राजभवन की कार्यप्रणाली पर उठी उंगलियां, जब संशोधन बिल संबंधित फ़ाइल विधि विभाग में लंबित पड़ी थी तो राज्यपाल ने चुनाव संहिता के चलते क्यों विज्ञापित किया कुलपति कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर का पद और निर्धारित कर दी इंटरव्यू की तिथि जबकि लगभग 8 महीने तक अपने पास अटकाए रखी संशोधन विधेयक की फ़ाइल
8 महीने संशोधन विधेयक फाइल अपने पास पेंडिंग रखने के बाद चुनाव आचार संहिता के दौरान ही क्यों Advertise किया कुलपति का पद और रख दिए इंटरव्यू
कृषि विश्वविद्यालय कुलपति नियुक्ति विवाद: उच्च न्यायालय में मामला विचाराधीन
चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कुलपति नियुक्ति संशोधित विधयक को लेकर कई विवाद उत्पन्न हो रहे हैं तथा कई गंभीर संदेहास्पद सवालों को जन्म दे रहे हैं जोकि महामहिम के पद की गरिमा पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं।
दूसरी ओर महामहिम राज्यपाल का कहना है कि वह अपने पद की गरिमा के विरुद्ध कभी कोई भी काम नहीं करते। इस प्रकार उनकी कथनी और करनी में विशाल अंतर देखने को मिल रहा है।
कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति संबंधी और यूनिवर्सिटी संशोधन विधेयक सम्बन्धी मामला इस समय माननीय उच्च न्यायालय हिमाचल प्रदेश में विचाराधीन है, जहां विधानसभा से पारित विधेयक को अनदेखा करते हुए सभी नियम-कानून ताक पर रख कर , चुनाव आयोग की आंखों में धूल झोंक कर कुलपति के पद को खुलेआन विज्ञापित कर दिया गया था।
इस विवाद का मुख्य मुद्दा चयन समिति के गठन और कुलपति के लिए निर्धारित की गई शैक्षणिक एवं अन्य शर्तों पर प्रश्न चिन्ह है।
समाचार पत्रों के अनुसार, राज्यपाल ने कुछ शर्तों के साथ कुलपति नियुक्ति संशोधन विधेयक सरकार को कुछ टीका-टिप्पणियों सहित वापिस भेजा था।
लेकिन अब बड़े अचम्भे की बात यह हुई कि अभी संशोधित विधेयक राज्यपाल के समक्ष पुनः प्रस्तुत नहीं किया गया था कि राजभवन से कुलपति के पद को विज्ञापित कर दिया गया।
राज्य सरकार का कहना है कि कुलपति नियुक्ति संबंधित फाइल वर्तमान में विधि विभाग के पास विचाराधीन है, और आवश्यक कार्रवाई के बाद ही फाइल को राजभवन को लौटाया जाएगा।
अब बड़ा सवाल यह उठता है कि जब फाइल विधि विभाग में विचाराधीन है, तो पद को विज्ञापित करना कितना तर्कसंगत है तथा इसके पीछे राज भवन की क्या मंशा है?
प्रदेश के लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि जब हिमाचल प्रदेश की सुखो सरकार चावन में व्यस्त थी तो इस व्यवस्था का अनुचित लाभ उठाते हुए राजभवन ने जो संशोधन विधेयक 8 महीने तक अटका कर अपने पास रखा था उसे एकदम दरकिनार करते हुए, किन्हीं निजी कारणों के चलते आदर्श चुनाव संहिता के दौरान वाइस चांसलर की नियुक्ति संबंधी विज्ञापन कैसे छपवा दिया। बारम्बार शिकायत करने के बावजूद, शिकायत कर्ता की आँखों में धूल क्यों झोंकता रहा चुनाव आयोग? यह तमाम प्रश्न किसी बहुत बड़ी धाँधली की ओर इशारा कर रहे हैं।
विधानसभा से पारित बिल में किसी भी प्रकार का बदलाव करना या न करना विधानसभा के अधिकार क्षेत्र में आता है।
विधानसभा द्वारा पारित बिल पर राज्यपाल द्वारा दिए गए सुझावों को मानना या न मानना भी विधानसभा के कार्यक्षेत्र में आता है।
सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि जब विधि विभाग से राजभवन को संशोधित बिल नहीं पहुंचा था, तो कुलपति का पद कैसे विज्ञापित कर दिया गया। यह तर्क दिया जा सकता है कि संशोधित बिल के पारित होने तक कुलपति का पद विज्ञापित नहीं किया जाना चाहिए था।
इन सभी मुद्दों पर उच्च न्यायालय को अपना अंतिम निर्णय लेना है।
मुख्य रूप से यह देखा जाएगा कि क्या विधानसभा द्वारा प्रजातांत्रिक तरीके से संशोधित बिल को दरकिनार करते हुए कुलपति की नियुक्ति की जा सकती है या नहीं। न्यायालय का निर्णय इस विवाद को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।