पत्थरों के शहर में

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पत्थरों के शहर में
कच्चे मकान कौन रखता है…!
आजकल हवा के लिए
रोशनदान कौन रखता है…!!

अपने घर की कलह से
फुरसत मिले तो सुने..!
आजकल पराई दीवार पर
कान कौन रखता है…!!

खुद ही पंख लगाकर
उड़ा देते हैं चिड़ियों को..!
आज कल परिंदों मे
जान कौन रखता है..!!
हर चीज मुहैया है
मेरे शहर में किश्तों पर..!
आज कल हसरतों पर
लगाम कौन रखता है..!!

By

Babita Khanna, Delhi

सबको दिखता है दूसरों में
इक बेईमान इंसान…!
खुद के भीतर मगर अब
ईमान कौन रखता है…!!
फिजूल बातों पे
सभी करते हैं वाह-वाह..!
अच्छी बातों के लिये
अब जुबान कौन रखता है…!!!

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