कुरल-कुरलाण

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Palampur

Sona Sood

कुरल-कुरलाण ....

पिछले दो दिन से मूसलाधार बारिश हो रही है । थोड़ी देर के लिए रुकती है, फिर जोर का तड़ाक । लोकमानस के लिए ऐसी बारिश कोई नई बात नहीं है । लोक को मालूम है कि आजकल कुरल -कुरली का समय चला है , अठ्ठारह अगस्त को कुरल के उठने के बाद कुरली बैठ गई और अब कुरल की बारी है कि अगले आठ दिन तक पेड़ पर साधनारत्त कुरली के लिए उसे भोजन व्यवस्था करनी है,पहली ही डुबकी में मछली पकड़कर लानी है,कुरली को खिलानी है ।

कुरल नाम के इस पक्षी को ऐसा इसलिए करना है क्योंकि 9 अगस्त के आसपास से लेकर अब तलक आठ दिन जब वो साधनारत्त था तो कुरली ने उसके भोजन का प्रबंध किया था ,वो भी पहली है डुबकी में ।

पहाड़ के लोग तो कुरल कुरली के विषय में जानते हैं लेकिन समतली ईलाकों के लोग शायद इस विषय से अनभिज्ञ हों ।

उनकी जानकारी के लिए बताना जरूरी है कि लोकमानस ने अपने हिसाब से लोकऋतुओं का वर्गीकरण कर रखा है ,हर ऋतु की अपनी उपऋतुएं हैं,हर ऋतु के संबंध में एक उदाहरण है, आख्यान है ।

वर्षा ऋतु के इस समय को (25 श्रावण से 8 भाद्रपद ) तक के समय को कुरल -कुरलाणी की ऋतु कहा जाता है, इन दिनों मूसलाधार बारिश होती है ।

कुरल कुरलाणी के संबध में कहा जाता है कि यह नर और मादा पक्षी हैं ,जो हर वर्ष कांगड़ा जिला में ब्यास नदी के नरियाह्णा पत्तन जो कि पौंग डैम बनने के बाद जलमग्न हो गया है , के पास वृक्ष पर सोलह दिन के लिए आकर साधनारत्त रहते हैं.। पहले आठ दिन कुरल पेड़ पर ध्यानस्थ बैठता है,कुरली उसके लिए भोजन का प्रबंध करती है ,अगले आठ दिन कुरली बैठती है तब कुरल भोजन व्यवस्था करता है ।

सोलह दिन इस पेड़ पर बिताने के दोनों न जाने कहां चले जाते वर्षा ऋतु के अगले आगमन तक । कुरल कुरलाणी के बाद वर्षा ऋतु की अगली कड़ी जलबिम्बियां और जलसोष शुरू होते हैं ।

साहित्यकार हरिकृष्ण मुरारी जी के लेख के अनुसार लोक उपऋतुएं इन नामों से जानी जाती हैं ..

1-ठाण
2-चम्बड़चीसियां
3-नैंह सूल़
4- गोह्र सोतू
5हुन्जू कुच्चू
6 मग्गर मनीषियां
7 लोह्टक -भोह्टक
8- मिर्ग स्नाईयां
9-तीर
10-दक्खनैण
11-कुरल कुरलाणी
12- जलबिम्बियां और जलसोष

लोक ऋतुओं के संबंध में अधिक जानकारी के लिए बाणेश्वरी के आगामी अंक की प्रतीक्षा करें ..

दुर्गेश नदंन ।

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