क्या लौटना आसान है..?🔹
🔹क्या लौटना आसान है..?🔹
यदि जीवन के 55-60 वर्ष पार कर लिये हैं तो अब लौटने की तैयारी प्रारंभ करें, इससे पहले कि देर हो जाये, इससे पहले कि सब किया धरा निरर्थक हो जाये।
लौटना क्यों है❓
लौटना कहाँ है❓
लौटना कैसे है❓
इसे जानने, समझने एवं लौटने का निर्णय लेने के लिये टॉलस्टाय की मशहूर कहानी आज आपके साथ साझा करतें हैं-:
लौटना कभी आसान नहीं होता-
एक आदमी राजा के पास गया और कहा कि वो बहुत गरीब है, उसके पास कुछ भी नहीं, उसे मदद चाहिये.
राजा रहमदिल था, उसने पूछा कि क्या मदद चाहिये ?
उस आदमी ने कहा, थोड़ा-सी जमीन ताकि मैं खेती बाड़ी करके अपना परिवार पाल सकूं.
राजा ने कहा, कल सुबह के वक्त तुम यहां आना, ज़मीन पर तुम दौड़ना जितनी दूर तक दौड़ पाओगे वो पूरी जमीन तुम्हारी लेकिन ध्यान रहे, जहां से तुम दौड़ना शुरू करोगे, सूरज डूबने तक तुम्हें वहीं लौट आना होगा वरना कुछ नहीं मिलेगा।
आदमी खुश हो गया,
सुबह हुई, सूरज उदय होने के साथ आदमी दौड़ने लगा.
आदमी दौड़ता रहा, दौड़ता रहा. सूरज सिर पर चढ़ आया था पर आदमी का दौड़ना नहीं रुका था, वो हांफ रहा था पर रुका नहीं था. थोड़ा और, एक बार की मेहनत है फिर पूरी ज़िंदगी मौज है.
शाम होने लगी थी, आदमी को याद आया, लौटना भी है, नहीं तो फिर कुछ नहीं मिलेगा.
उसने देखा, वो काफी दूर चला आया था. अब उसे लौटना था पर कैसे लौटता ? सूरज पश्चिम की ओर मुड़ चुका था, आदमी ने पूरा दम लगाया.
वो लौट सकता था पर समय तेजी से बीत रहा था, थोड़ी ताकत और लगानी होगी. वो पूरी गति से दौड़ने लगा पर अब दौड़ा नहीं जा रहा था, वो थक कर गिर गया और उसकी रूह वहीं निकल गई।
राजा यह सब देख रहा था,
अपने अर्दलियों के साथ वो वहां गया, जहां आदमी ज़मीन पर गिरा था.
राजा ने उसे गौर से देखा
फिर सिर्फ़ इतना कहा,
इसे सिर्फ दो गज़ ज़मीन की दरकार थी, नाहक ही ये इतना दौड़ रहा था.
आदमी को लौटना था, पर लौट नहीं पाया.
वो लौट गया वहां, जहां से कोई लौट कर नहीं आता.
अब ज़रा उस आदमी की जगह अपने आपको रख कर खुद से सवाल करे, कहीं हम भी तो वही भारी भूल नहीं कर रहे जो उसने की.
हमें अपनी चाहतों की सीमा का पता नहीं होता.
हमारी ज़रूरतें तो थोड़ी होती हैं, पर चाहतें कई ज्यादा
अपनी चाहतों के आरजुओं में हम लौटने की तैयारी ही नहीं करते. जब करते हैं तो बहुत देर हो चुकी होती है.
फिर हमारे पास कुछ भी नहीं बचता.
अतः आज अपनी डायरी पेन उठायें, कुछ सवाल एवं उनके जवाब जरूर लिखें-:
मैं जीवन की दौड़ में शामिल हुआ था, आज तक कहाँ पहुँचा…?
आखिर मुझे जाना कहाँ है ? कब तक पहुँचना है…?
इसी तरह दौड़ता रहा तो कहाँ और कब तक पहुंच पाऊँगा…?
हम सभी दौड़ रहे हैं, बिना यह समझे कि सूरज समय पर लौट जाता है, हम लौटना नहीं जानते..
सच यह है कि जो लौटना जानते हैं, वही जीना भी जानते हैं पर लौटना इतना भी आसान नहीं होता।।
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