‘ नमस्ते भारत’ की सूत्रधार चंद्रकांता ने कहा कि हिमाचली व राजस्थानी भाषा को यथाशीघ्र आधिकारिक मान्यता दी जानी चाहिए
NAMASTE BHARAT
‘ नमस्ते भारत’ की सूत्रधार चंद्रकांता ने कहा कि हिमाचली व राजस्थानी भाषा को यथाशीघ्र आधिकारिक मान्यता दी जानी चाहिए
सोशल मीडिया के बहुचर्चित कार्यक्रम ‘नमस्ते भारत’ में शनिवार को साहित्य सृजन संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें ‘’राजस्थानी भाषा एवं व्यंग्य के सरोकार विषय’’ पर प्रतिष्ठित व्यंग्यकार फारूक आफरीदी,वरिष्ठ व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा और व्यंग्य लेखक आलोचक डॉ नीरज दइया की सहभागिता रही ।
कार्यक्रम का संचालन ‘नमस्ते भारत’ की संयोजक युवा लेखिका, संपादक व समीक्षक सुश्री चंद्रकांता ने किया । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि फारूक आफरीदी ने कहा कि राज्य सरकार राजस्थानी भाषा, साहित्य संस्कृति के मान सम्मान के लिए प्रतिबद्ध है । भाषा की मान्यता को लेकर कोई राजनीति आड़े नहीं होनी चाहिए । आफरीदी ने कहा कि व्यंग्य का धर्म ही यही है कि समाज में शोषण,अत्याचार,अनैतिकता,असमानता,भेदभाव के विरूद्ध आवाज उठाए और वंचित और पीड़ित वर्ग के साथ खड़ा हो ।
वरिष्ठ व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ने कहा की राजस्थानी एक समृद्ध भाषा है और इसकी मान्यता के लिए एक शताब्दी से मांग की जा रही है । राजस्थानी का एक समृद्ध शब्दकोष और व्याकरण है । सुश्री चंद्रकांता द्वारा राजस्थान में व्यंग्य की स्थिति पर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में बुलाकी शर्मा ने बताया कि हमारे लोकनाट्य, रम्मत आदि में समृद्ध व्यंग्य है । महिलाएं भी व्यंग्य लिख रही हैं। राजस्थानी पत्रिकाएँ निरंतर व्यंग्य छाप रही हैं । लेकिन हमारी भाषा में दैनिक साप्ताहिक समाचार पत्र नहीं है ।
डॉ.नीरज दइया ने कहा कि हिंदी का मूल भवन राजस्थानी भाषा की ही नींव पर खड़ा है । हिंदी में भी अनेक प्रकार की बोलियाँ रही हैं । हिंदी में जिस आदिकाल, वीरगाथा काल और रासो साहित्य राजस्थानी ही है । महावीर प्रसाद द्विवेदी यदि हिंदी की खड़ी बोली बोलियों को एकीकृत कर उसे मानक रूप न देते तो हिंदी की स्थिति भी आज राजस्थानी जैसी ही होती।भाषाओं के लिए भाषा विज्ञान होता है और उसके लिए शब्दकोश,व्याकरण,क्षेत्र, आधुनिक साहित्य होना चाहिए जिसके सारे बिंदु राजस्थानी भाषा पूरी करती है । राजस्थानी को साहित्यिक भाषा के रूप में साहित्य अकादेमी, दिल्ली ने मान्यता दे रखी है । राजस्थानी को रोजगार से जोड़ दिया जाएगा तो इसका और अधिक विकास होगा ।डॉ. नीरज ने व्यंग्य आलोचना पर भी चर्चा की ।
कार्यक्रम के दौरान संचालक चंद्रकांता ने यह जानकारी दी कि आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को आधिकारिक मान्यता प्राप्त है। अब जबकि नई शिक्षा नीति में मातृभाषा की पुरजोर वकालत की गई है हिमाचली व राजस्थानी भाषाओं को भी मान्यता दी जानी चाहिए। हिमाचल प्रदेश में विपुल साहित्यिक काम हो रहा है लेकिन हिमाचली को भाषा के रूप में अभी तक मान्यता नहीं मिली है । इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न क्षेत्रों से व्यंग्यकार और व्यंग्य प्रेमी जुड़े । सुश्री चन्द्रकान्ता जी ने बहुत ही सफलतापूर्वक संचालन किया ।