“कटते हैं सर, मर मिटते हैं, लहू में ही ऐसी रवानी है,” रोटेरियन कमलेश सूद की अनहद गाथा

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*अनहद गाथा*

स्वरचित मौलिक रचना
कमलेश सूद
पालमपुर, हिमाचल

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भारत के वीरों की अनहद,अलग ही एक कहानी है,
कटते हैं सर, मर मिटते हैं, लहू में ही ऐसी रवानी है,
देकर कुर्बानी अपनी, मन ही मन यूँ वो तो हर्षाते हैं,
स्वर्गलोक को दिव्य रथों पर बिठा, हरि ले जाते हैं,,

नहीं लालसा धन की इन्हें, न सुख-वैभव लालचाते हैं,
करते तन को कुर्बान वतन पर, रणबांकुरे कहलाते हैं,
दस-दस शीशों पर इक भारी,मेडल यूँ नहीं मिल जाते हैं,
रणभूमि में तो ये वीर, जौहर कुछ ऐसा दिखलाते हैं,,

भेंट लिए शीशों की माला, थाल में जब-जब आते हैं,
भारत माता के चरणों में तब, अपना शीश नवाते हैं,
गौण मान ये निज कुटुंब को देश के हित लड़ जाते हैं,
संगीनों पर रख कर माथा, वीर वहीं पर सो जाते हैं,,

रक्षा कर भारत माता की, अपना कर्तव्य निभाते हैं,
सोते हम नर्म-गर्म गद्दों पे,वे ग्लेशियर में भी मुस्काते हैं,
भारत माता के सपूत हैं, माँ की लाज नित बचाते हैं,
ज़रूरत पड़े कभी तो दुश्मन के ही घर घुस मार उसे आते हैं,,

देशभक्ति के जज़्बे को नस-नस में संचारित करते हैं,
गर्व से मस्तक उठ जाते, जब ये लाल घरों को आते हैं,
कोटि-कोटि कंठों से जब, यह जय गान निकलते हैं,
शान में उनकी मस्तक तो, क्या तिरंगे भी झुक जाते हैं।

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