आख़िर कौन हैँ माँ मनसा क्यों पड़ा माँ का नाम मनसा क्यों पुकारा जाता है इन्हे नागेश्वरी कह कर
माँ मनसा का सम्बन्ध मन से है
आख़िर कौन हैँ माँ मनसा क्यों पड़ा माँ का नाम मनसा क्यों पुकारा जाता है इन्हे नागेश्वरी कह कर
SOLAN : B.K. SOOD,SENIOR EDITOR
देखा जाए तो नाम से ही स्पष्ट हो जाता है की माँ मनसा का सम्बन्ध मन से है| कहा जाता है जितनी शीघ्र ये किसी के मन की पुकार सुनती है उतना शीघ्र और कोई नहीं|
देवियों के दर्शन की यात्रा माँ मनसा के दरबार में आए बिना पूरी नहीं होती और जहाँ कहीं भी माँ दुर्गा माँ भव्य रूप होगा वहां माँ मनसा के दरबार से आशीर्वाद स्वरूप कलश ले जाने की परम्परा भी है|
माँ मनसा के सम्बन्ध में कई धारणाएँ हैँ| कहीं माँ मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है माना जाता है इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा।
महाभारतके अनुसार इनका वास्तविक नाम जरत्कारु है और इनके समान नाम वाले पति मुनि जरत्कारु तथा पुत्र आस्तिक जी हैं। इन्हें नागराज वासुकी की बहन के रूप में पूजा जाता है और इन्हें शिव की मानस पुत्री माना जाता है,
परंतु कई पुरातन धार्मिक ग्रंथों में इनका जन्म कश्यप ऋषि के मस्तक से हुआ है ऐसा भी बताया गया है।कुछ ग्रंथों के अनुसार वासुकि नाग द्वारा बहन की इच्छा करने पर शिव नें उन्हें माँ मनसा को कन्या स्वरुप उनकी बहन बनाया|
हरिद्वार में है मनसा देवी का विशेष जागृत स्थान माना जाता है| हरिद्वार में शक्ति त्रिकोण है। इसके एक कोने पर नीलपर्वत पर स्थित भगवती देवी चंडी का प्रसिद्ध स्थान है। दूसरे पर दक्षेश्वर स्थान वाली पार्वती। माना जाता है कि इसी स्थान पर सती योग अग्नि में भस्म हुई थीं और तीसरे पर बिल्वपर्वतवासिनी मनसादेवी विराजमान हैं।>धारणा है कि यहीं पर माता सती का मन गिरा था इसलिए यह स्थान मनसा नाम से प्रसिद्ध हुआ।
एक समय में मनसा माता ने भगवान शिव की कठोर तपस्या करके वेदों का ज्ञान और श्रीकृष्ण मंत्र प्राप्त किया था, जो कल्पतरु मंत्र कहलाता है। इसके बाद उन्होंने राजस्थान के पुष्कर में पुन: तप किया और श्रीकृष्ण के दर्शन प्राप्त किए थे।प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया था कि तीनों लोक में तुम्हारी पूजा होगी और मन का कारक होने के कारण आप भगतों के मन की पुकार बिना उनके कुछ बोले पूरी कर दोगी|>हरिद्वार स्तिथ माँ मनसा के मन्दिर में मंदिर में देवी की दो मूर्तियां हैं।
एक मूर्ति की पांच भुजाएं एवं तीन मुंह हैं और दूसरी मूर्ति की आठ भुजाएं हैं। यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। ये भी माना जाता है की माँ मनसा शक्ति का ही एक रूप है जो कश्यप ऋषि की पुत्री थी जो उनके मन से अवतरित हुई थी और मनसा कहलाई।
नाम के अनुसार मनसा माँ अपने भक्तों की मनसा पूर्ण करने वाली हैं।मां के भक्त अपनी इच्छा पूर्ण कराने के लिए यहां आते हैं और पेड़ की शाखा पर एक पवित्र धागा बाँधते हैं और जब उनकी इच्छा पूरी हो जाती है तो दुबारा आकर मां को प्रणाम करके मां का आशीर्वाद लेते हैं और धागे को शाखा से खोलते हैं।
माँ का एक और प्रसिद्ध स्थान हरियाणा के मनीमाजरा में है, माना जाता है यहां पर सती माता के मस्तक का आगे का हिस्सा गिरा था। मनसा देवी का मंदिर पहले मां सती के मंदिर के नाम से जाना जाता था।
मान्यता ये मन्दिर मनीमाजरा के राजा गोपाल ने बनवाया| राजा गोपाल ने सन् 1815 में अपनी मनोकामना पूरी होने पर मन्दिर का कार्य पूर्ण करवाया था।
मुख्य मदिंर में माता की मूर्ति स्थापित है। मूर्ति के आगे तीन पिंडियां हैं, जिन्हें मां का रूप ही माना जाता है। यहाँ माँ की मूर्ति के ठीक नीचे तीन पिंडी रूप में माँ के दर्शन हैँ| ये पिंडियां महालक्ष्मी, मनसा देवी तथा सरस्वती देवी के नाम से जानी जाती हैं। शास्त्रों में माँ के रूप का वर्णन कुछ इस तरह मिलता है|
जरत्कारुर्जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी। वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ।
जरत्कारुप्रियाऽऽस्तीकमाता विषहरीति च। महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता ।
द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले तु यः पठेत्। तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च ।
अर्थात :- ये भगवती कश्यप जी की मानसी कन्या हैं तथा मन से उद्दीप्त होती हैं, इसलिये ‘मनसा देवी’ के नाम से विख्यात हैं। आत्मा में रमण करने वाली इन सिद्धयोगिनी वैष्णव देवी ने तीन युगों तक परब्रह्म भगवान श्रीकृष्ण की तपस्या की है।
गोपीपति परम प्रभु उन परमेश्वर ने इनके वस्त्र और शरीर को जीर्ण देखकर इनका ‘जरत्कारु’ नाम रख दिया। साथ ही, उन कृपानिधि ने कृपापूर्वक इनकी सभी अभिलाषाएँ पूर्ण कर दीं, इनकी पूजा का प्रचार किया और स्वयं भी इनकी पूजा की।
स्वर्ग में, ब्रह्मलोक में, भूमण्डल में और पाताल में– सर्वत्र इनकी पूजा प्रचलित हुई। सम्पूर्ण जगत में ये अत्यधिक गौरवर्णा, सुन्दरी और मनोहारिणी हैं; अतएव ये साध्वी देवी ‘जगद्गौरी’ के नाम से विख्यात होकर सम्मान प्राप्त करती हैं।
भगवान शिव से शिक्षा प्राप्त करने के कारण ये देवी ‘शैवी’ कहलाती हैं। भगवान विष्णु की ये अनन्य उपासिका हैं। अतएव लोग इन्हें ‘वैष्णवी’ कहते हैं। राजा जनमेजय के यज्ञ में इन्हीं के सत्प्रयत्न से नागों के प्राणों की रक्षा हुई थी, अतः इनका नाम ‘नागेश्वरी’ और ‘नागभगिनी’ पड़ गया।
विष का संहार करने में परम समर्थ होने से इनका एक नाम ‘विषहरी’ है। इन्हें भगवान शंकर से योगसिद्धि प्राप्त हुई थी। अतः ये ‘सिद्धयोगिनी’ कहलाने लगीं। इन्होंने शंकर से महान गोपनीय ज्ञान एवं मृत संजीवनी नामक उत्तम विद्या प्राप्त की है, इस कारण विद्वान पुरुष इन्हें ‘महाज्ञानयुता’ कहते हैं। ये परम तपस्विनी देवी मुनिवर आस्तीक की माता हैं
अतः ये देवी जगत में सुप्रतिष्ठित होकर ‘आस्तीकमाता’ नाम से विख्यात हुई हैं। जगत्पूज्य योगी महात्मा मुनिवर जरत्कारु की प्यारी पत्नी होने के कारण ये ‘जरत्कारुप्रिया’ नाम से विख्यात हुईं।
मनसा देवी को सर्प और कमल पर विराजित भी दिखाया जाता है। विश्वास है कि 7 नाग उनकी सेवा में सदैव विद्यमान हैं। उनकी गोद में उनका पुत्र आस्तिक विराजमान है। आस्तिक ने ही वासुकी को सर्प यज्ञ से बचाया था। विष की देवी के रूप में इनकी पूजा बंगाल क्षेत्र में होती थी। इसलिए इनको नागेश्वरी भी कहा जाता है|
यजरत्कारू, जगतगौरी, मनसा, सियोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जगतकारुप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी माँ के इन सात नाम को जपने से सर्प भय से मुक्ति मिलती है|मनसा देवी के मंदिर भारत में कई स्थानों में हैं। राजस्थान के अलवर और सीकर में, मनसा बारी कोलकाता में, बिहार में सीतामढ़ी, दिल्ली के नरेला, हिमाचल के ततापानी|इसके अलावा ज़िला सोलन के धर्मपुर रोड़ी में मनसा मन्दिर जहाँ प्रत्येक रविवार माता की चौकी में अपने प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करते हैँ|