*धीरे धीरे #काफिरों में #जागरुकता आ रही है।*
अचानक मुझे आदेशात्मक शब्द सुनाई दिए “भैया सीट से हट जाओ। मेरे साथ मेरे बच्चे है।”
बुर्का ओढ़े महिला ने एक 25 साल के लड़के से कहा तो लड़के ने बड़ी शालीनता से कहा “आप महिला सीट पर जाओ, मैं महिला सीट पर नहीं बैठा हूँ।”
वो बोली “वहां सब सीटों पर पहले से ही लेडीज बैठी हैं।”
लड़के ने अपने कान के हेडफोन को हटाते हुए कहा, “मैं क्या करूं ? मुझे भजनपुरा जाना है, जो अभी बहुत दूर है।”
वो अपने बच्चो की धौंस दिखाने लगी कि मेरे छोटे छोटे 4 बच्चे हैं। आपको शर्म नही आती ? आप जेंटस हैं, आप सीट नहीं छोड़ सकते ?”
अब सब सवारियां मौन खड़ी तमाशा देखने लगी, मामला गर्म होने के साथ साथ मसालेदार हो रहा था। लड़के ने एक बड़ी अच्छी बात कही, “आप लोगो का यही #ड्रामा है। #हर_साल एक #बच्चा पैदा करना और उसके ऊपर कूदना । क्या आपने हमसे पूछकर कर बच्चे पैदा किये थे? अजीब बात है? #बच्चे_पैदा_करो_तुम और #सीट_छोड़े_हम ? आपको बच्चों की इतनी ही फिक्र थी तो कैब करती या खाली बस में घुसती । अब तुम्हें #सफर #फ्री चाहिए, #सीट भी चाहिये और #दादागिरी भी चाहिए । जाइए, मैं नहीं देता आपको सीट ।”
बस का कंडक्टर ने भी कहा “भाई दे दो सीट।” लड़का फिर बोला कि “मैं किसी महिला रिज़र्व सीट पर नही हुँ। भाई तू अपने टिकट काट।”
कंडक्टर शायद अरबी भेड़ था। कहने लगा “लेडी है! लगता है पेट से भी है!”
“तो मै क्या करूं?” युवक ने कहा
कंडक्टर चुप होकर बस के बाहर देखने लगा। इतने में मुझे ये तो यकीन हो गया लड़का जागरूक है। उसको बातों में धुनने को तैयार है। वो बुर्के वाली अक्कड से युवक के पास वाली सीट के पास ही खड़ी रही। लड़का भी बुदबुदाता रहा कि बच्चे तुम पैदा करते रहो। काफ़िर सीट देंगे? फिर तुम्हें अपना घर देंगे? और फिर वही कश्मीर वाले हालात पैदा करोगे।”
उस महिला को आगे बैठै एक इन्सानियत के कर्मचारी ने अपनी सीट ऑफर कर दी। वो धम्म से बैठ गयी। उसने दो शिशु शावक गोद मे बिठा दिए। परंतु दो शावकों को खडे रहना पडा। अब वो बगल वाले से अपने शावकों के लिए सीट मांगने लगी।”
लड़के ने जोर से उस सेक्युलर को ताना मारा “भाई साहब! घर भी दे दो अपना, ये बच्चे वहां अच्छा जीवन जियेंगे।”
इतने में कंडक्टर चिल्लाया “भाई! जिसे अप्सरा बॉर्डर उतरना हो उतर जाओ।”
बात वहीं रुक गयी और लड़का शांत हो गया। वो शाहीनबाग की शेरनी सीमापुरी उतर गई। मात्र 10 मिनट के सफर के लिये उस बुर्के वाली ने ये सब नाटक किया था।
ये घटना दिल्ली लोकल बस रूट नं• 33 की है जो नोएडा सेक्टर 37 से भजनपुरा की तरफ जाती है। रोज की तरह लोग इसमे घुसते है और अधिका़श अपने आफिस और दूसरे काम के लिए निकलते है। मैं महिला सीट पर बैठी ये सब नाटक देख रही थी। (दिल्ली एनसीआर की बसों में एक लाइन महिलाओ के लिए आरक्षित है।)
मैं मंद-मंद मुसकराई और सोचने लगी कि “जागना जरूरी है। अरे ढेर सारे बच्चे पैदा वो करें और survive हमे करना पड़ रहा है। वर्षों से यही चल आ रहा है लेकिन ये अब आगे नही चलना चाहिए। शायद ही नहीं बल्कि यकीनन अब लोगो में जागरूकता आ रही है जो अब हर शहर गांव व दूरदराज तक पहूंचनी चाहिए।”
*एक महिला पत्रकार*
भाई अमित कुमार की वाल से।।