POLITICIANS बने खलनायक! आज की राजनीति के चाणक्य अपने लिए धन एकत्रित करने में लगे हैं। लोगों के हक छीन कर भीख मांगने को करते हैं मजबूर
वह भी दौर था जब राजनीति सिर्फ मानवता के विकास के लिए होती थी। PENSION छीनी, कर्मचारी चुप
INDIA REPORTER TODAY
Article by PARVEEN SHARMA
भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे असली राजनीतिज्ञ
वह भी दौर था जब राजनीति सिर्फ मानवता के विकास के लिए होती थी, देश हित में होती थी, एक समाज सेवक के रूप में होती थी ।भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी मिसाल उस दौर की। परंतु आज की राजनीति में समाज सेवा के मतलब को भूल कर जातिवाद के नारे से होती है ।
धन एकत्र करना बना मुख्य लक्ष्य
अपनी जातियों का वोट बैंक बनाकर कुछ लीडर लोग सिर्फ अपने घर भरने के लिए राजनीति में कूदते हैं । आज की राजनीति के चाणक्य जनता की सुख सुविधाओं को भूल कर अपने लिए धन एकत्रित करने में लगे हैं ।
लोगों के हक छीन कर भीख मांगने को करते हैं मजबूर
लोगों के हकों को छीनकर पहले उन्हें दर दर ठोकरें खाने के लिए मजबूर किया जाता है और तब तक ठोकरें खिलाई जाती है जब तक मजबूर लोग इनके पैरों में सिर नही रख देते और भीख नही मांगते । लोगों को मजबूर किया जाता है कि वे अपने हकों को वापिस पाने के लिए भीख मांगे।
हिटलरवादी कानून
HIMACHAL के सवा लाख से अधिक कर्मचारियों की PENSION छीनी, कर्मचारी चुप
एक लोकतांत्रिक प्रणाली वाले देश में हिटलर के कानूनों को लागू करना लोकतांत्रिक प्रणाली का सरेआम अपमान है । परंतु कहेगा कौन ? जिनके हक छिने है उनमें इतनी सी हिम्मत नही कि वे इतना भी बोल सकें कि ऐसा क्यों हुआ । पेंशन का हक छीना कर्मचारी चुप ।
इस समय हिमाचल प्रदेश में ही लगभग सवा लाख के करीब कर्मचारी हैं जिनका पेंशन का हक छीन लिया परन्तु आज भी इसके विरोध में मुट्ठी भर लोगों के ही स्वर गूंजे हैं बाकि डर के कारण अभी भी घरों में दुबके हैं यही कारण है कि जनता को हिटलरी फरमानों को सहन करना पड़ रहा है ।
जनता बनी मात्र VOTE BANK
राजनीतिज्ञ बने खलनायक
जनता क्या है ?जनता तो एक वोट बैंक है वोट दिया और जनता का रोल खत्म । जनता के जनप्रतिनिधि कहते हैं कि हम जननायक हैं परंतु जिस प्रकार से बेरोजगारों, कर्मचारियों की दुर्दशा हो रही है उसे देखकर तो खलनायक ही कहना सही है।
पेंशन हक के लिए कर्मचारी लोग जाते है तो यह जनता के तारणहार कहते हैं खजाने खाली हैं इनसे सभी एनपीएस कर्मी पूछे कि खजाने क्या एनपीएस कर्मियों ने खाली किए । खजानों के मालिक तो तारणहार जनप्रतिनिधि हैं तो फिर खजाने खाली कैसे हो गए ।कहीं जनप्रतिनिधि ही खजाने खाली तो नही कर रहे ।
अब महँगाई भत्ते से भी धोना पड़ सकता है हाथ
पूछना होगा क्योंकि आज तो कर्मचारियों को पेंशन से बंचित किया गया है कल ऐसी स्तिथि भी आ सकती है कि आपको मंहगाई भत्तों से भी हाथ धोना पड़े । क्योंकि यह तो कह देंगे कि खजाने खाली हैं और इन्हें यह भी पता है कि जनता बोलती नही हैं ।
हिटलरी कार्यप्रणाली के चलते हाई कोर्ट ,सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को भी नही माना जाता । यहां भी पूछना चाहिए कि जिस देश में कोर्टों के आदेशों को भी नही माना जाता तो फिर वहां लोकतंत्र की दुहाइयाँ क्यों दी जाती हैं ।
कब तक बैठे रहोगे खामोश?
आज हर विभाग के कर्मचारियों की पेंशन बन्द हैं परंतु बोलने वाला कोई नही है । कब तक चुप रहेंगे हम लोग । परिवहन निगम आज एक सबसे बड़ा निगम है अगर इस निगम के एनपीएस कर्मचारी दो दिन के लिए भी एनपीएस के विरोध में चक्का जाम कर दें तो तीसरे दिन ही सरकार पुरानी पेंशन वापिस कर देगी । परन्तु हम लोगों की सुविधाओं का ध्यान रखते हैं और ऐसा कार्य नही कर पाते पर अगर राजनीतिक पार्टियां कर्मचारियों के पेंशन मुद्दे पर ध्यान नही देगी तो ऐसी स्तिथि में पैन डाउन स्ट्राइक व चक्का जाम जैसे कार्य भी करने होंगे ।सबसे पहले सभी पीड़ित लोगों को हुंकार भरनी होगी तभी आपके जायज हक वापिस मिलेंगे ।
Very very nice post