फिर बुरे फंसे गवर्नर शिव प्रताप शुक्ल, गोपनीय सूचना लीक करने के गंभीर आरोप ने उड़ाई नींद, हर तरफ जग हंसाई, आलोचना, धांधली और फ़ेवरिटीज़म का आलम
कलम के सिपाही अगर सो जाएं तो वतन के कथित मसीहा वतन बेच देंगे… वतन बेच देंगे
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न काहू से दोस्ती
न काहू से वैर
हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल महामहिम शिव प्रताप शुक्ल ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सुक्खु सरकार को दरकिनार कर हिमाचल प्रदेश में अपनी समानान्तर सरकार चलाने की मंशा से जल्दबाजी में कुछ ऐसे फैसले ले लिए जिससे उनकी रातों की नींद और दिन का चैन उड़ गया है। न जाने कुदरत की क्या मर्ज़ी है कि गवर्नर अपनी पार्टी के दवाब में जो भी कदम बेताबी में उठा रहे हैं वे सब उल्टे पड़ रहे हैं, नुकसान दायक साबित हो रहे हैं।
अपने चहेतों को विश्वविद्यालयों के कुलपति नियुक्त करने की जल्दबाज़ी में आनन-फानन में जल्दबाजी का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने एकदम गलत कमेटी का चयन करके अपनी जान आफ़त में डाल दी है।
इससे भी बड़ा ब्लंडर उनके हाथ से तब हो गया जब उन्होंने इस कमेटी का उल्लेख सरकारी गज़ट में भी कर दिया और टॉप सीक्रेट, अत्यन्त गोपनीय सूचना को लीक करके उन्होंने खुलेआम अपनी मर्यादाओं और कानून का कथित उल्लंघन किया है।
कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कुलपति चयन के लिए राज्यपाल महोदय द्वारा गठित की गई गलत कमेटी की सर्वस्व आलोचना हो रही है और राज्यपाल की मंशा जगज़ाहिर हो गई है।
शिक्षा से संबंधित संवैधानिक पदों के साथ ऐसा खिलवाड़ और ऐसी तानाशाही हिमाचल प्रदेश के इतिहास में पहले कभी नहीं हुई।
एक लोकतांत्रिक तरीके से बहुमत से चुनी हुई सरकार की आंखों में धूल झोंक कर, उसे दरकिनार कर, विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक, जिसेकि यशस्वी मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खु की ऐतिहासिक उपलब्धि माना जा रहा है, को धत्ता बताकर गैरज़िम्मेदाराना तरीके से भेदभावपूर्ण तरीके से कुलपतियों की नियुक्ति प्रक्रिया चुनावों के बीच करने, आचार संहिता का उल्लंघन कर इलेक्शन कमीशन की आंख में धूल झोंकने की पोल पूरे प्रदेश के सामने खुल गई है।
आम जनता का मानना है कि यूपी/बिहार की तर्ज़ पर वह हिमाचल जैसे शांत, साफ़-सुथरे और सजग प्रदेश में ऐसी कथित धांधली हरगिज़ नहीं होने देंगे और आवश्यक्ता पड़ी तो विभिन्न माध्यमों से जनता अपना विरोध दर्ज करवाएगी।
गोलमाल कमेटी की संरचना महामहिम राज्यपाल ने कुछ इस प्रकार की है :-
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति अध्यक्ष, डीडी जी आईसीएआर सदस्य एवं राज्यपाल के सचिव नॉमिनी।
प्राप्त जानकारी के अनुसार अगर विश्वविद्यालय के संशोधित एक्ट को देखा जाए तो उसमें कुलपति चयन कमेटी का गठन इस प्रकार से है :-
डी जी आईसीएआर , अध्यक्ष, यूजीसी या उनका नॉमिनी और राज्यपाल का नॉमिनी।
वर्तमान में जो कमेटी गठित की गई है उसमें डीडीजी आईसीएआर को कमेटी का मेंबर बनाया गया है जबकि एक्ट में डी जी आईसीएआर का प्रावधान है और एक सदस्य यूजीसी के अध्यक्ष होते हैं जबकि वर्तमान कमेटी में यूजीसी से कोई भी मेंबर नहीं लिया गया है क्योंकि कुरुक्षेत्र के पूर्व वाइस चांसलर जो अध्यक्ष है वो न तो यूजीसी के सदस्य हैं और न ही यूजीसी के मेंबर है, ऐसे में राजभवन को आनन-फानन में ऐसी कमेटी का गठन क्यों करना पड़ा जिसका प्रावधान कृषि विश्वविद्यालय के एक्ट में है ही नहीं।
इस कमेटी को बनाकर जहां राज भवन ने कृषि विश्व विद्यालय के एक्ट की धज्जिया उड़ाई गई यह वहीँ इतिहास में पहले मर्तबा हुआ है राज्यपाल द्वारा नियुक्त कमेटी को राज्य गजट में प्रकाशित किया गया जबकि कमेटी के सदस्यों के नाम को गोपनीय रखा जाना चाहिए ताकि पारदर्शिता बरकरार रह सके।
गोपनीयता को जगज़ाहिर कर गवर्नर आख़िर क्या सिद्ध करना चाहते है? यह एक बड़ी भूल की है राजभवन ने।
गोपनीयता का ध्यान इसलिए रखा जाना चाहिए था ताकि संभावित उम्मीदवार किसी भी तरह से चयन कमेटी से संपर्क न कर सके।
इस तरह की गैर संवैधानिक गतिविधियां जहां राजभवन की गरिमा को धूमिल कर रही है वहीं राज्यपाल की मंशा पर भी उंगलियां उठना स्वाभाविक है।
ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि राज्य की प्रजातांत्रिक सरकार ने कुलपति नियुक्ति के नियमों को विधानसभा में संशोधित करके राज्यपाल को भेजा है जिसका राजभवन ने जानबूझ कर एक साल तक कोई संज्ञान नहीं लिया और सरकार के बिल और कृषि विश्वविद्यालय के एक्ट को दरकिनार करते हुए राज भवन ने स्वयं एक कमेटी का गठन कर दिया है जिसका नियमों में कोई भी प्रावधान नहीं है।
महामहिम राज्यपाल जी, प्रदेश की जनता चीख-चीख कर पूछ रही है कि यह तानाशाही नहीं तो और क्या है? क्यों सरेआम राज्यपाल के पद की गरिमा को बारम्बार नीलाम किया जा रहा है? एक राज्यपाल के पद की गरिमा बहुत ऊंची होती है और इसकी शोभा को बनाए रखना चाहिए ताकि लोकतंत्र का झंडा बुलंद रह सके।