परम संत महात्मा यशपाल जी महाराज का जीवन चरित्र

हे मालिक! तू ही है,तेरी इच्छा पूर्ण हो

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परम संत महात्मा यशपाल जी महाराज
BKSood:-senior executive editor

परम संत महात्मा यशपाल जी महाराज का जीवन चरित्र

जन्म : 5 दिसम्बर 1918
गतांक से आगे,,,,,,
जब आप दिल्ली स्थानान्तरित होकर आ गये तो आपने दिल्ली में जो अन्य दो भाई थे के साथ मिलकर सत्संग दिल्ली में पुनः करना शुरू कर दिया | सत्गुरु देव परम पूज्य बृजमोहन लाल जी की प्रेरणा से आपने रामनवमी के दिन सन् 1958 में पहला भण्डारा प्रारम्भ कराया |
तब से यह भण्डारा निरंतर रामनवमी पर हो रहा है | 1970 से यह भण्डारा अनंगपुर आश्रम में हो रहा है, जहाँ आपने बुजुर्गो की कृपाधार को इस पावन भूमि पर उतार कर हजारो साधको के ह्रदय को पवित्र प्रेम से भर दिया | भंडारे का कार्यक्रम परम पूज्य सत्गुरु देव बृजमोहन लाल जी के समय में जैसा चपता था ठीक वैसा ही छपवाया तथा ठीक वैसा ही कार्यक्रम रखा और बुजुर्गों की तरीकत को नये साधको तक पहुँचाया | आपने अखिल भारतीय संतमत सत्संग की नीव डाली और उसका रजिसट्रेशन 4.8.1968 को करा लिया | “आनंद-योग”, “बृजमोहन वचनामृत”, “गीता”, “अष्टावक्र गीता”, “पुष्पांजलि”, “साधना पद्दति” आदि बहुत सी पुस्तके लिखी | एक पत्रिका संत सुधा भी निकाली |
आपके द्वारा नियुक्त मार्ग निर्देशक (सत्संग संचालक) आपकी रहनुमाई में, भारत वर्ष के सभी प्रांत व शहरो में जगह जगह सत्संग केन्द्रों पर शाखाये चला रहे है | आपने संत बृजमोहन लाल स्कूल व अस्पताल भी अनंगपुर आश्रम पर स्थापित किये|
आपने सरकारी ऊँचे पद से रिटायर होने के बाद भी अपना जीवन बड़ा साधारण रखा | आप ब्रह्म विद्या के पूर्ण जानकार होते हुए भी अहंकार व दिखावे से कोसो दूर रहते थे | आपके सानिध्य में रहकर भी लोगो को आपको पहचानने में भूल रहती थी | चमत्कार आपके सभी साधको ने अपनी-अपनी ज़िन्दगी में अनुभव किये | चमत्कार आप कभी जाहिर नहीं होने देते थे | अपने सरकारी नौकरी में आपने ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठा को कभी नहीं छोड़ा चाहे कितना ही कष्ट क्यों न उठाना पड़ा हो | स्वयं को गुरु कहलवाना व पैर छुलवाना पसंद नहीं था | कभी-कभी नाराज़ भी हो जाते थे, कहते हम तुम्हारे भाई है | स्वयं को सेवक कहकर सम्बोधित करते | गुरु तो सबका परमात्मा है | ऐसा सबसे कहते थे |
आध्यात्म में आप अभ्यास व रहनी-सहनी पर अधिक जोर देते थे | सभी को सूक्ष्म अहंकार से दूर रहकर सबकी सेवा करने को कहते थे | आपका व्यक्तित्व व प्रेम ऐसा था कि जो आपसे एक बार मिल लेता था आपका होकर रह जाता था | आपका सभी शिष्यों पर सामान प्रेम रहता था | आप से कोई झूठ नहीं बोल सकता था | आप सबके मन की बातों को जान लेते थे कुछ छिप नहीं सकता था | कोई भी साधक अपनी उलझन व प्रश्न लेकर जाता तो प्रवचन में उसे वहीं उसका जवाब मिल जाता था |
आप अपना जीवन सादगी से बिताते रहे व भूले भटके प्राणियों को सही राह दिखाते रहे | आप सत्संग में अपने पेंशन का एक भाग स्वाम सत्संग में दान करते थे, दूजा घर आने वाला कोई भी भाई बिना भोजन किए नहीं जा सकते थे | सत्संग के पैसे को सभी का समझते थे | अपने ऊपर एक पैसा भी सत्संग का खर्च करना सही नहीं मानते थे | सभी शिष्य आपको अपने सबसे निकट समझते थे | ऐसा सुन्दर व्यवहार आपका सभी के प्रति था | बातों-बातों आप साधको को आध्यात्म की ऊँचाई पर पहुँचा देते थे | आप प्रत्येक साधक का ध्यान रखते थे | उनके प्रेम की विशेषता थी कि प्रत्येक साधक यही समझता था कि गुरु देव उसे ही सबसे ज्यादा प्रेम करते है | उन्होंने अपने गुरुदेव के रास्ते को ज्यों का त्यों रखा किसी भी तरह जरा सा इधर से उधर नहीं किया बुजुर्गो की तरीकत को ज्यों का त्यों स्वाम में ढाल कर दुनिया को इसकी मिसाल दी | उनके बड़े सुपुत्र पूज्य परम संत महात्मा रमेश जी भी उनके दिखाए रास्ते पर बुजुर्गो की तरीकर को कायम रखते हुए आज यश-रूप साधना पीठ के माध्यम से पावन रौशनी को जन-जन में पहुँचाने का प्रयास कर रहे है |
3 अप्रैल सन् 2000 को आपने इस नश्वर संसार का त्याग कर दिया | आपकी समाधी अनंगपुर आश्रम, जिला-फरीदाबाद (हरियाणा) में है | यहाँ बैठकर साधको को अनुपम फैज़ का अनुभव होता है |

 

 

 

 

 

 

 

 

अनूप सूद परम् सेवक

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