बंदरों के उत्पात से पर्यटन व खेतीबाड़ी पर विपरीत प्रभाव, जीना हुआ हराम

खुली हवा में प्रकृति का मजा कोई कैसे ले पाएगा,

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बंदरों के उत्पात से पर्यटन व खेतीबाड़ी पर विपरीत प्रभाव,

जीना हुआ हराम

INDIA REPORTER NEWS
PALAMPUR : B.K. SOOD
SENIOR EDITOR
पर्यटन नगरी पालमपुर में पर्यटकों की आवाजाही काफी बढ़ चुकी है और पंजाब से काफी पर्यटक हिमाचल का रुख कर रहे हैं। परंतु ठंड के कारण अभी भी पर्यटन अपनी पूरी रफ्तार नहीं पकड़ पाया है।
पर्यटन की दृष्टि से पालमपुर को विकसित करने के लिए बहुत से उपाय करने की जरूरत है। पर्यटन की दृष्टि से बंदला और न्यूगल कैफे मुख्य आकर्षण का केंद्र रहते हैं ।परंतु यहां पर बंदरों के आतंक की वजह से पर्यटक डरे सहमे रहते हैं। तथा वह अपने  समय का पूरा लुत्फ नहीं उठा पाते ।ऊपर तस्वीरों में जो आपको बंदर दिखाई दे रहे हैं वे न्यूगल कैफे की हैं। ये बन्दर कैफे के बिल्कुल अंदर घुस कर बैठे हैं ।
अब आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि वहां आसपास बैठे पर्यटकों का क्या हाल हुआ होगा। यदि महिला व बच्चे पर्यटक हो तो वे तो बुरी तरह से डर सहम गए होंगे। हो सकता है बंदरों के वहां पर अचानक आने से पर्यटक वहां से भाग खड़े हुए हो। बाहर खुली हवा में प्रकृति का मजा कोई कैसे ले पाएगा, अगर मंदिर उन्हें वहां बैठने नहीं देंगे ,और बंदर उन्हें डराने की कोशिश करेंगे। उनके हाथों से उनके खाने-पीने की चीजें छीन कर भागने की कोशिश करेंगे या उन पर झपट पड़ेंगे ।
ऐसा ही हाल न्यूगल  पार्क का है वहां पर बहुत खुला वातावरण है। प्रकृति की गोद में पर्यटक वहां पर घंटों बैठकर ठंडी हवा और शांत वातावरण का मजा उठा सकते हैं, परंतु वहां पर बंदरों की सेना कब आ जाए किसी को मालूम नहीं अन्यथा न्यूगल  पार्क  स्थानीय लोगों के लिए भी चटाई बिछाकर लंच और डिनर करने का एक बेहतरीन स्थान हो सकता है तथा वहां पर स्थानीय लोग जाकर बहुत इंजॉय कर सकते हैं। लोग सैर करने जाते हैं परंतु हाथ में डंडे पकड़े होते हैं ना जाने कब बंदर झपट पड़े ।लोग वहां पर बैठकर योगा नहीं कर सकते और ना ही कोई व्यायाम कर सकते हैं।
इसी तरह से बंदला माता जखनी माता तथा सौरव बन बिहार न्यूगल  ब्रिज का भी है । वहां पर भी पर्यटक प्रकृति की गोद में खुद को समाहित करने की चाह रखते हैं परंतु यह सोच कर कि ना जाने कब बंदर बंदर झपट पड़ेंगे वह डरे सहमे रहते हैं ,और प्रकृति को निहारने की जगह बंदरों को देखते रहते हैं कि कहीं कोई बंदर उनके बच्चों पर महिलाओं पर ना झपट पड़े ।
लोग टी गार्डन में जाकर कुछ देर आनंदित होना चाहते हैं फोटो लेना चाहते हैं परंतु कब किस पेड़ से बंदर आ जाएगा इसी डर से सहमे रहते हैं। इसमें पर्यटन विभाग का यह वन विभाग का कोई दोष नहीं है क्योंकि बंदरों की कोई समय सारणी नहीं है कि वह कब आएंगे और कब जाएंगे। वे कभी भी अचानक से प्रकट हो जाते हैं और झपट पड़ते हैं ।
क्या सरकार को कोई ऐसी नीति नहीं बनानी चाहिए जिससे कि इन बंदरों के आतंक से ना केवल पर्यटकों को निजात मिल सके व  पर्यटक पर्यटन पर किए गए खर्च का पूरा लुत्फ उठा सकें।
 किसान लोग जिन्होंने बंदरों के आतंक के कारण अपनी फसलें उगाना छोड़ दी है, उन्हें भी इससे निजात मिल सके ।कई बार बंदरों के आतंक के कारण तथा बंदरों के हमले के कारण कई बड़े हादसे हो जाते हैं। किसी दुपहिया वाहन पर बंदर अचानक से झपट पड़े तो बहुत बड़ा एक्सीडेंट हो जाता है। और इसी तरह के एक्सीडेंट में इंसानों की जानें भी जा चुकी हैं ।
अब सरकार को सोचना चाहिए कि इंसान की जान की कीमत अधिक है या बंदरों की। स्कूल जाने वाले छोटे-छोटे बच्चे भी इन बंदरों के उत्पात के कारण परेशान हो जाते हैं।

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