहे हैं।

चुनाव खत्म हो गए, सरकारें बन गईं, विश्वविद्यालय संशोधन बिल विधानसभा द्वारा दोबारा पास हो गया पर चुनाव आयोग आज भी न जाने किस मजबूरी से जागते हुए भी घोड़े बेच कर कुम्भकर्णी नींद में सोया प्रतीत होता है। इससे चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली की पारदर्शिता पर सवालिया निशान लगना लाज़मी है जिसका उत्तर आयोग को देना ही होगा क्योंकि यह देश के 145 करोड़ लोगों से जुड़ा मुद्दा है।

इस घटनाक्रम से हिमाचल प्रदेश में नियुक्ति प्रक्रिया और चुनावी अखंडता पर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है।

चुनाव आयोग की ओर से मामले को गंभीरता से न लेने और कई माह बीतने के बाद भी अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाने से नाराजगी बढ़ रही है।

*👉संविधान पर संकट: राज भवन पर सत्ता के दुरुपयोग का आरोप*

राजभवन द्वारा कथित रूप से शक्तियों का दुरुपयोग कर अपने समर्थकों को लाभ पहुंचाने के आरोप से हिमाचल प्रदेश में एक संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया है। आरोप है कि राजभवन ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार के अधिकारों में हस्तक्षेप किया है, जिससे संवैधानिक व्यवस्थाएं प्रभावित हो रही हैं।

राजेश सूर्यवंशी ने चुनाव आयोग से तुरंत कार्रवाई की मांग की है, लेकिन आयोग की निष्क्रियता से लोगों में असंतोष बढ़ रहा है। सूर्यवंशी का कहना है कि राजभवन की इस कार्रवाई ने सरकार की शक्तियों का उल्लंघन कर लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमजोर किया है।

लोगों को उम्मीद थी कि चुनाव आयोग इस मामले में निष्पक्ष जांच कर कार्रवाई करेगा, लेकिन आयोग की चुप्पी से सवाल उठ रहे हैं कि क्या लोकतंत्र की रक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता सचमुच कायम है?

Dheeraj Sood, Correspondent
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