राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच तनातनी की तलवार, राजभवन की लाल फीताशाही सवालों के घेरे में, हिमाचल प्रदेश सरकार के खर्चे से चल रहा राजभवन हिमाचल के विकास में ही अटका रहा रोड़े, महामहिम गवर्नर की राजनीतिक प्रतिद्वंदता प्रदेश के विकास पर पड़ रही भारी
राज्यपाल को करना चाहिए माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का सम्मान, कहते हैं बुद्धिजीवी
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राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच तनाव
हिमाचल प्रदेश में राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। यह तनाव तब से शुरू हुआ है, जब कांग्रेस की सरकार बनी है। विपक्षी भाजपा के गवर्नर प्रदेश के विकास में रोड़ा अटकाने का काम कर रहे हैं।
बुद्धिजीवी वर्ग का मानना है कि यह भाजपा की सोची-समझी चाल है। भाजपा को अपनी करारी हार हजम नहीं हो पा रही है। इसलिए, वह किसी न किसी बहाने से कांग्रेस सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है।
बुद्धिजीवी वर्ग ने दुख जताते हुए कहा है कि यह कटु सत्य है कि हिमाचल प्रदेश का राजभवन प्रदेश सरकार के ही धन से चलता है। पूरा रखरखाव प्रदेश सरकार करती है। ऊपर से जब यही राजभवन प्रदेश के विकास के रास्ते में कांटे बिछाता है तो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण प्रतीत होता है।
इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश की लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई लोकप्रिय सुक्खू सरकार ने लोगों की भलाई के लिए जो बिल सर्वसम्मति से पास किये थे, उन्हें महामहिम राज्यपाल अपनी सहमति देकर प्रदेश सरकार को जानबूझ कर निश्चित समय सीमा में वापिस नहीं लौटा रहे ताकि राजनीतिक शत्रुता निकली जा सके।
हालांकि मुख्यमंत्री सुखविन्दर सूक्खू बहुत सब्र और राजनीतिक परिपक्वता का परिचय देते हुए बहुत समझदारी से स्थिति को संभालने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन समय बीतता जा रहा है और बिल पास न होने से प्रदेश के विकास में बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं।
लोगों का मानना है कि गवर्नर महोदय को सहमति देकर तत्काल बिल वापस लौटा देना चाहिए। गवर्नर महोदय को प्रदेश के विकास हेतु आगे आना चाहिए न कि विकास को अवरुद्ध करने के प्रयास करने चाहिए। यह प्रदेश के साथ सरासर अन्याय है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न प्रदेशों से जुड़े मामलों में राज्यपालों को निर्देश दिए हैं कि प्रदेश की चुनी हुई सरकारों द्वारा बहुमत से पास किए गए जनहित के बिलों को बिना समय गंवाए तत्काल अपनी सहमति देकर सरकारों को वापिस लौटा कर अपने कर्तव्य का निर्वहन करना चाहिए।