सरकार के पास कुछ इतनी अमूल्य संपत्तियां हैं अगर उनको व्यापारिक दृष्टि से इस्तेमाल किया जाए तो हर महीने अरबों की आय हो सकती है सरकार को

ना जाने कब आएगा सरकार में प्रोफेशनलिज्म

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बीके सूद: सीनियर एग्जीक्यूटिव एडिटर and Rajesh Suryavanshi editor-in-chief

Bksood: Senior Executive Editor

 

राजेश सूर्यवंशी एडिटर इन चीफ

ना जाने कब आएगा सरकार में professionalism

   
सरकार के पास कुछ इतनी अमूल्य संपत्तियां हैं अगर उनको व्यापारिक दृष्टि से इस्तेमाल किया जाए तो अरबों की इनकम हो सकती है हर महीने! Bksood
हम अपने छोटे से मीडिया ग्रुप के माध्यम से सरकार को कई बार  सरकार हित की बातें बता चुके हैं ।परंतु सरकार है कि उसके कान पर जूं तक नहीं रेंगती। आजकल महामारी का दौर चला हुआ है हिमाचल रिपोर्टर ग्रुप  ने कई लेख लिखे की सड़कों के किनारे और दुकानों में वेंडर्स लोग और दुकानदार मुंह में उंगली डालकर थूक से लिफाफे खोलते हैं ।जिससे संस्मरण बढ़ने की शत-प्रतिशत संभावना है। एक तरफ तो हैंड हाइजीन को तरजीह दी जा रही है करोड़ों रुपया विज्ञापन पर खर्च आ जा रहा है और दूसरी तरफ वही हैंड जीभ पर लगाकर लिफाफे खोलकर सब्जियां तोली जा रही हैं ,मिठाइयां तोली जा रही हैं, फ्रूट तोले जा रहे हैं किराना व अन्य सामान योल जा रहा है,तथा इस कुप्रथा से  संक्रमण का खतरा हमेशा बढ़ता जाता है ,और यह चेन कभी टूटने वाली नहीं ।
संक्रमण ना भी हो तो भी  क्या इस तरह की हरकत किसी को भी अच्छी  लगेगी? इस विषय पर फोन किए गए कई ईमेल्स को गयीं  मुख्यमंत्री को लिखा ,मुख्य सचिव को लिखा ,डायरेक्टर हेल्थ को लिखा बहुत से एसडीएम और डीसी को लिखा  ट्वीट किए गए सोशल मीडिया पर मामला उठाया गया परन्तु  कोई फायदा नहीं हुआ, और पिछले डेढ़ साल से थूक से लिफाफे खोलने का सिलसिला बाकायदा जारी है। महामारी या संक्रमण काल ना भी हो  ,तो भी इस तरह की हरकत देखने में ही बुरी लगती है और ग्लानि महसूस होती है परंतु सरकार है कि मानती ही नहीं।
सरकार में केवल नेताओं की सुनी जाती है आमजन  मानस की नहीं सुनी जाती। ट्रक वाले पास नहीं देते इसलिए झंडी रातों-रात लगा दी जातीीी है परंतु स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण इस छोटे से विषय पर सरकार कोई आर्डर नहीं निकाल सकती क्या मजबूरी सरकार की भी,।
हिमाचल रिपोर्टर ने कई लेख लिखे के एडिटोरियल लिखें की सरकार की कुछ संपत्तियां ऐसी हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है कुछ संपत्तियां ऐसी प्राइम लोकेशन में है अगर उनका व्यवसायिक इस्तेमाल किया जाए तो वह लाखों नहीं करोड़ों रुपए की इनकम सरकार को दे सकती है और सरकार के लिए कमाऊ पूत साबित हो सकते हैं ,और उन प्राइम लोकेशन में स्थित सरकारी कार्यालय को कहीं अन्यत्र शिफ्ट करके उस व्यावसायिक साइट का व्यवसायिक इस्तेमाल किया जा सकता है और इसे PPP या BOT मोड में तैयार किया जा सकता है जिसमें सरकार की तरफ से ना हींग लगेगी ना फिटकरी और रंग भी आएगा चोखा  वाली कहावत सत्य चरितार्थ हो सकती है ।हमने सिविल हॉस्पिटल के बाहर जहां पर काफी बड़ा स्पेस खाली पड़ा है उसे का व्यापारिक इस्तेमाल करने का सुझाव दिया था परंतु सब बेकार ।हमने पालमपुर शहर के बीचो-बीच बनाए जा रहे वेटरनरी हॉस्पिटल पर प्रश्न चिन्ह लगाया था कि शहर के बीचो बीच  जहां पर दिन-रात ट्रैफिक चलती है, वहां पर पशु चिकित्सालय बनाने का क्या औचित्य है ?क्योंकि वहां पर औसतन 10 से 15 ओपीडी भी नहीं होती हैं  और जहां पर  कुत्तों तक को लाना मुश्किल है तो आप यह सोचिए कि वहां पर गाय भैंस बैल भेड़ बकरियां इलाज के लिए कैसे आएंगे? और पूरे शहर को क्रॉस करके हॉस्पिटल कैसे पहुंचेंगे ?
परंतु सरकार तो कुंभकरण की नींद सोई हुई है उसे इस विषय से कोई लेना-देना नहीं और वहां पर करोड़ों का टेंडर लगाकर कार्य भी शुरू कर दिया गया है ।अगर उस वेटरनरी साइट को किसी कमर्शियल एजेंसी को देकर वहां पर पार्किंग या शॉपिंग कंपलेक्स बनाया जाता तो करोड़ों की इनकम हो जाती ।
इसी तरह से नीचे दिए गए चित्र में देखिए कि यह राजस्व विभाग के पुराने निवास हैं जहां पर कोई रहता ही नहीं और यह प्राइम लोकेशन में स्तिथ हैं  अगर इन  गिरने के कगार पर आवासों को गिरा कर यहां पर केवल सरकारी जमीन को ही लीज पर देकर या BOT या PPP मोड में देकर आमदनी का करोड़ों रुपए महीने का जरिया पैदा किया जा सकता है। परंतु यह सोचे कौन ?
हैरानी की बात यह है कि इन आवासों की इतनी बुरी हालत है कि यहां पर शायद पिछले कई वर्षों से कोई रहता ही नहीं है और यह गिरने के कगार पर है
हैरानी की बात तो यह है कि अभी अभी यहां पर एक आवास का पुनर्निर्माण किया गया जिस पर शायद लाखों रुपया खर्च किया गया होगा और वहां से जो सरकार को रेंटल इनकम मिलेगी वह कुछ सेंकडों रुपए में ही होगी हजारों में भी नहीं, तो ऐसे प्राइम लोकेशन पर सरकारी आवास बनाना यह सरकारी कार्यालय बनाना कहां की बुद्धिमत्ता है।
एक तस्वीर में आपको बहुत बड़ी सी रिटेनिंग वॉल दिखाई दे रही है वह पीडब्ल्यूडी के आवास और कार्यालय के बैक साइड की तस्वीर है जहां पर सैकड़ों गज जमीन केवल रिटेनिंग वॉल में ही खपा दी गई है वहां पर भी कमर्शियल एक्टिविटी की जा सकती है।
हमारे देश में प्रदेश की सरकारी सरकारी जमीन का ऐसे दुरुपयोग करती है जैसे की कनाडा य या न्यूजीलैंड में भी नहीं होता होगा जहां की आबादी बहुत कम है नाम मात्र है वह भी एक 1 गज जमीन का सदुपयोग करते हैं भारत की इतनी अधिक आबादी का घनत्व है कि यहां पर हमें इंच इंच का सदुपयोग करना चाहिए परंतु यहां पर सबसे ज्यादा दुरूपयोग किया जाता सरकारी जमीनों का।
कृषि विश्वविद्यालय के पास नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे के साथ लगती हुई किलोमीटर के हिसाब से जमीन है परंतु वहां पर केवल झाड़ियां ही उठती हैं उन पर कोई कमर्शियल या लोगों के हित की सदुपयोग की एक्टिविटी नहीं होती।
यह तो पालमपुर के तीन अभी के उदाहरण हैं ।और पालमपुर में तीन ही नहीं परंतु अनेक उदाहरण है जहां पर प्राइम लोकेशन में बिजली बोर्ड का ऑफिस है पीडब्ल्यूडी का ऑफिस है राजस्व विभाग के ऑफिस हैं और उन जगहों को अगर कमर्शियल रूप से इस्तेमाल किया जाए तो करोड़ों अरबों की इनकम हो सकती है और पालमपुर शहर का पूरा बजट इन्हीं 5 -6 साइट से निकल सकता है ।परंतु ऐसा करेगा कौन? ऐसा सोचेगा कौन? यह केवल पालमपुर का ही हाल नहीं है प्रदेश में सभी जगहों का ऐसा ही हाल है ,जिन जगहों का वर्णन ऊपर किया गया है वह कार्यालय अगर उन जगहों से कहीं और स्थानांतरित कर दिये जाये जो शहर से 1-2 किलोमीटर दूर भी हों तो भी जनता को बड़ी परेशानी नहीं होगी ।और प्राइम लोकेशन वाली जगहों पर लोगों को शॉपिंग व अन्य चीजों की सुविधाएं मिल जाएंगी और सरकार को करोड़ों का राजस्व  मिलेगा।हैरानी की बात तो यह है कि शहर के बीचोबीच वेटरनरी हॉस्पिटल बन रहा है जबकि शहर से 2 किलोमीटर दूर कृषि विश्वविद्यालय का बहुत बड़ा वेटरनरी कॉलेज और हॉस्पिटल है फिर शहर के बीचो-बीच प्राइम लोकेशन में वेटरनरी हॉस्पिटल बनाने की क्या आवश्यकता है  ?क्या औचित्य है?
अगर यहां पर हॉस्पिटल ही बनाना था तो यह जगह सिविल हॉस्पिटल को दी जाती ताकि वह वहां पर अपना और इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करके लोगों को सुविधा दे सकता। परंतु सरकार को तो शहर के बीचोबीच ही वेटरनरी हॉस्पिटल बनाना है। तथा अपने पुराने ढर्रे पर ही चलना है ।किसी भी अधिकारी या नेता के पास यह सोचने की फुर्सत नहीं की सरकार के राजस्व को कैसे बढ़ाया जाये।
बस हम मंदिर मस्जिद करते रहेंगे तथा लोगों को असली मुद्दों से भटका कर रखेंगे। अगर सरकार के पास राजस्व होगा तो सरकार लोगों को अधिक सुविधाएं दे पाएंगे सड़क शिक्षा स्वास्थ्य का स्तर बेहतर होगा ,।यह के बात केवल पालमपुर पर ही लागू नहीं होती बल्कि प्रदेश के हर शहर हर कस्बे में  कमोबेश ऐसे ही हालात हैं। अगर उन पर निगाह डाली जाए तो सरकार को शायद लोन लेने या केंद्र सरकार के पास हाथ पसारने की आवश्यकता ही ना रहे।
शहर के बीचो बीच में इलेक्ट्रिसिटी का दफ्तर है अगर वह दफ्तर शहर के 500 मीटर पीछे चला जाएगा तो किसी को क्या फर्क पड़ेगा? और जिस जगह पर मौजूदा कार्यालय है वहां पर कमर्शियल कंपलेक्स बनाया जाए तो सरकार को करोड़ों रुपए महीने की इनकम हो जाएगी।
परंतु सरकार का राजस्व बढ़ाने की किसे चिंता है सरकार को तो अपने पुराने ढर्रे पर चलने की आदत है  और वह चलती रहेगी।

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