प्रख्यात कवयित्री श्रीमती कमलेश सूद की “मर्यादा”

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“मर्यादा “

दूर आसमान में डूबते-उतरते सूरज को देखकर,
परिंदों -पखेरूओं ने शोर, हाहाकार मचा दिया।
बोले थे वे -मत जाओ हे देव! छोड़ हमें यूं अकेला,
लील जाएंगे यह अंधेरे,जो प्रकाश न फैला।
मुस्कुराया सूरज और बोला -क्यों होते हो उदास!
कल फिर आऊंगा न,मत छोड़ना तुम आस।
कल भोर होते ही लौटने के लिए ही जा रहा हूॅं,
फैलाना है वहां भी उजियारा जहां अंधकार है छाया।
रात की गोद में तनिक विश्राम कर लो,
देकर उनको भी थोड़ी खुशी,
मैं,लौट आऊंगा।

 

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