शिक्षकों का हमारे जीवन में अहम रोल वे देश के भविष्य के निर्माता हैं देश किस दिशा में जाएगा यह शिक्षक तय करते हैं हिमांशु मिश्रा एडिशनल एडवोकेट जनरल हिमाचल प्रदेश

शिक्षकों पर की गई टिप्पणी पर एडिशनल एडवोकेट जनरल हिमांशु मिश्रा का सटीक विश्लेषण

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पालमपुर बी के सूद मुख्य संपादक

Bksood: Chief Edior

मंत्री जी के वक्तव्य के बाद शिक्षकों के सभी विवाद समाप्त हो गए हैं । लेकिन मेरा एक अलग दृष्टिकोण है ।।

हिमांशु मिश्रा

मेरे दादा जी कांगड़ा क्षेत्र के पहले स्नातकोतर थे , गणित और अर्थशास्त्र मे दोहरी स्नातकोतर की उपाधि ग्रहण करने के बाद सिविल सर्विसेस का प्रस्ताव था , लेकिन आजादी का जनून और कांगड़ा मे निरक्षरता कहीं न कहीं उनके अंतर्मन को कचोट रही थी , तो संकल्प लिया की कांगड़ा मे शिक्षा की लौ को जगाने के लिए अध्यापन को ही चुनना है । कांगड़ा के जी ऐ वी स्कूल मे अध्यापन का कार्य शुरू किया और अनथक मेहनत से बड़ा मुकाम बनाया , स्वर्गीय श्री रत्न लाल मिश्रा जी को बतौर शिक्षक राष्ट्रपति पुरस्कार तत्कालीन राष्ट्रपति स्वर्गीय श्री सर्वपल्ली राधा कृषण्ण से मिला था , एक अध्यापक के तौर पर अनुशासित , विषय पर गहरी पकड़ और विद्यार्थियों की हर जिज्ञासा का समाधान तो उनके पास था ही , उसके भी आगे समाज के सभी जटिल प्रशनों का हल भी उनसे ही लोग लेते थे । सेवानिवृति के बाद मेरे सामने आसपास के कई गाँव के लोग अपने विवाद सुलझाने उनके पास आते थे , यह उन पर विशवास ही था कि न्यायधीश की भांति ही उनकी भूमिका को लोग स्वीकार करते थे । सामाजिक सरोकारों मे आगे बढ़ कर नेतृत्व देना उनके अध्यापन के जनून से ही उनमे समाहित था । उनकी सेवानिवृति के
अवसर पर कांगड़ा शहर की संस्थाओं द्वारा दिये गए मानपत्र को पढ़ने से आज भी अहसास होता है की अध्यापक से समाज को क्या अपेक्षाएँ थी और उन्होने उन अपेक्षाओं के अनुसार अपने व्यक्तित्व को कैसे ढाला । मैंने बच्चपन में अध्यापक शिक्षक मार्गदर्शक को ऐसे ही देखा समझा पाया था ।

अध्यापक हमेशा ही समाज का नैतिक बौद्धिक समाजिक नेतृत्व करते आयें हैं ।

मैंने आज भी कोरोना के समय मे ऐसे अनेक अध्यापक देखे हैं जिन्होने लॉकडाऊन के दौरान अपनी इच्छा शक्ति और सरकार के सहयोग से
स्कूल के परिसरों की काया कल्प कर दी है । मैंने कई अध्यापकों के बारे मे पढ़ा जिन्होने नवोन्मेषी तकनीक,विचार और जिजीविषा से ऑनलाइन पढ़ाई कों भी रोचक ही नही बनाया अपितु ज्ञानार्जन का एक नया माध्यम बनाया ।
मैंने ऐसे कई शिक्षकों के बारे मे सोश्ल मीडिया मे ही पढ़ा की नेटवर्क की समस्या या छात्रों के पास फोन न होने पर वो बच्चों के घर घर जा कर नोट्स भी देते रहे और छात्रों की जिज्ञासा का समाधान भी करते रहे । कुछ शिक्षकों ने कोविड सेंटर और अन्य संस्थाओं मे अपनी ज़िम्मेदारी कों समझ कर प्रशासन का सहयोग भी दिया ।

शिक्षको का सबसे बड़ा गहना अनुशासन ,लग्न और कर्तव्य परायणता है , लेकिन समय के साथ इन गुणों में कमियां इस बहुत ही आदर्श पेशे मे आने शुरू हुई है ।

ऐसी क्या नौबत आ गयी की विद्यार्थी अपने शिक्षकों के बेतुके नाम रखने लग पड़े हैं और आपस मे उन्हें नामो से शिक्षकों का मजाक बनाते हैं , क्या यह विडम्बना नही की
विध्यालयों मे अब किसी न किसी प्रयोजन सेअध्यापक ही पार्टियों का आयोजन करते है और उनमे आचार व्यवहार की सीमाएं भी लांघ ली जाती है । हिमाचल में ही हमने 0.05% शिक्षकों के आपराधिक घटनाओं में संलिप्त होने के आरोप लगे है । यह चंद गिने चुने लोगों में आई गिरावट से पूरे शिक्षक समाज का मूल्यांकन कभी नही किया जा सकता है ।
जहां कमियां हैं वहाँ सुधार भी है 1980 के दशक में स्कूल में बुनाई करती महिला अध्यापकों की बड़ी कहानियां थी । लेकिन अब महिला अध्यापक अनुशासित मेहनती औऱ अपने कार्य के प्रति अधिक जवाबदेह हुई हैं । यह सुधार शिक्षक वर्ग ने खुद ही लाया है ।

लेकिन इस सब के बावजूद मेरा शिक्षकों से कुछ प्रश्न है ।

क्या यह सच नही की इसी कोरोना काल मे
हिमाचल मे पीटीए, पैरा , एस एम सी , ग्रामीण विद्या उपासकों की वर्षों से चली आ रही मांगों का सम्मानजनक हल निकाला भी और उन सभी अध्यापकों को दुविधा से दूर किया । बैकडोर भर्ती की प्रथा इसी भाजपा की जयराम ठाकुर नीत कार्यकाल में खत्म हुई ।

क्या यह गलत है कि इसी कोरोना काल मे रिकॉर्ड अध्यापकों को जे बी टी से टी जी टी , टी जी टी से लेक्चरर या हेडमास्टर , लेक्चरर या हेडमास्टर से प्रिंसीपल के पदोनीतियाँ काफी वर्षों बाद हुई , शिक्षकों को टेट की परीक्षा को एक बार पास करने का फरमान भी इसी कोरोना काल मे आया । शिक्षकों ने इसी दौर में तकनीक से भी अपने को सशक्त बनाया । एकाएक क्लासरूम से ऑनलाइन में ढलना आसान नही था , लेकिन 99%शिक्षकों ने अपने को इस माध्यम में कम से कम समय मे ढाला और अपने धर्म का निर्वहन किया । यह धर्म का पालन करना ही मजा है ।

आपदा के कारण जहां पंजाब औऱ राजस्थान का अध्यापक नए वेतन आयोग के कारण वेतन कटौती से ख़ौफ़ज़दा है , तो वही हिमाचल में परिस्थितियां सुखद है । 21 जून से 18 से 44 वर्ष के लोगों को वैक्सीन अब सुलभता से लग रही है ।। लेकिन हिमाचल सरकार ने शैक्षणिक संस्थान जल्द खोलने के उद्देश्य से , बच्चों की सुरक्षा हेतु 44 वर्ष से कम उम्र के अध्यापकों को फ्रंट लाइन वर्कर घोषित कर जल्द टीकाकरण करवा कर शिक्षकों का सम्मान ही किया ।

हिमाचल प्रदेश के लगभग 70 % अध्यापक अपने गृह क्षेत्र के आसपास ही बच्चों को अच्छी शिक्षा दे रहे हैं । जिसका लाभ भी प्रदेश को हो रहा है । पूरे देश मे नज़र डालें तो शिक्षकों को यह सुविधा केवल और केवल हिमाचल में मिल पाती है अन्य बड़े राज्यों में ट्रेन के सफर में कई अध्यापक कष्ट सहते मिल जाते हैं ।

कमान से निकले तीर और मुहँ से निकले वाक्य के कई मायने निकाले जा सकते है , मुझे तो मंत्री जी के बयान के सकारात्मक मायने ही नज़र आये । जिस प्रदेश में शिक्षकों की और शिक्षकों को इतनी उपलब्धि मुश्किल समय मे मिली हों तो वो आनन्ददायक ही है । इस वक्तव्य को कटाक्ष और तंज समझने वाले वास्तव में शिक्षक के वृहत स्वरूप को कम करके आंक रहे है । बच्चों को पढा कर ही वास्तव में शिक्षक को मजा आता है और करोना काल में विपरीत परिस्थितियों में भी शिक्षकों ने बच्चों को क्षमता से अधिक पढ़ाया है और यही मजे उन्होंने लिए हैं । मुझे यह भी विश्वास है कि जो कुछ कमियां हमने देखी सुनी समझी हैं उसे मेरे शिक्षक मित्र जल्द ठीक करेंगे । राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे रहे सभी शिक्षकों को सादर नमन । जय भारत

राजेश सूर्यवंशी एडिटर इन चीफ

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