लोकतंत्र पर यह कैसा कुठाराघात!, लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकारों का यह कैसा असहनीय अपमान.., हिमाचल प्रदेश कोई केंद्र शासित प्रदेश नहीं, अनुचित हस्तक्षेप करना लोगों की भावनाओं से खिलवाड़
लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई किसी भी सरकार का ऐसा अपमान *न काबिले बर्दाश्त*
INDIA REPORTER TODAY
SHIMLA :
RAJESH SURYAVANSHI
वर्तमान में हिमाचल प्रदेश की लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार के साथ जो सौतेला व्यवहार किया जा रहा है वह हमारे देश के लोकतांत्रिक ढांचे पर कुठाराघात के समान है। चुनी हुई सरकार के हर मामले में टांग अड़ाने, सरकार द्वारा पारित विधेयकों पर तंज कसने, उनका विरोध करने और निर्धारित समय सीमा के अंदर विधेयकों पर सहमति देकर सरकार को वापिस न लौटाने और सरकार को हमेशा कम आंकने का जो चलन आज हिमाचल प्रदेश में देखने को मिल रहा है वह इतिहास में पहले कभी नहीं देखा। यह अलोकतांत्रिक है, असहनीय है, प्रजातंत्र की रीढ़ की हड्डी पर गहरी चोट है। चुनी हुई सरकार के लोकहित में पारित किए गए विधेयकों में जानबूझ कर दखलंदाजी करना, उन्हें रोक कर रखना सीधे तौर पर प्रदेश की उन्नति में बाधा डाल कर सरकार और मुख्यमंत्री की छवि पर प्रहार करने की सोची-समझी साजिश प्रतीत होती है जिसकी जितनी निंदा की जाए कम है…ऐसा प्रदेश की जनता का कहना है।
प्रदेश में चल रहे राजनीतिक समीकरण किसी भी स्थिति में सुदृढ लोकतंत्र के पक्ष में नजर नहीं आ रहे।
सरकार के साथ चल रही तकरार यह साबित करती है कि हिमाचल प्रदेश की चुनी हुई सरकार का उचित सम्मान नहीं हो रहा है।
सरकार द्वारा जनहित में उठाए गए कदमों की अनदेखी की जा रही है ऐसा लगता है मानो हिमाचल प्रदेश में केंद्र शासित सरकार हो।जैसे हिमाचल प्रदेश एक केंद्र शासित प्रदेश हो जहां केंद्र का शासन चल रहा हो और लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार का कोई अस्तित्व न हो….. इस का अंदाजा निम्न प्रकरण से बखूबी लगाया जा सकता है….
प्रदेश में जितने भी संस्थान हैं चाहे वे शैक्षणिक संस्थान सरकारी, व्यवसायिक संस्थान एवं सरकारी विभाग हों, सभी विभागीय एक्ट एवं नियमों अनुसार ही चलाए जाते हैं और जो एक्ट एवं नियम हैं उन्हें राज्य की प्रजातंत्र द्वारा चुनी गई सरकार निर्धारित करती है जोकि मतदाताओं द्वारा चुनी गई सरकार का अधिकार क्षेत्र है। समय-समय पर गुणवत्ता एवं पारदर्शिता बढ़ाने के लिए इन एक्ट एवं नियमों में बदलाव लाए जाते हैं जो बदलाव चुनी हुई सरकार विधानसभा में पेश करती है और गंभीर विस्तृत चर्चा के बाद जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा बहुमत से सहमति प्रदान करके विधानसभा इन नियमों और एक्ट के बदलाव को पास करती है।
उल्लेखनीय है कि कोई भी संस्थान बिना एक्ट और नियमों के नहीं चलता और नियम और एक्ट में बदलाव लाना समय की पुकार होती है।
जिस तरह से विश्वविद्यालय के एक्ट में कुलपति का सेवाकाल पहले 5 वर्ष का था, फिर सरकार द्वारा एक्ट में बदलाव किया गया और 3 साल की अवधि निर्धारित की गई, यह बदलाव भी चुनी हुई सरकार ही लेकर आई थी और इसी बदलाव और एक्ट के साथ विश्वविद्यालय आज भी चल रहे हैं।
यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि विश्वविद्यालय के एक्ट में नियमित कुलपति को उसके सेवाकाल के बाद एक साल का सेवा प्रसार देने का मसौस भी विश्वविद्यालय के एक्ट में चुनी हुई सरकार द्वारा एवं विधानसभा द्वारा बदलाव लाकर लागू किया गया।
उपरोक्त तथ्यों को मद्देनजर रखते हुए निरर्थक ही यह भ्रम फैलाना कि *विश्वविद्यालय एक्ट के अनुसार ही चलने चाहिएं* पूरी तरह गलत है।
एक्ट में बदलाव होने के बाद भी विश्वविद्यालय एक्ट के अनुसार ही चलेंगे। विश्वविद्यालय में कुलपति एवं कुलाधिपति का प्रावधान भी एक्ट में ही किया गया है और यह प्रावधान जनता द्वारा चुनी गई सरकार एवं विधानसभा द्वारा एक्ट में ही पारित किया गया है।
सरकार का अधिकार है कि वह कभी भी एक्ट में समय अनुसार कभी भी बदलाव करके कुलपति और कुलाधिपति के अस्तित्व एवं अधिकारों में बदलाव ला सकती है। और सरकार की इस प्रक्रिया में अनुचित दखलंदाजी करना बिल्कुल गलत बात है।
ध्यान देने योग्य बात यह है की विश्वविद्यालय एक्ट में एक्टिंग कुलपति या कार्यकारी कुलपति का कोई प्रावधान नहीं है, केवल उसी स्थिति में कार्यवाहक कुलपति लग सकता है जब नियमित कुलपति बीमारी की वजह से या विदेशी दौरे में अवकाश पर हो लेकिन वर्तमान में अधिकांश विश्वविद्यालयों में कार्यवाहक कुलपति कार्य कर रहे हैं जोकि एक्ट में सीधे तौर पर कोई भी प्रावधान नहीं है ।
यह एक्ट का घोर उल्लंघन है ।
प्रदेश सरकार को प्रदेश की उन्नति एवं प्रदेशवासियों की उन्नति के लिए किसी भी नियम में बदलाव करने का पूर्ण अधिकार है और इस अधिकार से सरकार को वंचित न किया जाए क्योंकि प्रदेश में जनता द्वारा चुनी गई सरकार कार्य कर रही है, हमें प्रजातंत्र का सम्मान करना चाहिए ।
यह हमारा संविधान हमें आदेश देता है , प्रदेश में अभी इमरजेंसी या राष्ट्रपति शासन नहीं है इसलिए प्रदेश सरकार स्वतंत्र है कि प्रजातंत्र को मध्य नजर रखते हुए प्रदेशवासियों के उन्नति के लिए किस नियम में क्या बदलाव करना है, उसे कैसे लागू करना है इस निर्णय को लेने के लिए सक्षम है ।
पूर्व में भी प्रदेश सरकार प्रदेश की उन्नति के लिए ऐसे कार्य करती रही है। ऐसे निर्णयों में अनुचित हस्तक्षेप करना अमान्य एवम असंवैधानिक है। इस तरह की तानाशाही पर तुरंत अंकुश लगाया जाना चाहिए।