जुलाई 2024 महीने के दूसरे पखवाड़े में किये जाने वाले कृषि एवं पशुपालन कार्य
प्रसार शिक्षा निदेशालय
चौधरी सरवण कुमार हि.प्र. कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर
जुलाई 2024 महीने के दूसरे पखवाड़े में किये जाने वाले कृषि एवं पशुपालन कार्य
प्रसार शिक्षा निदेशालय, चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर ने जुलाई 2024 माह के दूसरे पखवाड़े में किये जाने वाले मौसम पूर्वानुमान सम्बन्ध्ति कृषि एवं पशुपालन कार्यों के बारे में निम्नलिखित सलाह दी है, जो किसानों को लाभप्रद साबित होगी।
धान
जिन किसानों ने धान की रोपाई जुलाई के प्रथम सप्ताह में की है उन किसानों को यह सलाह है कि रोपाई के बाद जो पौधे खराब हो गये हैं वहां पर खराब पौधे की जगह नये पौधे की रोपाई कर दें। रोपाई वाले धान में खरपतवार नियंत्रण के लिए रोपाई के 4 दिन बाद सेफनर के साथ प्रीटिलाक्लोर 800 ग्राम प्रति हेक्टेयर या रोपाई के 7 दिन बाद सेफनर के बिना प्रीटिलाक्लोर का प्रयोग करें या धान की रोपाई के 4-5 दिनों के अन्दर व्यूटाक्लोर-मचैटी दानेदार 5 प्रतिशत 30 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर या 3 लीटर मचैटी 50 ईसी को 150 किलोग्राम रेत में मिलाकर खड़े पानी में 4 से 5 दिन बाद प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें अथवा धान की रोपाई के 25 से 30 दिन बाद खरपतवारों के नियंत्रण के लिए बाइस्पाईरीबैक 10 ई.सी. 200 ग्राम प्रति हैक्टेयर का छिड़काव करें।
मक्की
मक्की की 30 से 35 दिन की फसल में 65 से 85 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर निराई गुड़ाई के साथ ड़ाल दें। फसल में सभी प्रकार के खरपतवारों के नियंत्रण के लिए बुवाई के 20 दिन बाद टेम्बोट्रियोन 120 ग्राम प्रति हेक्टेयर सर्फेक्टेंट के साथ छिड़काव करें ।
दलहनी फसलें
निचले मध्यवर्ती क्षेत्रों में जिन किसानों ने माश (हिम माश-1, यू.जी.-218, पालमपुर-93), मूँग (सुकेती-1, एस.एम.एल.-668, शाइनिंग मूंग नं.-1 व पूसा बैसाखी), कुल्थी (बी.एल.जी.-1, बैजू, एच.पी.के.-4) एवं सोयाबीन (शिवालिक, हरा सोया, पालम सोया, हिम सोया या हिम पालम हरा सोया) की बीजाई की है उन किसानों को सलाह है कि खेत से जल निकास की उचित व्यवस्था रखें तथा खरपतबार नियंत्रण करें। सोयाबीन की फसल में बीजाई के 25 से 30 दिन बाद जब खरपतवारों की 2-3 पत्तियां निकल आये तब क्यूजेलोफाप ईथाइल 60 ग्राम + क्लोरी मुयरोन ईथाइल 4 ग्राम प्रति हैक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें।
तिलहन फसल
तिलहनी फसल सूरजमुखी (ईसी-68415) की बिजाई प्रति हेक्टेयर 10-12 किलोग्राम बीज की दर से तथा तिल (तिल न.-1/ब्रजेश्वरी) की बिजाई 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर पंक्तियों में करें। बिजाई से पहले बीज को फफूंदनाशक कैपटान 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
सब्जी उत्पादन
प्रदेश के मध्यवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में बरसात में अगेति फूलगोभी की किस्म पालम उपहार, इंप्रूव्ड जैपनीज, पूसा दीपाली, एवं संकर किस्म मेघा एवं बरखा के तैयार पौध की रोपाई 45 सेंटीमीटर पौधे एवं पंक्ति की दूरी रखते हुए रोपाई शाम के समय मेढ़ों पर करें।
टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च, हरी मिर्च तथा कद्दू वर्गीय सब्जियों में खरपतबार नियंत्रण के लिए निराई – गुड़ाई करते समय पौधे की जड़ के पास 50 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से डाल दें।
ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में मटर की पालम समूल, पंजाब 89, लिंकन, आजाद मटर 1, पालम प्रिया की बिजाई करें। खेत तैयारी के समय 200 क्विंटल गोबर की खाद के अतिरिक्त 180 किलोग्राम इफको मिश्रित उर्वरक 12:32:16 तथा 50 किलोग्राम म्युरेट ऑफ पोटाश प्रति हैक्टेयर खेतों में डालें। बीजाई के तुरन्त बाद खरपतवार नाशक रसायनों जैसे लासो – एलाक्लोर या स्टाम्प – पैण्डिमिथेलिन 4.5 लीटर प्रति 750 लीटर पानी प्रति हैक्टेयर का घोल बनाकर छिड़काव करें।
फसल संरक्षण
बैंगन की फसल में तना व फल छेदक कीट तथा टमाटर व भिण्डी में फल छेदक सुण्डी के नियंत्रण के लिए 2 ग्राम कार्बरिल 50 डब्ल्यू.पी. या 0.5 मि.ली. फैनबलरेट (सुमिसिडीन/ एग्रोफैन) 20 ई.सी. प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें।
भिण्डी में धरीदार भृंग या लाल, पीली व काली धरियों वाला कीट जो फूल खाता है तथा बैंगन व करेले में हाड्डा बीटल के नियंत्रण के लिये कार्बेरिल या सेविन 50 डब्ल्यु.पी. 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें।
टमाटर तथा कद्दूवर्गीय सब्जियों में फल मक्खी के नियंत्रण के लिये जमीन पर गिरे हुए फलों को इक्ट्ठा करके नष्ट कर दें, तथा आसपास की झाड़ियों व फल मक्खी के बैठने के स्थानों पर मैलाथियॉन 10 मि.ली तथा गुड़ 50 ग्रा. के मिश्रण को 5 लीटर पानी में घोल कर फूल व फल बनने की अवस्था पर छिड़काव करें। खेत में एक फेरोमोन ट्रैप प्रति कनाल लगायें।
बैंगन व टमाटर में फल सड़न की रोकथाम के लिये रिडोमिल एम जैड या मेटको 25 ग्रा. प्रति 10 लीटर पानी का छिड़काव करें।
पशुधन
इस माह वर्षा ऋतु के कारण अधिक नमी और उच्च तापमान होने के कारण पशुओं को, कीटों और परजीवियों जैसे चिचड़, पिस्सू, मक्खी, मच्छरों आदि से बचाकर रखना चाहिए। यह कीट एवं परजीबी पशुओं में कई प्रकार की बिमारी थिलेरियोसिस, एनाप्लाज्मोसिस, बबेसिओसिस पैदा कर सकते हैं। कीटों तथा परजीवियों की रोकथाम के लिए पशुशाला को साफ एवं सूखा रखें, गोबर उचित स्थान पर फेंके, गोबर की जांच नियमित करायें तथा पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार, कीड़े मारने की दवाई दें। भेड़ बकरियों को सुरक्षित चरागाहों में भेजने से पहले उनको कीड़े मारने की दवाइयां दें। पशुशाला में कीटों के प्रबंधन के लिए, कीटनाशक का छिड़काव, गोशाला मे जालियों का प्रयोग तथा दिवारों पर चूने से पुताई करनी चाहिए। कीट नाशकों का प्रयोग, ना केवल पशु के शरीर पर, परंतु गोशाला के अंदर और बाहर वाले स्थानों में भी करना अति आवश्यक है और इस दौरान पशु को कुछ घंटों के लिए पशुशाला से बाहर रखें। बरसात के महीनों में पशुओं को लंबे समय तक कीचड़ में ना खड़ा रहने दे।
बरसात में पशुओं को अधिक हरा चारा खाने से गैस (अफारा) की समस्या हो सकती है। इससे बचाव के लिए पशुओं को हरा एवं सूखा मिश्रित चारा दें। इस मौसम में संक्रामक रोग जैसे खुरपका और मुंहपका रोग, पीपीआर, भेड़ और बकरी पॉक्स से पशु प्रभावित हो सकते हैं। संक्रमित रोगों से पशुओं को बचाने के लिए चिकित्सक की सलाह पर नियमित टीकाकरण करायें, जानवरों की आवाजाही को नियंत्रित करें, रोगी पशुओं को सेहतमंद पशुओं से अलग रखें, प्रभावित जानवरों का तुरंत उपचार और मृत पशु के शव का उचित निपटान आदि पर ध्यान दें।
बरसात की मुर्गीपालकों को उनके बाड़ों की मुरमत कर लेनी चाहिए। इस मौसम में मुर्गी आहार में फंफूद लगना एक आम बात है इस के लिए सूखा और ताजा आहार पहले से इकठा कर अपने भंडार में रख ले।
मछली पालकों को सलाह दी जाती है कि, वर्षा के मौसम में तालाब का प्रबंधन पर विशेष ध्यान रखें इस समय तालाब का पानी स्वाभाविक रूप से बढ़ जाता है, इसलिए पानी की उचित निकासी तथा तटबंध की मरम्मत करना महत्वपूर्ण है। मानसून आने से पहले तालाब से गाद निकालना जरूरी है। जिससे मछलियों को स्वस्थ बातावरण मिल सके।
किसान भाइयों एवं पशुपालकों से अनुरोध है कि अपने क्षेत्र की भौगोलिक तथा पर्यावरण परिस्थितियों के अनुसार अधिक एवं अति विशिष्ट जानकारी प्राप्त करने के लिए नजदीक के कृषि विज्ञान केंद्र से या पास के कृषि, उद्यान एवं पशुपालन अधिकारी से संपर्क बनाए रखें। अधिक जानकारी के लिए कृषि तकनीकी सूचना केंद्र एटिक 01894-230395 से भी संपर्क कर सकते हैं ।