पूछता है MEDIA केजरीवाल से बड़ा सवाल : किस गुमनामी के अंधेरे में खो गए आपके शक्तिशाली नींव के पत्थर? अभी तक क्यों नहीं लौट रहे पार्टी की मुख्य धारा में? या वे कर्णधार लौटना ही नहीं चाहते?
संपादकीय :-
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अरविंद केजरीवाल जी, आपसे पूछता है मीडिया, कहां गए वे आपके नींव के पत्थर जिन पर आपको कभी नाज़ था? जिन्होंने पार्टी की बाग़डोर संभालते ही मात्र 15 दिनों में ही पार्टी को शीर्ष पर पहुंचा दिया था हिमाचल प्रदेश में…
कहाँ गए वे पार्टी के तत्कालीन कर्मठ युवा नेता जिन्होने भीषण कठिन परिस्थितियों में डोर टू डोर लोगों के पास जाकर दिल्ली मॉडल की विशेषताएं बताने व आपकी लोक लुभावन नीतियों से जनता को रूबरू करवाने हेतु अपनी जान तक झोंक दी थी?
हमें आज भी याद है आम आदमी पार्टी के उन चंद जुझारू युवा नेताओं के नाम जो पार्टी की उदासीनता के कारण न जाने कहाँ गुमनामी के अंधेरों में खो गए जहां से उनके आकाओं ने उन्हें इस अंधेरे से निकालने में अपनी तनिक भी दिलचस्पी नहीं दिखाई।
ऐसे ही कुछ गुमनाम चेहरे थे विशाल राणा, अपूर्वा शर्मा, विकास डमटाल, नागेंद्र चंद्र ठाकुर मनाली, नेगी किन्नौर, ज्वालामुखी से अनिल चौहान, देहरा से दिनेश ठाकुर, कुल्दीप मंकोटिया, तरसेम शर्मा रवि शर्मा चंबा, रोहड़ू शिमला से सुनील नेकता, शिमला से नेगी , संदीप, कहाँ हैं सोलन से चांदनी भारद्वाज, अशोक भारद्वाज, जगत भोरंज , करसोग से रोहित गुप्ता व हज़ारों युवा कार्यकर्ता जिनकी संयुक्त मेहनत से विशाल राणा के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की गाड़ी पहाड़ पर चढ़ पाई थी?
आम आदमी पार्टी ने अपना उल्लू साधा और कुछ ऐसे नेताओं की चुगलखोरी की वजह से पार्टी से दूध से मक्खी की तरह निकाल बाहर फेंका जिनका असली चरित्र आज पार्टी के सामने आ चुका है।
आज भी मुझे याद हैं वो पल जब युवा प्रदेशाध्यक्ष विशाल राणा ने विषम स्वास्थ्य के चलते हुये भी मात्र आधे महीने में ही सारे हिमाचल में आम आदमी पार्टी की बल्ले-बल्ले करवा दी थी।
चरम कोरोनाकाल में जब आप के Oxymeter वितरण अभियान चलाया था तो विशाल राँठा के नेतृत्व में सभी नेताओं ने इस अभियान को जन-जन तक पहुंचाने में दिन-रात एक कर दिया था और पार्टी को जीरो से हीरो बन कर पेश करने में कामयाबी हासिल की थी।
क्या ऐसे लीडरों को आप आम आदमी पार्टी के साथ पुनः जोड़ पाएंगे? क्या वे निराश-हताश, अकारण ठुकराए हुये लोग दोबारा वापिस लौट कर आएंगे?
पंजाब के चुनावों में भी ये बात देखने को मिली थी कि उक्त नेताओं ने पंजाब में पार्टी के विभिन्न बूथों पर जाकर प्रमुखता से स्वेच्छा से अपनी सेवाएं दीं थीं, बिना किसी स्वार्थ के।
मीडिया आपसे पूछता है कि क्या शादी के लिए अकेला दूल्हा ही काफी होता है, बारात की ज़रूरत नहीं होती धूमधाम से शादी रचाने के लिए?
वर्तमान परिस्थितियों में तो यही प्रासंगिक लग रहा है कि आप एक दूल्हे हैं लेकिन बारात कहीं नजर नहीं आ रही। क्या अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, और चनों की भी ज़रूरत होती है।
एक कड़वा सच तो यह है जिससे आप इन्कार नहीं कर सकते की इन समय हिमाचल में आम आदमी पार्टी की वो हालत है जैसी बिना परिवार और बारात के दूल्हे की। आपके पास हिमाचल में न तो कोई मज़बूत संगठन है और न ही विधानसभा टिकट हेतु उम्मीदवार, न ही पुराने ईमानदार और जुझारू नेता।
मीडिया आपसे पूछना चाहता है कि क्या उक्त कठिन परिस्थितियों में आप अकेले अपने बूते पर हिमाचल में चुनाव जीत पाएंगे?
अब जबकि लोग भाजपा और कांग्रेस दोनों के भ्रष्टाचार से ऊब चुके हैं, उनसे बेहद दुखी हैं, उनके बारी-बारी वाले खेल से उकता चुके हैं तो वे आम आदमी पार्टी को पूरा मौका देने के पक्षधर हैं लेकिन फिर वे सोचते हैं कि वोट दें किसे, न तो संगठन और न ही कैंडिडेट्स।
जिन पर आपने आंखें मूंद कर बिना वास्तविकता जाने बिना सूझबूझ से अंधा विश्वास करके प्रदेश की डोर उनके हाथों में सौंपी थी। आज वो गद्दार बन कर आपको ठुकरा कर दूसरों की गोद में जा बैठे हैं और जो आपके विश्वासपात्र थे उनकी पहचान करने में आप बुरी तरह असफल रहे।
आपकी उदासीनता का वज्र उन बेचारे युवा नेताओं पर गिरा जो तन-मन-धन से आपकी सेवा में हाज़िर थे, आपके साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे थे।
मीडिया आपसे पूछता है कि क्या आपने दिल्ली की चकाचोंध से बाहर निकल कर उन कर्मठ नेताओं और उन हज़ारों सदस्यों को गुमनामी से वापिस लाकर पार्टी की मुख्य धारा से जोड़ने का ज़रा सा भी प्रयास किया जो असपके आंदोलन से प्रभावित होकर आपसे सच्चे दिल से जुड़े थे?
हैरानी की बात है कि पार्टी हाईकमान,लगता है, पंजाब की जीत पर अभी तक मदहोश है इसीलिये अभी तक चुपचाप गुमसुम बैठी हुई है, हाथ पर हाथ धर के। न कार्यकर्ता,न नेता और न ही संगठन के गठन पर कोई विशेष काम हो पाया है।
बहुत कम बचा है अगर अभी भी पार्टी का मजबूत संगठन खड़ा किया जाता है और पुराने नेतृत्व को आदर सहित पार्टी में स्थान दिया जाता है और सही जनाधार वाले कैंडीडेट्स का चुनाव किया जाता है निश्चय ही विजय श्री आपके कदम चूम सकती है। क्या इतने कम समय में जबकि जयराम ठाकुर सरकार नवंबर की जगह सितंबर 2022 में ही चुनाव करवाने का प्रपंच खेलने का षड्यंत्र बना रही है ऐसी परिस्थिति से आप निपटने में किस हद तक सफल साबित होंगे यह भविष्य के गर्भ में है।
श्री अरविंद केजरीवाल से मीडिया यह भी पूछ रहा है क्या वह अपने पुराने नीम के पत्तों को हिमाचल में फिर से छूट पाने में कामयाब रहेंगे और अगर रहेंगे तो किस हद तक क्योंकि बिछड़े हुए को मिलाना आसान नहीं होता एक चिड़िया को भी अपना घोंसला तिनका तिनका करके अत्यधिक परिश्रम के साथ बनाना पड़ता है अगर उन पंखों की परवाना की जाए तो घोषणा कभी बंद नहीं सकता तो क्या अरविंद केजरीवाल जी उन तीनों को संभालने बीनने का कोई प्रयास करेंगे फिलहाल तो वर्तमान परिस्थितियों में ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा ऐसा लगता है दूल्हा तो आ रहा है लेकिन बारात गायब है यह भी हैरानी करने वाली बात है कि मात्र कुछ ही महीने शेष बचे हैं चार या पांच इतने कम समय में अकेली अरविंद केजरीवाल बिना टीम के कैसे अपना जादू दिखा पाएंगे यह बहुत बड़ा सवाल है क्योंकि परिवार के बिना मुखिया कुछ भी नहीं होता अगर परिवार अच्छा है तो मुखिया दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की करता है और अगर परिवार खराब हो गया तो मुखिया भी मुखिया नहीं रहता मीडिया आज भी बार-बार श्री अरविंद केजरीवाल से यही सवाल पूछ रहा है कि कहां गए वह लोग जिन्होंने दिन रात एक कर के आपके पार्टी को जीरो से हीरो बना डाला था हिमाचल में क्यों आपने हिमाचल की बागडोर करप्ट लोगों के हाथ में सौंपी और ईमानदार लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया आने वाले समय में अरविंद केजरीवाल जी आपको इन सब बातों के जवाब जनता को देने होंगे