कारगिल: युद्ध में दुश्मनों से मोर्चा लेते हुए भारतीय जवानों ने कई दिन तक खाया गुड़ चना, बर्फ चाटकर बुझाई प्यास

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22 साल पहले कारगिल युद्ध में भारतीय जवानों ने दुश्मन की सेना के छक्के छुड़ा दिए और उन्हें भारत की भूमि से खदेड़ दिया। इस युद्ध में प्रयागराज के जवानों ने भी अपने जान की बाजी लगा दी थी। करछना क्षेत्र का रहने वाले जवान लालमणि ने इस युद्ध में अपनी शहादत भी दी।

युद्ध में दुश्मनों से मोर्चा लेते हुए भारतीय जवानों ने कई दिन तक गुड़ चना खाया। बर्फ चाटकर प्यास बुझाई। 1999 में हुए युद्ध में अपना सर्वश्रेष्ठ देने वाले जवान आज भी उस मंजर को नहीं भूले हैं। कारगिल युद्ध के कई नायकों ने उस समय के अपने अनुभव को आपके हिन्दुस्तान के साथ शेयर किया।

एयरबेस का सुरक्षा तंत्र मजबूत किया
कारगिल युद्ध के दौरान ईएमई में कार्यरत विनोद कुमार मिश्रा ओल्ड फील्ड पर तैनात थे। अचानक विनोद मिश्रा को बटालियन के साथ श्रीनगर एयरबेस ले जाया गया। उन्होंने बताया कि दुश्मन की सेना को खदेड़ने के लिए कारपेट बांबिंग करनी थी। इसके लिए पहले श्रीनगर एयरबेस की सुरक्षा बढ़ाई गई। रडार को मजबूत किया गया। एयरबेस के चारों तरफ लगी एल-70 गन को हमेशा तैयार रखने की जिम्मेदारी थी। बताया कि एयरबेस से एक बार में दो लड़ाकू विमान उड़ान भरकर दुश्मन की सेना पर बम वर्षा करके आते थे। उसके तुरंत बाद दो और लड़ाकू विमान हमले के लिए जाते थे।

लेह में पहुंचते ही देखी थी दुश्मन सेना की क्रूरता
कारगिल युद्ध शुरू हुआ तो 24 राजपूत बटालियन में नायक शिवभवन सिंह जम्मू-कश्मीर के सांभा में तैनात थे। बटालियन के जवानों को हेलीकॉप्टर से लेह में उतारा गया। नायक एसबी सिंह ने बताया कि उस समय लेह के पहाड़ों के बीच नालों का पानी लाल हो चुका था। तब एक ही उद्देश्य से आगे बढ़े कि अब विजय लेकर लौटेंगे भले ही शहादत देनी पड़े। माइनस 30 डिग्री तापमान में दुश्मनों के हमले होते रहे और हम मुंहतोड़ जवाब देते रहे। भूख लगी तो गुड-चना, ड्राई फ्रूट्स खा लिया। प्यास लगी तो बर्फ चाट लेते थे। नायक एसबी सिंह के मुताबिक युद्ध के दौरान क्रॉस फायरिंग में उनको भी गोली लगी लेकिन कारवां आगे बढ़ता रहा।

तकनीकी कंट्रोल रूम में सुनाई पड़ते थे धमाके
एयरफोर्स में आनरेरी फ्लाइंग अफसर रहे रामलखन प्रजापित आज भी कारगिल वार में बमों के धमाकों की गूंज नहीं भूल पाए। उन्होंने बताया कि दुश्मन की सेना 12-24 हजार फीट ऊपर थी। ऐसे में भारतीय थलसेना को युद्ध लड़ने के लिए ग्राउंड तैयार करना था। इसलिए सबसे पहले श्रीनगर के पास अवंतीपुर एयरबेस से मिग 21 से हमला किया गया। इसके साथ ही मिग 29 को हमले के लिए लगाया गया। तीसरे चरण में ग्वालियर से कर दिया। वह बताते हैं कि तकनीकी कंट्रोल रूम में सिर्फ धमाकों की आवाज सुनाई पड़ती थी। भारतीय लड़ाकू विमानों की कारपेट बांबिंग के बाद थलसेना आगे बढ़ी और दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए।

वार फील्ड तक पहुंचना भी युद्ध से कम नहीं था
विहार रेजीमेंट में हवलदार रहे सतपाल श्रीवास्तव लड़ाई के दौरान बटालिक सेक्टर में रहे। उनकी रेजीमेंट को कूचबिहार से बटालिक भेजा गया। उन्होंने बताया कि माइनस 30 डिग्री के तापमान पर पर्याप्त ऑक्सीजन भी नहीं मिल रही थी फिर भी भारतीय सेना का हौसला बुलंदी पर रहा। उन्होंने बताया कि उस समय बटालिक, कारगिल, द्रास जैसे क्षेत्र में पहुंचना भी किसी युद्ध से कम नहीं था।

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