अपने बच्चों की शरारतों पर डांट मत लगाना, शरारत किए जसवन्त गुज़र ही गया जमाना

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कर्नल जसवन्त सिंह चन्देल
कलोल बिलासपुर हिमाचल प्रदेश

बचपन की सारी शैतानियां,
छोड़ दी थी जवानी में।
बुढ़ापा आया याद आईं कहानियां,
सब्र कर उमर गुजरेगी बदनामी में।

सहपाठी के झोले से गाजनी चुराना,
साथ बैठी लड़की का पैर दबाना,
उसी की चुनरी से नाक साफ करना,
और हंसते-हंसते वहां से भाग जाना।

लंगड़ी सहपाठिन को लंगड़ी कह चिढ़ाना,
जानबूझ कर उसके आगे पानी गिराना,
फिर क्या, मास्टर भीम सिंह से डंडे खाना,
छुपते छुपाते देर रात घर जा कर सो जाना ।

दूध के दुधोनु से मलाई ले चुराना,
मटके में रखी शकर निकाल खाना,
पकड़ी गई चोरी भाभीसे डांट खाना,
और फिर मां केआंचल में छुपजाना।

किसी के खेत से ककड़ियां चुराना,
गल-गल चुरा कर मुरब्बा बनाना,
सुबह सिर पीड़ का बहाना बनाना,
चुपचाप सोजाना स्कूल नहीं जाना।

दिवाली दिन कुत्तेकी पूंछ में पटाखा बांधना,
चोरी के लिए पड़ोसन की बाड़ को लांघना,
सेठ के खेत से रात को मूंगफली निकालना,
और लाले की दुकान से चलकर केले चुराना।

करो याद अपना भी बचपन और तुम बताना,
क्या-क्या शरारतें कीथी मत कुछ तुम छुपाना,
अपने बच्चों की शरारतों पर डांट मत लगाना,
शरारत किए जसवन्त गुज़र ही गया जमाना।

कर्नल जसवन्त सिंह चन्देल
कलोल बिलासपुर हिमाचल प्रदेश

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