चाचा नेहरू  की मूर्ति पिछले कई दशकों से लापरवाही और बेरुखी का सबब क्योँ बनी हुई है ?

चाचा नेहरू ने उस नवजात शिशु को बड़े  लाड प्यार  से पाला पोसा और यौवन तक पहुंचाया।

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चाचा नेहरू  की मूर्ति पिछले कई दशकों से लापरवाही और बेरुखी का सबब  क्योँ बनी हुई है ?

INDIA REPORTER NEWS
SENIOR EXECUTIVE EDITOR
देश मे आजादी का अमृत महोत्सव शुरू हो गया। आजादी के  75 में साल में  अमृत महोत्सव  का  75 हफ्तों तक मनाया जाएगा  और यह जश्न 15 अगस्त  2023 तक  चलेगा।
 मैं पिछले कई वर्षों से यह सोच रहा था कि पालमपुर शहर के प्राइम लोकेशन में लगी यह चाचा नेहरू की मूर्ति पिछले कई दशकों से लापरवाही और बेरुखी का सबब  क्योँ बनी हुई है ।¶
चाचा नेहरू ने देश की आजादी के लिए अपना अहम योगदान दिया तथा देश को एकजुटता में बांधने तथा देश को प्रगति तथा शांति की राह पर ले जाने का के लिए भरसक प्रयास किया ।
 भारत जब एक आजाद देश बना तो वह एक नवजात शिशु के रूप था जिसका  लालन पालन तथा उसे बड़ा करना एक चुनौती भरा कार्य था । चाचा नेहरू ने उस नवजात शिशु को बड़े  लाड प्यार  से पाला पोसा और यौवन तक पहुंचाया।
चाचा नेहरू ने इस  नवजात शिशु को दंगे फसाद, बाह्य खतरों गरीबी अशांति ,आदि बीमारियों से बचा कर उसे तरक्की  एकरस्ता एकसमता तथा शांति समृद्धि  का टॉनिक दे कर बड़ा किया।
पंडित नेहरू वह शख्सियत है जिन्होंने बैरिस्टर का अपना चमकता दमकता हुआ कैरियर छोड़कर देश की आजादी में खुद को झोंक दिया था। इलाहाबाद में अपना बहुत बड़ा बंगला छोड़कर आजादी की लड़ाई में सबसे अधिक समय जेल में बिताया।
ऐसा कौन व्यक्ति होगा जो योन के दिनों में सुख सुविधाओं को छोड़कर रईसी वाला जीवन  छोड़कर जेल की कोठरी को प्राथमिकता दे। यह कोई महान आदमी ही कर सकता है ।
 आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अमृत महोत्सव का आगाज करते हुए उनके त्याग और बलिदान को याद किया   और उनके द्वारा किए गए त्याग और बलिदान को  याद करते हुए कृतज्ञता जताई व नमन किया।
जब इंसान इस शिशु अवस्था में होता है तो उसका लालन-पालन और उसको बचाकर व संभाल कर रखना बहुत बड़ी चुनौती होती है। इसी तरह से देश जब आजाद हुआ था तो वह नवजात शिशु की तरह ही था और उसका लालन-पालन करना काफी मुश्किल कार्य था ।पंडित नेहरू ने अपनी सूझबूझ तथा शांत स्वभाव के कारण उसका बड़े सलीके से लालन पालन किया । हां यह बात अलग है कि जब  शिशु, युवा अवस्था में आ गया, और प्रौढ़ावस्था में उसने कदम रखे तो लोगों ने उसके लालन-पालन में कमियां निकालनी शुरू कर दी, कि उसके लालन-पालन और देखभाल में यह कमी रह गई है वह कमी रह गई कह कर उसको कोसना शुरू कर दिया ।
जरा सोचिए उस माँ पर क्या बीती होगी जिसके बच्चे  ही उनके लालन-पालन में ही कमी निकालनी शुरू कर दे।
 चलिए यह तो राजनीतिक बहस का विषय है परंतु पंडित नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री थे इसलिए पालमपुर जैसे सुंदर जगह में उनकी इस मूर्ति की अनदेखी खल रही है।  पालमपुर  में काफी मूर्तियां लगाई गई हैं तथा शायद भविष्य में भी लगाई जाएंगी, परंतु प्रशासन से यह उम्मीद की जाती है कि वह इस मूर्ति की तरफ भी अपना ध्यान देगा तथा इस मूर्ति के जीर्णोद्धार के लिए कोई विशेष कदम उठाएगा ।
यह कोई बहुत बड़ा कार्य नहीं है। परंतु शायद प्रशासन के संज्ञान में आज तक यह मामला आया नहीं वरना यह कार्य काफी पहले हो गया होता।
पूर्व एस डी एम धर्मेंद्र रमोत्रा इस मामले में काफी  रुचि लेते थे उनके संज्ञान में भी यह बात शायद नहीं लाई गई होगी वरना यह कार्य कभी का हो गया होता।
 इस मामले में पूर्व  नगर परिषद के अध्यक्षा राधा सूद भी इस प्रकार के कार्यों में काफी  रुचि  लेती थी  परंतु शायद उनके संज्ञान में भी यह बात नहीं आई होगी, अगर इन दोनों के संज्ञान में यह बात आई होती तो शायद यह कार्य कभी का हो गया होता।
हां अगर प्रशासन के कुछ मजबूरियां है चाहे वह प्रशासनिक हो या वित्तीय हों ,तो कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को यह कार्य अपने हाथ में लेकर अपनी पार्टी की तरफ से ही इस मूर्ति के जीर्णोद्धार करने के लिए कोई कदम उठाना चाहिए ,ताकि चाचा नेहरू की मूर्ति को वह सम्मान मिल सके जो जिसके वे हकदार हैं  और पालमपुर में जिसकी दरकार है।

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