“जाने कहाँ गए वो दिन” कर्नल जसवन्त सिंह चन्देल की कलम से
कर्नल जसवन्त सिंह चन्देल
कलोल बिलासपुर हि.प्र.
174035
मो- 9418425568
जाने कहाँ गए वो दिन…..
यह वही मेरी बस्ती है जहां मैं था खेला,
घर कम थे मगर आदमियों का था मेला,
आज कोठियां बन गईं छप्परों की जगह, मगर कोठियों में आदमी रहता है अकेला।
यह सब गलतियां हमारी ही हैं मेरे भाई,
छप्पर तोड़ कर कोठियां हमने ली बनाई,
फर्स पड़े हैं काले भला कौन करे सफाई,
वक्त हमने ही है काटना हमने रीत चलाई ।
दो बच्चों का जमाना आज यहां आ गया,
चीन की तरह यहां भी बुढ़ापा है छा गया,
बच्चे दो थे वे चले गए परदेश कुछ कमानें ,
बस वहीं लग गए हैं अब घर अपना बनाने।
बच्चों की किलकारियां गूंजती थी बस्ती में,
दादे दादियां घूमते थे यहां बड़ी ही मस्ती में,
आज बच्चे भी अस्पतालों में ले रहे हैं जन्म,
बस पांच सात बूढ़े ही अब बसते हैं बस्ती में।
आँसू
चिलमन ने रोके थे आंसू आज पेश हैं,
आग न लग जाए कहीं रब्ब खैर रखे।
कियामत तक के मेरे वायदे तुम्हें पेश हैं,
सलामती की दुआएं ऐसी रब्ब खैर रखे।
अब तक छुपा रखे थे गम अब पेश हैं,
तुमने भी तो मुझ से खूब बैर हैं रखे।
कुछ इस ज़िगर के गम तुम्हें आज पेश हैं,
अब रब्ब ए करीम तुम्हारी खैर रखे।
सर पर हाथ रख जसवन्त कह दिल पेश है
दो गज जमीन चाहिए विसाले यार खैर रखे।
चाह से वड़ा गुनाह…
दोस्तो चाह से बड़ा कोई गुनाह होता ही नहीं,
पर सजा ऐसी कि पता ही नहीं।
कौन वह मनहूस चीज़ है जिसकी चाह नहीं,
पर मिलने का कोई पता ही नहीं।
जिस्म दुरुस्त रहे मैं चाहता रहा आज तक,
बीमारी कब लग गई पता ही नहीं।
करता रहा धन व दौलत इकट्ठा पर कब तक,
कैसे ख़र्च हो गई पता ही नहीं।
फिक्र अब नहीं करता हूं यारो जीने मरने का,
जितना जीया मैं मर्जी से जीया।
सुर्खरू हो गया हूं मैं अब नहीं कुछ करने का,
मस्त कटीऔर खूब खाया पीया।
ईश के पास वक्त
एक वह भी वक्त था आज यह भी वक्त है,
उस वक्त सुकून था आज वक्त ही नहीं है।
महफिलों का समा था आज वह खत्म है,
दोस्तों के पास आज वक्त ही नहीं है।
मजदूर भूख से मरे, मरे ऐसा आज वक्त है,
उसे पगार देने का आज वक्त ही नहीं है।
मंदिर मस्जिद चर्च बनाने का जरुर वक्त है,
मगर भाईचारे का आज वक्त ही नहीं है।
जन्नत में सरेआम महामारी का ऐसा वक्त है,
मगर ईश के पास कोई वक्त ही नहीं है।
कर्नल जसवन्त सिंह चन्देल
कलोल बिलासपुर हिमाचल प्रदेश
174035
मोबाइल नम्बर 9418425568