“कहां हो तुम!!” देवभूमि पालमपुर की महान साहित्यकार श्रीमती कमलेश सूद द्वारा कलमबद्ध लघुकथा-संग्रह, प्रस्तुत है प्रबुद्ध पाठकों की सेवा में.. मन को छू लेने वाली कहानियां, हर रोज़ लेकर आएंगे हम सिर्फ़ आपके लिए….

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Presented by ….

RAJESH SURYAVANSH

RAJESH SURYAVANSHI
Editor-in-Chief, HR MEDIA GROUP, Mob : 9418130904, 8988539600

समर्पण

(18 अक्टूबर 1942 से 24 नवंबर 2019)
मेरे पति डॉक्टर विनोद कुमार जी को सादर समर्पित ।

 

Mob : 94188 35456

“इस कदर जिया हमने ज़िन्दगी को

कि हर पल की इक किताब बनती गई।
बेशक ढलती रही उम्र यहाँ सालों में
पर ज़िन्दगी बेमिसाल बनती गई।”

जन्मतिथि : 2 अक्टूबर 1950

जन्म स्थान : पालमपुर, हिमाचल प्रदेश। पिताजी : स्व0 श्री बद्री प्रसाद सूद।

माताजी : स्व0 श्रीमती कैलाशपति सूद।

पति : डॉ. विनोद कुमार सूद।

कमलेश सूद…

कार्यक्षेत्र: 32 वर्षों तक अध्यापन केंद्रीय विद्यालय संगठन, मुख्य अध्यापिका, – पालमपुर केंद्रीय विद्यालय, नई दिल्ली। समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं में प्रकाशन, आकाशवाणी से कविता पाठ, पुस्तक परिचर्या, लेखन में बचपन से ही रुचि जैसे “पिताजी का गुण बेटी में”, विद्यालय पत्रिकाओं का संचालन-संपादन, प्रत्येक वर्ष “हिंदी दिवस” पर सम्मान, रोटरी क्लब द्वारा अनेकों बार सम्मान, इंटरस्कूल क्लब द्वारा अध्यापन एवं लेखन की उत्कृष्ट सेवाओं के लिए सम्मानित, सामाजिक कार्यों एवं अन्य कार्यों में सहभागिता एवं सहकारिता ।

बाल आश्रम (हॉस्टल), हिमाचल प्रदेश में जीवन-यापन कर रहे बालकों एवं बालिकाओं की भावनात्मक, रचनात्मक एवं सामाजिक सहायता, अपने परिवार के जन्मदिन एवं मुख्य त्योहार उनके साथ मनाना। रेकी मास्टर डिग्री, त्रिकर्जा शक्ति, त्रिनिटी थ्री डी द्वारा समाज सेवा।

अखिल भारतीय संस्थान द्वारा प्रयागराज में मानद उपाधि से सम्मानित।

अंतरराष्ट्रीय संस्थान द्वारा प्रयागराज में “जगद्गुरु शंकराचार्य” जी द्वारा अलंकृत एवं सम्मानित ।

प्रयागराज में कवि सम्मेलन में कविताओं का प्रशंसनीय वाचन,

अनेक कवि-गोष्ठियों व कवि-सम्मेलनों में प्रशंसनीय वाचन,

वृंदावन में राष्ट्रीय कवि संगम के सप्तम् राष्ट्रीय अधिवेशन में प्रशंसनीय कविता वाचन एवं सम्मान।

हिमाचल प्रदेश की भाषा एवं संस्कृति विभाग की पत्रिका में पुस्तक “उगता सूरज अर्श की ओर” की समीक्षा।

प्रसिद्ध समाचार-पत्रों एवं पुस्तकों में छपी हुई पुस्तकों की प्रशंसनीय समीक्षा।

केंद्रीय विद्यालय संगठन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तक “काव्य मंजरी” में कविताओं का छपना एवं पुरस्कृत राशि द्वारा सम्मानित ।

बसंत सा खिलखिलाते रहना” पुस्तक का अमेरिका में प्रमोशन एवं सम्मान । काव्य संग्रह : आखिर कब तक (काव्य-संग्रह), बसंत सा खिलखिलाते रहना (काव्य-संग्रह), हवाओं के रुख मोड़ दो (क्षणिका-संग्रह), छू लेने दो आकाश को (क्षणिका-संग्रह), रिश्तो की डोरी (क्षणिका-संग्रह), उगता सूरज अर्श की ओर (क्षणिका-संग्रह), मेरी अधूरी कहानी (कहानी-संग्रह) ।

प्रस्तुत है –

कहां हो तुम!!

(लघु कथा – संग्रह)

एजुकेशनल बुक सर्विस, नई दिल्ली- 110059

मन की बात

साहित्य मेरे लिए माता-पिता समान पूज्य है। संतान अपना कर्त्तव्य वह करे न करे परन्तु माता-पिता का करूण-रस, उनके आशीष-कण सदा प्रवाहित होते रहते हैं। साहित्य कई बार मन से होकर आँखों में छलक आता है और लेखक आत्मविभोर होकर सृजन-रस में लेखनी डुबोकर कुछ रचने लगता है। मैंने भी प्रयत्न किया है। साहित्य-यज्ञ में रचनाओं की आहूतियों से साहित्य-संसार पनपता है, समृद्ध होता है।

मेरा लघु-कथा संग्रह “कहाँ हो तुम!” आपके हाथ में है। मैंने लघु कथा रूपी छोटे-छोटे जुगनुओं की पोटली बांध कर इस संग्रह के अंदर रख दी है और इसमें जीवन के कई पहलुओं को छूने का प्रयास किया है।

मेरे छः काव्य-संग्रह एवं क्षणिका-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। लघु-कथा-संग्रह मेरा प्रथम प्रयास है। आपके बहुमूल्य सुझाव एवं प्रतिक्रिया ही मेरे इस पथ को प्रशस्त करेंगे। इस संग्रह में कहीं भाईचारा है, कहीं माँ बेटे का रिश्ता है, कहीं “सब ठीक हो जाएगा” आश्वासन है तो कहीं “हिम्मत मत हारना” का हौंसला है। मेरे इस संग्रह में कुल १०२ लघु कथाएँ हैं। इनमें मैंने जीवन के लगभग हर पहलू को छूने का प्रयास किया है। कहीं न कहीं ये कथाएँ पाठक-गण को स्वयं से जुड़ी भी लगेंगी क्योंकि इनका कथानक इसी समाज से लिया गया है।

साहित्यकार का धर्म केवल पाठकों का मनोरंजन करना ही नहीं होता बल्कि समाज में फैली विसंगतियों का, विश्व में व्याप्त अन्याय, शोषण और कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाना भी है। जीवन के ताने-बाने से वर्तमान स्थितियों/परिस्थितियों को मुद्दा बना कर आपके समक्ष लघु-कथा के रूप में रखा है।

सन् 2019-2020 मेरे व मेरे परिवार के लिए असह्य दु:ख और वेदना लेकर आया। नवम्बर 2019 में मेरे सिर का ताज छिन गया। दुःख के गहन सागर में डूबने-उतरने लगी। उदासियों व अवसाद ने मुझे घेर लिया या तो मैं टूट जाती या साहित्य का सहारा लेकर उबर जाती। मेरी इस टूटन को मेरी बेटी व बेटे व उनके परिवार ने समझा। इससे मुझे बहुत बल मिला। मेरी नातिन गौरी व नाति अर्श ने रोज़ फोन द्वारा मुझे हौंसला दिया। ये दोनों छोटे हैं- पर सब समझते हैं। इन सबका में अंतर्मन से धन्यवाद देना चाहूँगी जिन्होंने इस दुःख की घड़ी में मुझे टूटन व दर्द से उबारने का प्रयत्न किया। इन्होंने मेरे दुःख-दर्द व आँसुओं को साहित्य की ओर मोड़ दिया और उसे मैंने इन कथाओं में उड़ेल दिया। उदास जी ने प्रेरणा स्त्रोत् बनकर मुझे अनुगृहीत किया। इनकी धर्मपत्नी छाया जी ने भी कई बार फोन करके मेरे दुःख को बांटने का प्रयत्न किया। मैं इन दोनों का बहुत गहराई से धन्यवाद करती हूँ। उदास जी एक प्रख्यात साहित्यकार हैं परन्तु अभिमान व दिखावे दूर, सरल, सीधे व सच्चे! मैं अपनी पुत्री पूजा की भी बहुत आभारी हूँ। वह भी कलमकार है। वह समय-समय पर मेरे एकाकीपन को दूर करके कभी मेरी माँ तो कभी गुरुआइन भी बन गई। मैं दीदी चंचला व बहिन कंचन की भी आभारी हूँ।

मेरी बहू शिल्पा व पुत्र कवित्त ने रोज़ वीडियो कॉल करके मुझे अपने नन्हें से पोते से मिलवाया, पहचान करवाई, बातें की और मेरे एकाकी पन को दूर करने का प्रयास किया। मैं सबके उज्ज्वल भविष्य की मन से कामना करती हूँ।

अब पुनः मैं इस लघु-कथा संग्रह की ओर लौटती हूँ। इन कथाओं को मैंने भावों से भर कर लिखा है। कहीं त्रुटि, कहीं असंगत लगे तो क्षमाप्रार्थी हूँ। ये कैसी बन पाई हैं- यह तो सुधी पाठक तथा समर्थ आलोचक ही बता पाएंगे। आप इन कथाओं का आस्वादन् करें व अपनी टिप्पणियों से मुझे अवगत करवा कर अनुगृहीत करें।

अंत में, दर्द की गहराई क्या होती है- वह मैंने भोगी है, महसूस की है। यह मेरी आँखों से रिसती रही है- समय, असमय भी, टूटन की किरचें आखों में चुभती रहीं, वक्त परखता रहा परन्तु अपनों के साथ व हौंसले ने मुझे हतोत्साहित न होने दिया। कथा “कहाँ तो तुम” भी इसी दर्द की उपज है।

मैं सभी अपनों, शुभचिंतकों और पाठकों की हृदय से आभारी हूँ। आपकी इन लघु-कथाओं की प्रतिक्रिया व बहुमूल्य सुझाव मेरी साहित्यिक यात्रा के मील स्तंभ बनेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है।

साभार

कमलेश सूद

वार्ड न० 3, घुघर रोड पालमपुर- 176061 (कांगड़ा) हि० प्र०

‘आमुख’

कहाँ हो तुम” कमलेश सूद का प्रथम लघुकथा संग्रह है, इस लघुकथा संग्रह में कुल 102 लघुकथाएँ हैं। कमलेश सूद मूलतयः कवयित्री हैं। इस कृति से पूर्व उनकी कविताओं तथा क्षणिकाओं की कुल छः पुस्तकें छप चुकी हैं।

कमलेश सूद ने इन लघुकथाओं में जीवन के बहुआयामी विविध रंगों को अपने शब्दों में उकेरा है। फिर भी कुछ समकालीन मुद्दों-विषयों की चर्चा करना यहाँ तर्कसंगत होगा, इन लघुकथाओं में नारी मन की पीड़ा- बिखराव टूटते हुए मानवीयमूल्य, खोखले रिश्तों की कथा-व्यथा, अकेलापन, तथा नारी से जुड़े जीवन के कई आयाम हैं। इन लघुकथाओं कटु यथार्थ भी झलकता है।

हिमाचल प्रदेश एक सुन्दर तथा छोटा प्रदेश है। प्रदेश की हरीतमा, ऊँचे-ऊँचे पहाड़ तथा वहाँ का जनजीवन हर मानव को मोहता है। प्रकृति का साफ-सुथरा रूप, तथा स्वच्छ खुला आकाश, मन में कई रंग-रूप भरती है। संम्वेदना जगाता है।

साहित्यकारों के लिए लेखन हेतु वहाँ का वातावरण काफी हद तक सहायक माना जा सकता है।

कमलेश सूद ने पहाड़ का दर्द, पहाड़ का जीवन अपनी रचनाओं में सृजित किया है। जिसका हमें स्वागत करना चाहिए तथा यह भी बात यहाँ मैं रखना चाहता हूँ, जब मानव मन भीतर से दुख से भरा हो तो शब्द सुखद लेखनी की नोकपर चले आते हैं। कमलेश सूद द्वारा रचा गया लघुकथाओं का संसार मात्र काल्पनिक नहीं है, इसमें यथार्थवाद है तथा जीवन की धड़कने धड़कती लगती हैं। कमलेश सूद की पहले भी छिटपुट लघुकथाएं छपती रहती हैं।

कमलेश सूद ने इस लघुकथा संग्रह को लिखकर एक नया इतिहास रच डाला है। कांगड़ा जिले में कमलेश सूद पहली महिला लघुकथाकार हैं, जिनकी इस विधा पर पुस्तक छपी है। समग्र हिमाचल प्रदेश की महिला लघुकथाकारों की अगर बात करें, तो अधिकत्तर महिलाएं छिटपुट लेखन ही कर रही हैं। मात्र शबनम शर्मा एक ऐसी लघुकथाकार हैं जो नाहन हिमाचल प्रदेश में है, जिनके २०१५ में दो लघुकथा संग्रह छपे है। जिनका नाम शीर्षक “भावनाओं की परछाईयाँ” तथा “दिलों का दर्पण” है। कमलेश सूद हिमाचल प्रदेश की अब दूसरी महिला लघुकथाकार बन गई है, जिनकी इस विधा पर स्वतंत्र पुस्तक है।

अब बात करें इनके द्वारा लिखी गई इन लघुकथाओं के सृजन पर, तथा वाक्या-विन्यास पर। मैंने यह महसूसा है, कि इनकी लघुकथाओं में कहीं-कहीं शब्दों की अधिकता है। जबकि इस विधा में कम से कम शब्दों में काम चलाना ही लेखक/लेखिका का रण कौशल माना जाता है। कमलेशसूद भावुकता में कहीं-कहीं बह जाती हैं तो लघुकथा का कलेवर बड़ा हो जाता है। मुझे आशा है, निकट भविष्य में यह लघुकथाएँ लिखते हुए इस बात का ध्यान रखेगी तथा मितव्यवता से काम लेंगी।

मैं कमलेश सूद को “कहाँ हो तुम” लघुकथा संग्रह के प्रकाशन पर बधाई देता हूँ। मेरी यह कामना है, यह स्वस्थ प्रसन्नचित रहें तथा साहित्य सृजन में यूँ ही लगी रहें।

साभार

नरेश कुमार ‘उदास’

आकाश-कविता निवास

मकान न० 54 लेन० न० 3, लक्ष्मीपुरम, सैक्टर बी-1

पोस्ट वनतलाब जिला-जम्मू- 181123 (संघ शासित प्रदेश)

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1.

नया घर

माँ! मैं सोच रहा हूँ कि इस पुराने घर को तुड़वा कर नया घर बनवा लूँ।”

दीपक ने माँ से कहा।

“क्या ऽऽऽऽऽऽऽ!!” नलिनी हत् प्रभ रह गई।

“तुम्हारे पिता की नेक कमाई और उनके हाथों बना यह घर, जिसमें वे मुझे ब्याह कर लाए थे। तुम और शालिनी यहाँ पैदा हुए, खेले, पढ़े, तुम्हारी शादियाँ भी इसी घर में हुईं और अब तुम इस घर को तुड़वाने की बात कर रहे हो?”

“माँ तुड़वाने के साथ बनवाने की बात भी तो कर रहा हूँ। कुछ समय के लिए हमें कहीं और रहना पड़ेगा बस! नये घर के बनते ही हम यहाँ आ जाएंगे।” दीपक ने कहा ।

“इस घर के कण-कण में मेरी और तुम्हारे बाबू जी की यादें बसी हैं- यह आँगन, यह तुलसी, दीवारें, पूजा-गृह, दीवार पर मेरे मैंहदी भरे हाथों की छाप, यह सब  ऽऽऽऽऽऽऽ।”

कहते-कहते माँ सुबक पड़ी थी।

“माँ तुम तो बिना बात ही भावुक हुई जा रही हो। मेरे सब दोस्तों के पक्के और बड़े-बड़े घर हैं।” दीपक ने कहा।

“इस घर में क्या कमी है? पाँच कमरे हैं, बड़ी रसोई हैं, खुला आंगन है। आम, अमरूद के पेड़ लगे हैं और फिर तेरे पिता जी की यादें भी तो हैं।”

मैंने कहा तो दीपक गुस्से से बोला-

“माँ! तुम • फिर शुरू है बस ऽऽऽऽऽऽऽ” हो गईं। मैंने नया घर बनाने का फैसला कर लिया

– कह कर वह गुस्से में भर कर घर से बाहर चला गया। दीपक की बहिन शालिनी एक सप्ताह के लिए मायके आई तो उसने माँ से सारा हाल जाना। वह दीपक से कहने लगी- “दीपक! माँ कह रही

है तो रूक जाओ न ! जब तक माँ है तब तक ही सही।”

दीपक तमतमाता हुआ बोला-

“और अगर माँ बीस बाल नहीं मरी तो क्या तब तक इसी पुराने मकान में रहूँगा।”

“चुप करो! क्या बक रहे हो।” दीपक की बात सुनकर शालिनी के पैरों तले ज़मीन खिसक गई और दीपक दनदनाता हुआ घर से बाहर चला गया। शालिनी डर गई और लगभग भागते हुए ही वह अंदर पहुँची तो उसका शक सही निकला था। माँ ने शायद सब कुछ सुन लिया था। माँ फर्श पर गिरी हुई थीं, शायद वह यह अप्रत्याशित आघात न सह पाई थी। शालिनी ने टैक्सी से माँ को अस्पताल पहुँचाया परन्तु डाक्टर ने ‘माँ’ को मृत घोषित कर दिया।

शालिनी ने दीपक को फोन करके कहा-

“दीपक! तुम घर तुड़वा कर अब नया मकान बनवा सकते हो।” “वाह शालिनी! क्या माँ तैयार हो गई नये घर के लिए?”

दीपक ने चकहते हुए पूछा।

“हाँ! माँ अब नये घर में जाने के लिए तैयार है।” शालिनी ने दर्द से भरी आवाज़ में कहा।

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…..अब कल मिलेंगे दोस्तो बस! अब और नहीं और जज्बा कहानियों के साथ……..

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