जी एस बाली थे बलशाली-कभी हार नहीं मानी
TARUN SRIDHAR, IAS
‘दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त, दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से” ऐसा हफीज होशियारपुरी ने कहा है और एक ऐसा ही दोस्त था गुरमुख सिंह बाली।
इस से बेहतर दोस्त की उम्मीद या परिकल्पना असंभव है। बाली का नाम उनके व्यक्तित्व एवं गुणों के कतई अनुकूल था।
त्रेता युग में किष्किंधा साम्राज्य के सम्राट बाली की तरह ही हिमाचल के लोकप्रिय जननेता भी अपराजेय थे, क्योंकि वह भी जीएस बाली धार्मिक महाग्रंथ रामायण के पात्र बाली की ही भांति अदम्य साहस रखते थे।
विषम परिस्थितियों में भी कभी न विचलित होने वाला यह योद्धा अंत में पराजित हुआ तो सिर्फ मृत्यु से। शायद मृत्यु को यह ईष्यों हो गई कि यह यारों का बार उससे यारी क्यों नहीं कर रहा।
हम से छीन लिया परम मित्र और प्रदेश से कदावर और प्रभावशाली मार्गदर्शक, जिसकी जनहित और विकास के प्रति सांच और सुझाव हमेशा अत्याधुनिक भविष्यवादी और व्यावहारिक रहे।
मेरी और जीएस बाली की तीन दशक पहले से अधिक की घनिष्ठ मित्रता रही। कोई कारण नहीं था इस मैत्री का मैं एक प्रशासनिक अधिकारी और बाली एक राजनेता।
ऐसे में औपचारिक और कामकाजी संबंध से अधिक कोई संभावना नहीं थी। पर रिश्ते मात्र तर्क या स्थापित परंपरा से ही निर्धारित नहीं होते।
राजनीतिक और शासकीय गलियारों में हमारी मित्रता सर्वविदित थी जिस पर अक्सर इस पर आलोचनात्मक चर्चा होती, ताने भी मिलते 2006 में तो तत्कालीन मुख्य सचिव ने मुझे यह परामर्श लगभग आदेशात्मक स्वर में ही दिया था कि मैं बाली से दूरी बना कर रखें: मेरे करियर के लिए यह संबंध ठीक नहीं… क्योंकि गुप्तचर विभाग के मुखिया ने मुख्यमंत्री को यह फीडबैक दिया कि मुख्यमंत्री के विरुद्ध उनके कैबिनेट मंत्री बाली षड्यंत्र कर रहे हैं और बाली का मुख्य सलाहकार मैं हूँ। मुझे आज भी इस बात पर गर्व है कि मैंने आदेश को नहीं माना और विरोधी भी मानते थे कि कोई भी उलझन या समस्या का समाधान जीएस बाली के पास जरूर मिलेगा
मेरे माता-पिता का कुशलक्षेम मुझसे अधिक रखते थे। मेरे बेटे की शादी में पहले अतिथि का स्वागत किया बाली ने, और अंतिम अतिथि को विदा किया बाली ने।
रिसेप्शन के दिन सुबह से शाम तक खुद खड़े होकर प्रबंध देखे; तब बाली वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री थे और मै मात्र सरकारी अधिकारी अपनी बेटी के विवाह के निमंत्रण पत्र पर बतौर आरएसवीपी वे नाम अंकित किए।
उनके बचपन के साथी शशि और डा. विनोद पाल, जो अब नीति आयोग के सदस्य है, तथा मनीषा और तरुण श्रीधर किसी परिवारिक सदस्य या रिश्तेदार का नाम नहीं इसी विवाह समारोह में जब मैं पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को नमस्कार कह रहा था तो वह सोफे से उठ खड़े हुए। मैंने शर्मिंदा होते कहा कि सर कृपया बैठे रहिए तो वीरभद्र सिंह ने अपने चिर परिचित अंदज में चुटकी ली भई आरएसवीपी का सम्मान करना चाहिए।
अजब विस्तार और फैलाव या उनके मित्रों का । सभी वर्गों से रिश्ते बनाना, संभालना, निभाना और सहेजना बाली की विशिष्ट पहचान थी। मित्रों के लिए कुछ भी करने को हमेशा तैयार शत्रु भी थे, पर स्थायी शत्रुता किसी के साथ नहीं कई बार मैंने उन्हें जी जान लगा कर अपने कट्टर विरोधियों की सहायता करते हुए देखा पर अहसान कभी नहीं जताया। मुझे आश्चर्य होता था इनके आलोचकों पर जो बिना हिचक इनसे हर प्रकार की सहायता लेते, लोगों की निगाहों से परे, पर फिर भी विरोध से नहीं हटते। एक बार पूर्व मुख्यमंत्री ने मुझ से प्यार भरी नाराजगी जाहिर की कि बाली उनका लगातार विरोध कर रहा है और मैं सरकार का वरिष्ठ अधिकारी होते हुए भी उनसे नजदीकियां बनाए हुए हूँ। मैंने प्रतिक्रिया में अमर प्रेम फिल्म के गाने के बोल सुनाए, हमको जो ताने देते हैं हम खोए हैं इन रंगरलियों में हमने उनको भी छिप छिप कर आते देखा इन गलियों में
अनेक पाखंडी देखे। जनता में बाली साहब का विरोध पर अपने मतलब के लिए हमेशा उनके आगे पीछे छिप छिप कर कट्टर विरोधी भी मानते थे कि कोई भी उलझन या समस्या हो राजनीतिक, सामाजिक, निजी या आर्थिक, बाली के पास जाओगे तो समाधान मिलेगा, कम से कम ईमानदार प्रयास जरूर होगा अंत में बाली ने दुश्मनी ली तो सिर्फ अपनी सहत से 27 जुलाई का दिन नगरोटा बगवां चुनाव क्षेत्र के लोगों के लिए विशेष रहा है। बाली की जन्मतिथि का आयोजन एक उदाहरण भी है कि जन्मतिथि का समारोह मात्र खुद के लिए जश्न न होकर कैसे सर्वत्र खुशी बांट सकता है। हजारों की संख्या में क्षेत्र की जनता समारोह में भाग लेती, और हर व्यक्ति के लिए होता ठोस और सार्थक उपहार, स्वास्थ्य जांच के साथ मनोरंजन भी स्वास्थ्य शिविर में देश के सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा संस्थानों के नामी डाक्टर आते। बुवाओं के लिए करियर काउंसलिंग, प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को पारितोषिक, हर वर्ग को अधिमान और सम्मान ऊर्जा का भंडार था जीएस बाली, अतः कई को उनके साथ गति बनाए रखना मुश्किल हो जाता, क्योंकि बाली हमेशा दो कदम आगे ही होता स्वाभाविक है अक्सर यह ऊर्जा बेसब बनाती और गुस्से के रूप में उभर आती। गुस्सा भयंकर लेकिन अजीब था पल भर का ही होता, और बाद में गुस्से के शिकार व्यक्ति को विशेष विनम्र व्यवहार से मनाया जाता।
बाली जैसे व्यक्तित्व को कैसे वर्णित किया जाए। एक ऐसी बहुमुखी प्रतिभा जिसके सभी ढाबे वालों से पाँच सितारा होटल के मालिक वेस्त थे राजनीतिक दलों में कार्यकर्ता से नेता प्रशंसक थे, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से वरिष्ठतम अधिकारी तक भावनाओं से जुड़े थे। एक ऐसा राजनेता जिस की सोच और दृष्टि वैश्विक के साथ स्थानीय और व्यावहारिक भी थी। दिलेर विशाल हृदय, जुझारू कुछ विशेषण है। जो बाली को परिभाषित करते हैं। बाला के शरीर को तो मृत्यु छीन सकती है; ऊर्जा को पराजित नहीं कर सकती, इसलिए कहना कठिन है कि बाली नहीं रहे।