माननीय मंच को नमन।
दिनांक : १२.१.२०२३
विषय :देशभक्त संन्यासी विवेकानंद
शैली:कविता
देशभक्त संन्यासी था वह
स्वतंत्रता का अभिलाषी था
आशाएं थीं केंद्रित उसकी
नवयुवकों की नवपीढ़ी पर
वीर्यवान, तेजस्वी, ओजस्वी
और
श्री संपन्न कर्मवीरों पर
जीवन समर्पित कर दिया था जिसने
हिंदू को गर्वित किया था उसने
“गुरु गोविन्द बनो”कहा था सबसे
निज देश हेतु बलिदान करो मन से
शिकागो जाकर वह संन्यासी
विश्व -मंच पर गरजा था
सात हज़ार नर-नारी पर भी
विवेकानंद ही भारी था
प्रतिभाशाली व्यक्तित्व को देख
श्रोतागण सब मुग्ध हुए
“अमरीका निवासी भाई-बहनों”का संबोधन सुन
स्तब्ध हुए
धर्म का अनोखा संसार बताया
हिंदुत्व का विश्व को मर्म समझाया
नदी सिंधु में विलीन होकर स्वयं सिंधु हो जाती है
वैसे ही सब धर्म की राहें
सत्य प्रभु को पाती हैं
सरल,सरस सार्वभौमिक
धर्म-परिभाषा सुनकर
पश्चिम तब नतमस्तक हुआ
एक युवा संन्यासी दक्षिणेश्वर ने
धर्म का नव-आयाम दिया
आओ! करें नमन सब मिलकर
उस देशभक्त संन्यासी को
जिसने तन-मन वार दिया और
समस्त विश्व को वेदांत दिया।
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स्वरचित मौलिक रचना
कमलेश सूद
पालमपुर
हिमाचल प्रदेश।