हिम्मत गर होती तुम बुझदिलों में, सामना करने की, पर्दे के पीछे से डराना छोड़ दिया होता
दगाबाज़, भीतरघाती, कायरऔर मक्कार दोस्तों को सस्नेह समर्पित….
हिम्मत गर होती तुम बुझदिलों में, सामना करने की,
पर्दे के पीछे से डराना छोड़ दिया होता।
सजाते रहते हो जुल्फों में फूल हर रोज़,
कभी हाल माली का भी पूछ लिया होता।
हाथों की खैरात कब तक रोके रखोगे मक्कारो,
खाली हाथ चलना होगा तुम्हें भी इस दूनिया से।
क्यों बेपर्दा करने की कोशिश में रहते हो,
सोचो गर तुम्हें ही बेपर्दा कर दें
इस दुनिया में।
भीख लेनी-देनी दोनों को
तलाक़ दे रखा है हमने,
डर है कहीं बेपर्दा न कर दें हम
तुम्हें इस दुनियां में ।
कर्नल जसवन्त सिंह चन्देल,
कलोल, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश।
मोबाइल : 94184 25568