हाई कोर्ट ने रचा इतिहास : हिमाचल हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: कृषि विश्वविद्यालय में कुलपति नियुक्ति पर राज्यपाल की मनमानी पर लगा अंकुश

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हिमाचल हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: कृषि विश्वविद्यालय में कुलपति नियुक्ति पर राज्यपाल की मनमानी पर लगा अंकुश

RAJESH SURYAVANSHI, Editor-in-Chief, HR Media Group, Founder Chairman Mission Against Corruption Society, H.P. Mob 9418130904

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति प्रक्रिया को पूरी तरह से निरस्त कर दिया है। इस फैसले ने राज्यपाल कार्यालय को करारा झटका देते हुए चयन समिति द्वारा किए गए सभी कार्यों को अवैध ठहराया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि गवर्नर हाउस द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया संविधान और विश्वविद्यालय अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत थी।

असंवैधानिक चयन प्रक्रिया पर अदालत की सख्ती

न्यायालय ने पाया कि कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति के लिए गठित चयन समिति का गठन विधानसभा द्वारा पारित अधिनियम के अनुरूप नहीं था।

महत्वपूर्ण रूप से, विज्ञापन में ऐसी शैक्षणिक योग्यताएं जोड़ी गई थीं, जो एक विशेष व्यक्ति को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से लगती थीं। उदाहरण के तौर पर, विज्ञापन में “बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट का सदस्य होना” और “किसी विशेष संस्था का सदस्य होना” जैसी शर्तें शामिल की गईं, जो किसी सामान्य उम्मीदवार के लिए पूरा करना असंभव था। इस मनमाने रवैये पर अदालत ने कड़ी आपत्ति जताई और पूरी चयन प्रक्रिया को खारिज कर दिया।

गवर्नर की मनमानी पर न्यायालय की रोक

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का यह निर्णय बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि पहली बार राज्यपाल की मनमानी पर सीधी रोक लगाई गई है।

यह मामला तब उजागर हुआ जब एक प्रार्थी ने समय रहते न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और नियुक्ति प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाए। अदालत ने इस प्रकरण की गंभीरता को समझते हुए तत्काल हस्तक्षेप किया और राज्यपाल की प्रक्रिया को अवैध घोषित किया।

विधानसभा के अधिकारों की बहाली की मांग

इस फैसले के बाद अब राज्य सरकार के समक्ष चुनौती है कि वह विधानसभा द्वारा पारित स्वतंत्र चयन समिति के प्रावधानों को लागू करे।

हिमाचल विधानसभा, जिसे प्रजातंत्र का मंदिर कहा जाता है, ने एक विधेयक पारित किया है जिसमें कुलपति की निष्पक्ष और पारदर्शी नियुक्ति के लिए स्वतंत्र समिति के गठन का प्रावधान है।

अदालत का फैसला यह स्पष्ट संकेत देता है कि भविष्य में राज्यपाल की मनमानी से बचने के लिए सरकार को इस विधेयक को लागू कराने हेतु आवश्यक कदम उठाने चाहिए। यदि राज्यपाल इस विधेयक को मंजूरी नहीं देते, तो सरकार के पास न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं रहेगा।

पारदर्शिता की दिशा में बड़ा कदम

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का यह निर्णय न केवल एक ऐतिहासिक मिसाल है, बल्कि विश्वविद्यालयों में नियुक्ति प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में बड़ा कदम भी है। यह फैसला इस बात का प्रतीक है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की उपेक्षा कर किसी भी पद पर मनचाहा व्यक्ति नहीं बिठाया जा सकता।

अब राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इस निर्णय के आलोक में निष्पक्ष चयन प्रक्रिया को अपनाए और सुनिश्चित करे कि भविष्य में कोई भी नियुक्ति संवैधानिक मर्यादाओं और पारदर्शिता के साथ की जाए।

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