*🌻दिल को छू लेने वाली एक लघुकथा🌻*
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*हनुमान जी के मन्दिर में सवा मन का लड्डू चढ़ा कर लौटते हुए एक भक्त से उसके बेटे ने गुब्बारे दिलवाने की जिद की ।
बच्चा पिट गया । वजह शायद बच्चे की जिद रही होगी या सवा मन लड्डू के पुण्य का दम्भ इतना बढ़ गया होगा कि भक्त सिर्फ उसी में बौराया था और उसका बच्चे की माँग से तारतम्य टूट गया हो ।
गुब्बारे.वाले के पास बहुत भीड थी, और भीड़ में से भी उसकी नजर पिटते बच्चे पर जा पड़ी । बच्चा रो रहा था और भक्त पिता बच्चे को डांटे जा रहा था । गुब्बारे वाला उस बच्चे की ओर आया और एक गुब्बारा बच्चे के हाथ में पकड़ा दिया । भक्त गुस्से में तो था ही वह गुब्बारे वाले से उलझ पड़ा । “तुम मौके की ताड मे रहा करो बस, कोई बच्चा तुम्हे जिद करता दिख जाए बस । झट से पीछे लग जाते हो । नही लेना गुब्बारा ।” इस तरह भक्त ने गुब्बारे वाले को बुरी तरह झिड़क दिया ।
गुब्बारे वाला बच्चे के हाथ में गुब्बारा पकड़ाते हुए बोला- मैं यहाँ गुब्बारे बेचने नही आता, बाँटने आता हूँ, कारण किसी दिन मुझे किसी ने बोध करवाया कि ईश्वर तो बच्चों मे है । इसलिये ही मैं हर मंगल वार सौ रूपये के गुब्बारे लाता हूँ। इनमे खुद ही हवा भरता हूँ । एक गुब्बारा मंदिरमे बाँध आता हूँ और बाकी सब यहाँ बच्चों मे बाँट देता हूँ । मेरा तो यही प्रसाद हैं। हनुमान जी स्वीकार करते होंगे ना। सवा मन लड्डू का बड़ा पुण्य भक्त को एकाएक छोटा लगने लगा ।*
*खुशियां बांटने से बढ़ती है ।*