जोगिन्दरनगर उपमंडल का एकमात्र सिविल अस्पताल अभी भी कई सुविधाओं से वंचित है। यहां डॉक्टर तो हैं पर डॉक्टर को अस्पताल को सुचारू रूप से चलाने के लिए बहुत सी खामियां हैं। ये खामियां किस वजह से हैं और किसको कसूरबाज माना जाए, हॉस्पिटल मैनेजमेंट को, लोकल प्रशासन को या फिर जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि को।
आखिर क्यों इसे नज़र अंदाज़ किया जा रहा है। लोगों की आशा की किरण होता है अस्पताल। मरीज को नई जिंदगी देता है अस्पताल।
इसीलिए डॉक्टर को भगवान का दूसरा दरजा मिला है। पिचले कल रात को एक हाई ब्लड प्रेशर पेशेंट जिसकी तबियत बहुत ज्यादा खराब थी, सिविल हॉस्पिटल जोगिंद्रनगर ले कर गए तो अचानक लाइट चली गई।
हॉस्पिटल में दूसरा ऑप्शन जेनरेटर होता है, सरकार ने प्रदेश के हर हॉस्पिटल को ये सुविधा मुहैया करवाई। उसका रख-रखाब अस्पताल प्रबंधन करता है लेकिन जब उनसे पुछा गया की जेनरेटर चलाओ तो जवाब मिला की खराब है। मरीज का इलाज मोबाइल की रोशनी से शुरू किया गया जोकि एक शर्मनाक वाक्या है।
हमारा सबसे निवेदन है की अस्पताल में जो भी खामियां हैं उन खामियों को शीघ्रता-शीघ्र पूरा किया जाए ताकि जनता को अच्छा स्वास्थ्य लाभ मिले।